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सोमवार, 7 मई 2018

1025...हम-क़दम का सत्रहवाँ कदम.....


रवींद्र नाथ टैगोर का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। 
7 मई 1861 को जन्मे इस अद्वितीय युगपुरुष को 
विश्वविख्यात नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
देश को राष्ट्र गान (जन-गण-मन) देने वाले,
एक साहित्यकार,चित्रकार और विचारक के रुप में उनका योगदान युगों तक याद किया जाता रहेगा। 
साहित्य की ऐसी कोई भी विधा नहीं जिसमें उन्होंने  अपनी विशिष्ट पहचान न छोड़ी हो। कविता,गान,कथा,नाटक,उपन्यास,निबंध, शिल्पकला सभी विधाओं पर 
अद्भुत रचनाकर्म के द्वारा सबको चकित कर दिया।

"यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे तोबे एकला चलो रे"
उनके द्वारा कही गयी बेहद प्रेरक पंक्तियाँ जो मुझे बहुत पसंद है-
उन्होंने कहा था-
“अपने भीतरी प्रकाश से ओत-प्रोत 
जब वह सत्य खोज लेता है. 

कोई उसे वंचित नहीं कर सकता,
वह उसे अपने साथ ले जाता है
अपने निधि-कोष में
अपने अंतिम पुरस्कार के रूप में”

चलिए अब हमक़दम के बढ़ते क़दम की ओर जिसका आप सभी को बेसब्री से इंतज़ार होगा।
आप सभी की एक से बढ़कर एक रचनाओं का इंतज़ार पूरे सप्ताह भर रहा और आपने अपने रचनाकर्म के द्वारा  "इंतज़ार" पर बेहद सराहनीय रचनाओं का आस्वादन करवाया है। आप सभी की सृजनात्मकता को सादर नमन है।
तो चलिए आपकी रचनाओं के संसार में-

और हाँ कृपया ध्यान दें रचनाएँ सुविधानुसार लगायी गयीं है क्रमानुसार नहीं।

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आदरणीया मीना शर्मा जी की लेखनी से
My photo
बहुत रुक चुकी,
इस इंतजार में,
कि लौटोगे तुम तो साथ चलेंगे ।

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आदरणीय एम. रंगराज अयंगर सर की कलम से

किसी ने कहा है
इंतजार का फल मीठा होता है
कोई उनसे ही पूछे कि
इंतजार कितना तीखा होता है।

अपनापन जताते रहो
अपने मत बनो
अपना बनाने की 
कोशिश तो होगी।

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आदरणीया अपर्णा वाजपेई जी की लेखनी से

बस 
एक तड़प बाक़ी है,
उसकी आँखों में मुझे छूने की, 
वो काम की कैद में है 
और मैं अलमारी की ....
वो मुझे चाहती है, 
और मैं उसे, 
इन्तजार है, 
उसे भी, 
मुझे भी,
एक दूसरे के साथ का!

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आदरणीया आँचल पाण्डेय जी की हृदयस्पर्शी रचना

एक आस को मन में जगाता हूँ
इंतजार में तेरे बहना
राखी की थाल सजाता हूँ
उस मेहंदी को अब भी लाता हूँ
जो रच भी ना सकेगी
हर राखी तुझको बुलाता हूँ

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आदरणीया सुधा सिंह जी लेखनी से प्रसवित दो रचनाएँ

मेरा इंतजार न करना
लौटता नहीं मैं कभी किसी के लिए
देखता हूँ सभी को समदृष्टि से मैं
ज्ञात है तुम्हें भी
उगता है सूरज समय से और
निकलता है चांद समय पर

आखिरी लम्हा

घड़ी की टिक- टिक के साथ,
गुजरते पलों में,
उस आखिरी लम्हें का इंतज़ार
बस अब यही है पाने को.....


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आदरणीया सुप्रिया पाण्डेय जी की कलम से

इंतज़ार है या एक भ्रम भर,
जो शायद पूरा ही नही हो आजीवन,
फिर भी चाहता है ये मन
तुम आओ वापस इस जीवन,

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आदरणीया नीतू ठाकुर जी की लेखनी से प्रसवित


रोज मै तुम्हें कितना
इंतजार करवाता हूँ
थक हारकर जब
लौटकर आता हूँ
ज़िंदगी की उलझनों में
खोया खोया सा मैं

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आदरणीया आशा सक्सेना जी की कलम से

एहसास तुम्हारा जगाया
जैसे तैसे मन को समझाया
फिर भी तुम पर गुस्सा आया
क्या फ़ायदा झूठे वादों का 
तुम्हारे इंतज़ार का  
तुम्हारी यही वादा खिलाफी
मुझ को रास नहीं आती

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आदरणीया साधना वैद जी की लेखनी से प्रवाहित

सदियों से प्रतीक्षा में रत
द्वार पर टिकी हुई
उसकी नज़रें
जम सी गयी हैं !
नहीं जानती उन्हें
किसका इंतज़ार है
और क्यों है
बस एक बेचैनी है

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आदरणीया कुसुम कोठारी जी कलम से प्रवाहित
इंतज़ार की बेताबी
हम मिलेंगे सुरमई
शाम  के   घेरों में 
विरह का आलाप ना छेड़ना
इंतजार की बेताबी में कभी।

आदरणीया डॉ. इन्दिरा गुप्ता जी की कलम से

पाती आई वृंदावन से 
श्याम नैक दिनन कू आ जाओ 
झूटे ही कह दो आवन की 
तनि तो धीर बंधा जाओ ! 
नयन है गये सावन भादों 
फिर भी मधुबन सुख गये 
नैनन मैं "इंतजार उग गयो " 

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आदरणीया शुभा मेहता जी की लेखनी से दो रचनाएँ
इंतजार , सभी को होता है 
किसी न किसी चीज़ का
प्रेमी को प्रेयसी का 
परिक्षार्थी को परिणाम का
कृषक को वर्षा का
बच्चों को छुट्टियों का

🔴🔴🔴

उठो जागो मन
हुआ नया सवेरा
आ गए आदित्य
लिए आशा किरन नई
अब कैसा इंतजार
 रमता जोगी गाए मल्हार

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आदरणीया सुधा देवरानी जी की मर्मस्पर्शी रचना

लगता है खुद की न परवाह उसको
वो माँ है सुख की नहीं चाह उसको
संतान सुख ही चरम सुख है उसका
उसे पालना ही अब कर्तव्य उसका

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आदरणीय रोहिताश घोड़ेला जी की कलम से

प्यार  की नियत, सोच, नज़र  सब  हराम  हुई
इसी सबब से कोई अबला कितनी बदनाम हुई.

इंतजार, इज़हार, गुलाब, ख़्वाब,  वफ़ा,  नशा
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुई सरेआम हुई

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आदरणीय सखी रेणुबाला
बीते दिन  लौट रहे हैं ---------  नवगीत --
 चिर प्रतीक्षा सफल हुई - 
यत्नों के फल अब मीठे हैं , 
उतरे हैं रंग जो जीवन में
वो इन्द्रधनुष सरीखे हैं
मिटी वेदना अंतर्मन की 
 खुशियों के दिन शेष रहे हैं !!


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आदरणीय पंकज प्रियम

हमारी चाहत पे कभी उन्होंने एतबार नही किया
उनकी मुहब्बत में कभी हमने इतवार नहीं लिया।

हमने रोज ही उनकी राह में खड़े ही इन्तजार किया
कुछ दूर हम क्या गए,तनिक मेरा इन्तजार न किया।


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आदरणीय सुशील सर की लेखनी से 
अब ये सारे लोग खुद
आतंकित होते चले जायेंगे

मौन ने बोये हैं
जो बीज इस बीच
प्रस्फुटित होंगे

बस इंतजार है 
कुछ और दिनों का

धीरे धीरे सारे मौन
खिलते चले जायेंगे


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आप सभी की.लेखनी से प्रसवित आज का अंक
आपको कैसा लगा कृपया अपनी बहूमूल्य प्रतिक्रिया के द्वारा हमारा मनोबल अवश्य बढ़ाए।
हमक़दम का अगला विषय जानने के लिए
कल का अंक देखना न भूले।

अभी आनंद लीजिए रवींद्र नाथ टैगोर की आवाज़ में राष्ट्रगान का-


आज के लिए बस इतना ही

-श्वेता सिन्हा

20 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    शुभ कामनाएँ सभी को
    कल आने वाला विषय
    आज की रचनाओँ से लिया जाएगा
    ध्यान से पढ़िएगा
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. इंतहा ख़त्म हुई इंतज़ार की!!! बधाई और आभार विशेष रूप से टैगोर की आवाज सुनाने के लिए!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत प्रस्तुति । रविन्द्रनाथ टैगोर जी की आवाज सुनाने के लिए बहुत बहुत आभार ...।सभी रचनाएँ बहुत ही उम्दा । मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा रचनाओं को शामिल करने के लिए और बढ़िया संयोजन के लिए बधाई |मेरी रचना को स्थान
    देने के लिए आभार श्वेता जी |

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण
    उम्दा संकलन

    जवाब देंहटाएं
  6. शानदार प्रस्तुति श्वेता सभी रचनाकारों का उत्साह और इंतजार देखते बन रहा है।
    कविंद्र रविंद्र नाथ टैगोर जी को शत शत नमन।

    जवाब देंहटाएं
  7. हलचल के सभी आदरणीयों को शुभ प्रभात, बेहद सुंदर संकलन स्वेता जी .. मेरी रचना को समिल्लित करने हेतु आभार सभी रचनाकारों को शुभकानाएं ,रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की आवाज़ के लिये विशेष रूप से धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  8. हमकदम के कदम और कदमों के निशान
    एक सोमवार से दूसरे सोमवार तक
    चलता चले कारवाँ हलचल का
    यूँ ही फलता फूलता
    इस बहार से उस बहार तक।
    आभार 'उलूक' का साथ में
    लाजवाब लेखन के बीच
    नजर भर देखने के लिये
    कबाड़ से कबाड़ तक।

    जवाब देंहटाएं
  9. सुप्रभात,
    सुन्दर लिंकों से सजी हलचल, आभार|

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह वाह अबके इंतजार का फल कुछ मीठा रहा गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की वाणी सुन इंतजार का शिकवा जाता रहा ......आभार प्रिय श्वेता आभार !

    जवाब देंहटाएं
  11. गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की वाणी ..वाह!बहुत बढिया हमेशा की तरह एक से एक रचनाएँ। धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  12. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण
    रविंद्र नाथ टैगोर जी को शत शत नमन।

    जवाब देंहटाएं
  13. बेहद चुनिदा लिंक्स आज की हलचल में सजीं हुई है..नीतू जी का पेज उपलब्ध नहीं है तो उसको नही पढ़ पाया.
    मेरी भी एक रचना शामिल है इस पर जिसे मै भूल ही चूका था.. इस जीवंत शेर को कि
    "सब थे उसकी मौत पर आये हुए जो दिन में मरी
    न था तो कोई उस मौत पर जो उसे हर शाम हुई." को याद दिलाने का आभार रहेगा.

    विशेष टिप्पणी:
    इंतजार का भाव उन रचनाओ में भी देखा जा सकता है जिनमे इंतजार शब्द लिखा न गया हो..

    चलते चलते एक कटाक्ष उन महानुभावों के लिए जो लिंक्स तक पहुँचते भी नही हैं और फिर भी वो अलोकिक शक्तियों के माध्यम से पता कर लेते हैं कि लिंक्स सुंदर है,लाजवाब हैं और बेहतरीन हैं ..
    मेरे प्यारे साहित्यकारों आपको भगवान अलोकिक शक्तियों के साथ साथ थोड़ी सद्धबुद्धि भी दे.
    note: जो ऐसा कर चुके हैं कृपया इसको व्यक्तिगत तंज़ ही समझें. :) :) :D


    जवाब देंहटाएं

  14. प्रिय श्वेता -- आज के विशेष आयोजन पर लाजवाब संयोजन पर बहुत बहुत बधाई | आपसे और प्रिय सजग पाठक रोहिताश जी से बड़ी विनम्रता से कहना चाहूंगी कि सचमुच लिंक्स एक बार देख लिए हैं पर उनपर लिखना शाम या रात तक हो पायेगा | रचनाकार सहयोगियों ने कोई कसर नहीं छोडी आज इन्तजार की महफ़िल को सजाने में -- सभी को हार्दिक शुभकामनाये | भूमिका में पूज्यवर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का स्मरण बहुत ही भावपूर्ण है |और उनके स्वर की उपलब्धता के लिए विशेष और विशेष आभार बहना | आपकी प्रखर बुद्धि को नमन करते हैं जिसने इतना सार्थक प्रयास करने की सोची और हम पाठकों को धन्य किया | हमे ये भी पता नहीं था कि यू tube पर इस तरह की अनमोल थाती भी उपलब्ध है | साहित्य के पुरोधा और दैदीप्यमान नक्षत्र आदरणीय गुरुदेव का साहित्य संसार सदियों तक ऋणी रहेगा | उनका अतुलनीय योगदान अविस्मरनीय है | उनका बेजोड़ साहित्य और उनके अनमोल विचार युगों -युगों तक प्रासंगिक और अक्षुब रहेंगे | उनकी पुण्य स्मृति को सादर नमन |एकबार फिर सराहनीय प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई आपको और साथ में मेरा प्यार |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रेणु जी उदासीन भावों और प्रतिक्रियाओं ने मुझे बहोत तंग किया है।
      मैं जानता हूँ कि रचना बनाई नहीं जाती बल्कि जनी जाती है।
      और फिर किसी की कॉपी पेस्ट वाली कॉमेंट सहरानीय कदम न लगकर किसी असली साहित्यकार को भी खुद के जैसा बनाने का प्रयास लगता है।
      खैर
      ऐसी क्रिया प्रतिक्रिया के लिए इस हलचल से बढ़कर ओर कोनसा मंच हो सकता है।

      हटाएं
    2. प्रिय रोहितास जी -- मैं आपकी बात से सहमत हूँ | कई बार लोग बिलकुल ऐसा ही करते हैं | पर कर्म करना हमारा कर्तव्य है फल देना पाठको का अधिकार या मर्जी | हम किसी पोस्ट पर अपने रूहानी आनंद के लिए जातेहै लेखक के लिए नहीं -बस मैं तो यही मानती हूँ | पर मुझे बहुत अच्छा रिस्पोंस मिला है | आपकी प्रखर , बेबाक बात बहुत अच्छी लगी | यहाँ निवेदन करना चाहूंगी कि विस्तार से लिखने की चाह में समयाभाव के कारण बिना लिखे लौट आती हु क्योकि बहुत कम शब्दों में बात निपटाना नहीं आता मुझे | पर तकरीबन हर पोस्ट जरुर पढ़ लेती हूँ यानी जो मेरे g प्लस पर आती हैं | आपके ब्लॉग पर भी जल्द ही आऊँगी यानि लिखने वैसे तो देख चुकी हूँ | आभार

      हटाएं
  15. बहुत सुन्दर रचनाओं का संकलन आज के अंक में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार ! हमकदम का हर कदम एक नयी ऊर्जा, उत्साह एवं दृढ़ता के साथ अपनी मंजिल की ओर अग्रसर होता दिखाई देता है ! यह कारवां यूं ही चलता रहे यही दुआ है ! हार्दिक अभिनन्दन सभी सह रचनाकारों का !

    जवाब देंहटाएं
  16. सुन्दर प्रस्तुति,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार। रवीन्द्र नाथ टैगोर की आवाज़ सुनाने के लिए विशेष आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  17. वाह लाजवाब सुंदर प्रस्तुति
    रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को नमन
    सभी रचनाएँ उत्क्रष्ट हैं सभी को हार्दिक शुभकामनाए और मेरी रचना को भी शामिल करने के लिए आभार
    शुभ रात्रि सधन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  18. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। नमन रविन्द्र नाथ टैगोर जी को।उनकी आवाज सुनाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं

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