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बुधवार, 23 मई 2018

1041..कलमकारों को मुक्त चिंतन के परिवेश के लिए...


।।शुभ भोर वंदन।।

ये करें और वो करें
ऐसा करें वैसा करें
ज़िंदगी दो दिन की है
दो दिन में हम क्या क्या करें
                      -नज़ीर बनारसी


हैं न इसी तरह का जद्दोजहद..

ज्यादा तो नहीं ..बस..

कलमकारों को मुक्त चिंतन के परिवेश के लिए कुछ करें..



सफल मानवीय व्यवस्था के लिये संवेदना और विचार का समन्वय करें..



तो फिर इन्हीं विचारों के इर्दगिर्द रहते नज़र डालें आज की लिंको पर...✍

⚫⚫⚫

स्वप्न मेरे ...ब्लॉग से..



लौट के इस शहर आओ साब जी

कश पे कश छल्लों पे छल्ले उफ़ वो दिन

विल्स की सिगरेट पिलाओ साब जी

मैस की पतली दाल रोटी, पेट फुल

पान कलकत्ति खिलाओ साब जी...



⚫⚫⚫

आदरणीय रजनीश जी की कलम से..



जिंदगी के सफर में

मंजिल दर मंजिल

एक भागमभाग

में लगा हुआ

हमेशा हर ठिकाने पर 

यही सोचा

कि क्या यही है वो मंजिल

जिसे पा लेना चाहता था
पर मंजिल दर मंजिल
बैठूँ कुछ सुकून से 


⚫⚫⚫

श्री की अभिव्यक्ति से..



सच्ची मोहब्बत से भी नवाजा तो

उन्हें

जिनकी हथेलियों में मोहब्बत की 

लाइन खींचना ही भूल गया।

मोहब्बत तो करी थी उसने भी टूट के

ये ख़ुदा! उसका यार क्यों उससे



⚫⚫⚫

डाँ इंदिरा जी की खूबसूरत रचना..




क्या कह तुम्हें करूँ सम्बोधित 

लिखते लगती लाज 

प्रिय लिखते ही कलम निगोड़ी 

कंप जाता है हाथ ! 

जाने किस विधि लिखना चाहूँ ...





⚫⚫⚫

ब्लॉग डायरी  से..


दरअसल कानून की भाषा बोलता हुआ यहां अपराधियों का एक संयुक्त परिवार है।

मध्यप्रदेश का एक किसान 45 डिग्री सेल्सियस में 4 दिन से मंडी में अपनी फसल की तुलाई होने का इंतज़ार लाइन में लगकर करता है और अन्तः उसकी मौत हो जाती है। अब मरने से पहले मूलचंद नामक इस किसान ने "हे राम" या "भारत माता की जय" या "मेरा भारत महान" का जयघोष किया था या नहीं,.....





⚫⚫⚫

और आज की अंतिम कड़ी में आनन्द ले नीतू सिंघल जी के दोहे..
My photo

नैनन के मोती बहि भए पानी पानी..,

ओ रे पिया ए रतन अमोलक, हाय ए मोल न जानी,

लागे मोही तुहरी दुनिया बिरानी,

नैनन के मोती बहि बहि भए पानी पानी..,

निसदिन करि ए कहि बतिया, गह गह गयउ बखानी

लागे मोही तुहरी दुनिया बिरानी

नैनन के मोती बहि बहि भए पानी पानी
⚫⚫⚫

हम-क़दम के बीसवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........

⚫⚫⚫
।।इति श ।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह..✍


12 टिप्‍पणियां:

  1. पाँच लिंक्स की हलचल सुहावनी ख़ुशबू लिए सुंदर संयोजन कर रही है ...
    बहुत ही सुंदर संकलन रचनाओं का और आपका आभार मेरी रचना को यहाँ परस्तु करने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात सखी
    इस बार आपने कलम पकड़कर कमर कसी है
    बेहतरीन रचनाएँ...
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभातम्,
    बहुत सुंदर संदेशात्मक भूमिका लिखी है आपने पम्मी जी।

    कलमकारों को मुक्त चिंतन के परिवेश के लिए कुछ करें..
    बहुत बढ़िया👌👌

    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
    सुंदर संकलन पढ़वाने के लिए आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  4. अलग सा मार्ग प्रशस्त करती कुछ मौलिक चिंतन कलम कारों के लिये, सहज और सरस रचनाओं का चयन सशक्त प्रस्तुति।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह!!खूबसूरत भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात पम्मी जी प्रथम मेरे लेखन को मान देने के लिये आभार ...उम्दा संकलन पढ़ने मैं सुकून का अहसास रहा
    बेहतरीन भूमिका और प्रस्तुति आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह ! बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति आदरणीया पम्मी जी की!
    'ये करें और वो करें
    ऐसा करें वैसा करें
    ज़िंदगी दो दिन की है
    दो दिन में हम क्या क्या करें'....
    चार पंक्तियों में बहुत कुछ कह गए नज़ीर बनारसी...
    सच, यही लगता है बहुत बार....ना जाने क्यों, कितना भी दौड़ो वक्त के साथ, कमबख्त हाथ ही नहीं आता...
    पर....हम भी इत्तफाक से ज़िद के मरीज हैं !!!
    जिसे शौक हो,लगाव हो वह वक्त निकाल ही लेता है।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर लिंक संयोजन....

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह ! खूबसूरत हलचल ! लाजवाब लिंक संयोजन ! बहुत खूब आदरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर संकलन , आपका आभार मेरी रचना को मान देने के लिये ...

    जवाब देंहटाएं

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