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बुधवार, 30 अगस्त 2017

775 ..नित नए फ़ितनागरी दिखाता है..

३ ० अगस्त २ ० १ ७ 
।।जय भास्करः।।
।उषा स्वस्ति।

अथ इस कथ्य से .

शायद..

" इंसानियत के सर पे

गद्दारी की हवा चली या,

आदर्शों की चिता जली..

हर तरफ़ दौडते-भागते रास्ते

आदमी का शिकार आदमी..

जो न डरता है,न शर्माता है..

नित नए फ़ितनागरी दिखाता है।"

इन समसामियक  विषयों से इतर कुछ लफ्ज़..

चलो, फिर कुछ देर थमते हैं..
यहीं पर..
कुछ वक्त का सिरहाना लेकर
और लिखते हैं..
वो सब कुछ जो रह गया था अनकहा..

इन्हीं बातों को मद्देनज़र रखते हुए

आप सभी प्रस्तुत लिंको की ओर नज़र डाले..

पावनी दीक्षित "जानिब" महफिल से...


दिल में प्यार का महल बनाकर ये बनके पत्थर तोड़े। ।

कोई कसक है धड़कन में दिल मुश्किल से धड़कता है
जाने कैसी याद है तेरी जो बस सांस है दिल से जोड़े ।

दर्द हमारे बसमें नहीँ है चाहत में कोई रस्में नहीं हैं

टूटी-फूटी  एक गृहिणी की डायरी...से अधूरी आशा


शायरा आज दस बजे से ही टीवी से चिपकी थी। दिन भर चैनेल बदल-बदलकर एक ही ख़बर देखती रही। सास-बहू वाले सीरियल भी आज इस ख़बर के आगे फीके थे। ठीक पाँच बजे दरवाजे की घंटी बजी। अरे, अभी इस समय कौन हो सकता है...! दुपट्टा सम्हालते हुए दरवाजा खोला तो शौहर खड़े थे, आज कुछ अलग मुस्कान लिए हुए। चकित होकर पूछाक्या हुआ, आज इतनी जल्दी
सुशील कुमार जोशी जी द्वारा  रचित मजेदार व्यंग्य एवं तीक्ष्ण कटाक्ष


जो लिखता है
उसे पता होता है

वो क्या लिखता है
किस लिये लिखता है
किस पर लिखता है
क्यों लिखता है


वर्षा...यहां सुनाई देते हैं स्त्रियों की मुक्ति के स्वर


इस कहानी ने अपने वक़्त में सबको हैरान कर दिया था। कि दुनिया जैसी हम देखते हैं इससे ठीक उलट भी हो सकती है। औरतों की दुनिया। बीसवीं सदी के शुरुआती दशक औरतों के माफिक तो हरगिज नहीं थे। आज़ादी की जंग लड़ रहे हिंदुस्तान में तब औरतों के अधिकार को अलग से देखा भी नहीं जाता था। उस समय में रुकैया  सखावत हुसैन ने एक कहानी लिखी जिसका नाम था -सुल्ताना का सपना। सुल्ताना अपने सपने में एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करती है जहां हर चीज बदली हुई थी। जहां बारिश नहीं होती थी लेकिन धरती पर बहुत हरियाली थी।

साधना जी द्वारा  रचित  सुन्दर कविता 'धुंध'

आँखों से धुँधला दिखने लगा है
अच्छा ही है !
धुंध के परदे में कितनी
कुरूपताएं, विरूपताएं छिप जाती हैं
पता ही नहीं चल पाता और मन
इन सबके अस्तित्व से नितांत अनजान
उत्फुल्ल हो मगन रहता है ! 
 





" ये वक्त है जनाब हर चेहरे याद रखता है

अच्छा हो..जो हम वक्त पर ही
एक नन्हा-सा दीया जलाएं
जो बुझा-बुझा सा है हमारे अंदर.."

अन्वीक्षा जरूर करें,

अब आपसे आज्ञा लेती हूँ। 

फिर मिलेंगे। 

।।इति शम।।

पम्मी सिंह



10 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    बेहतरीन चयन
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात पम्मी बहन
    एक और अच्छी प्रस्तुति
    साधुवाद
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा प्रस्तुतिकरण.....
    लाजवाब लिंक संयोजन...

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात पम्मी जी,
    सुंदर विचारों के साथ उम्दा लिंकों का संयोजन है आपने। आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ एवं चयनित रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर संकलन। सभी चयनित रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत लिंक्स दिए आज की प्रस्तुति में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार पम्मी जी ! विलम्ब से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !

    जवाब देंहटाएं
  7. आज की बढ़िया हलचल प्रस्तुति में 'उलूक' को भी जगह देने के लिये आभार पम्मी जी।

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीया ,शुभप्रभात
    बेहतर प्रस्तुति
    रचनाओं का चयन उम्दा ! शुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं

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