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शनिवार, 4 दिसंबर 2021

3232... हाइकु

       


हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...

हाइकु

शीत के दिनों

सर्प सी फुफकारें

चलें हवाएँ।

हाइकु : अनूप भार्गव

मुठ्ठी में कैद

धूप फिसल गयी

लड़की हँसी।

हाइकु : गोपालदास नीरज

सृष्टि का खेल

आकाश पर चढ़ी

उल्टी बेल।

हाइकु : कृष्णा वर्मा

बंसवारियाँ

धरें अधरों पर

वेणु के स्वर।

हाइकु : विकास परिहार

मन की पीड़ा

छाई बन बादल

बरसी आँखें।

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पुनः भेंट होगी...
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5 टिप्‍पणियां:

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