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रविवार, 12 दिसंबर 2021

3230 ..बन्द कमरे में वन्दे मातरम कहना और बात है, वतन पर जिन्दगी बलिदान करना ओर बात है

सादर अभिवादन
ऑमिक्रॉन


हम भारतीयों के लिए
चुनौती सा है..अभी
शांत सा है भारत में ..पर
विशेषज्ञों का कथन है कि ये
फरवरी में विकराल रूप में होगा
भारत ही नहीं पूरे विश्व को
आतंकित करेगा....
वैज्ञानिक अभी से अपने टीके को
तृतीय खुराक (बूस्टर डोज) के लिए
सक्षम बनाने की तैय्यारियां कर रहे हैं
अब देखें रचनाएँ...




होगे तुम सदा बहते, लहू बन धार धमनी में,
मैं अपनी साँस भी तुमको तिरोहित कर रही हूँ।।

करूँ क्या मैं तुम्हें कुछ, दे नहीं सकती मेरे सैनिक,
ये जीवन, आत्मबल, संबल समर्पित कर रही हूँ ।।





शायद दिल में उतर जाए ....
दिल में ही रहने वाले छुए अनछुए पहलू.....जिससे जान कर भी अनजान रहतें हैं...
बन्द कमरे में वन्दे मातरम कहना और बात है
वतन पर जिन्दगी बलिदान करना ओर बात है।।

आंसू का  कतरा कतरा महंगा होता है
कीमत जाने वहीं जिन नयनों से आसूं झरता है।




उस पल के , जो  सत्य सा अटल ,
ठहर गया है भीतर   गहरे ;
रूठे सपनों से मिलवा जिसने  
भरे पलकों में रंग सुनहरे ;
यदा -कदा  बैठ साथ मेरे  
उन यादों के हार पिरोना तुम

जिसमें  जाने  कहाँ  से आया  
जन्मों की ले पहचान कोई ,
विस्मय सा भर जीवन में  
कर गया हैरान कोई !  
मौन आराधन सा वो  मेरा  
उसका   जन्मों  का संग बोना तुम

एक समीक्षा भी
सुधा देवरानी द्वारा





अनाड़ीपन से भरपूर 18 बरस माँ बनने के
पहली बार पेट में तितली सी उड़ी
पता चला कि तुम आई हो

कुछ महीनों बाद तुमने
पेट के भीतर से थप थप की
मेरी माँ ने हंसकर बताया
मेरे माँ बनने के बारे में




महामारी,लॉकडाउन और
ऑनलाइन मुलाकातों के सिलसिले!
स्नेह का स्रोत-सा,
मन के धरातल पर
अकस्मात् प्रस्फुटित होता है
और प्रेम की नन्ही- सी धार
निकलकर धीरे- धीरे बढ़ते हुए
एक विशाल नदी का
आकार ले लेती है।





और
अंदाज़ ए इश्क से कोसों दूर ...
या
क री ब ...??
को भांपकर
लौटती हूं,
बस स स ...
मुट्ठी बंद रखना, तब तक




कभी-कभी मुझे लगता है कि
यू रहस्यों को बरकरार रखना
व्यक्तित्व को कितना आकर्ष बना देता है
ये रहस्यों को बरकरार रखने की कला
तुमसे ही सीखी है मैंने.. लेकिन
मैं अब तक मैं तुम्हें ही नहीं समझ पाई.....




वो सियासत की, तिज़ारत की ज़बां कहता है
उसको रिश्तों में भी दिखता है फ़क़त ही पैसा

एक दरिया का किनारों से भला क्या रिश्ता
उसको लम्हा नहीं मिलता है ठहरने जैसा





ठहरा के सज़ायाफ़्ता,
बींधे समाज ने यदाकदा,
यूँ तो नुकीले संगीन।
हो तब ग़मगीन ..
बन जाता बेजान-सा,
हो मानो मन बेचारा संगीन ..
तब भी ..
ये मन की मीन,
है बहुत ही रंगीन ...

...
आज बस इतना ही

सादर 

7 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! सुप्रभातम् वाले नमन संग आभार आपका .. आज की अपनी पैनी निगाहों से चुन-चुन कर लायी गयी अनुपम रचनाओं की कतार में मेरी बतकही को एक जगह प्रदान करने के लिए .. बस यूँ ही ...
    (आज तनिक फ़ुर्सत से सभी रचनाओं की नज़ाकत पर नज़रे दौड़ानी होगी, रेणु जी भी आज झाँक रही है .. रेणु जी को इस बावला-बूच का राम-राम! के हाल है .. 🤔...)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नमस्ते और राम-राम जी सुबोध जी |आप जैसे गुणीजन बावले बूच हो जाएँ तो इसकी महिमा को चार चाँद लग जाएँ |!आज की मेरी झाँकी पुस्तक के नाम !आपका आभार और अभिनन्दन ! मैं बिलकुल ठीक प्रकार से हूँ , बस थोड़ी व्यस्ताएँ हावी हो गयीं | वैसे मैं हर दिन मंच पर जरुर आती हूँ , भले लिख ना पाऊँ | मुझे लगता है मेरे जैसे अन्य रचनाकार भी व्यस्ताओं के लपेटे में हैं | लगभग सभी गायब हो गये लगते हैं | आशा है जल्द ही सबकी वापसी होगी | पुनः आभार और राम-राम!🙏🙏

      हटाएं
  2. सुंदर प्रस्तुति ।
    भूमिका में उपयोगी जानकारी।
    सभी रचनाकारों को बधाई,
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति,सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक हैं। हमारी रचना को शामिल करने के लिए ह्रदय से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर रचनाओं का चयन किया है आपने आदरणीय दीदी । आपके श्रमसाध्य कार्य को मेरा नमन और वंदन ।मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 🙏💐

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बहुत आभार आपका मैम मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  6. भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी रचनाओं से सुसज्जित आज का अंक अपने आप में सृजन का वृहद् संसार समेटे है |सभी रचनाएँ बहुत ही अच्छी लगीं | मेरी पुस्तक का जिक्र भी हो गया , समीक्षा के साथ |सुधा जी ने पुस्तक की विषयवस्तु को जिस स्नेह से प्रचारित किया और उसकी सस्नेह व्याख्या की , वह मेरे लिए अविस्मरनीय अनुभव है | उनके साथ-साथ पुस्तक प्रकाशन पर जिन्होंने मेरा मनोबल बढाया और नैतिक सहयोग दिया सबकी आभारी रहूंगी | अन्य लिंक मंचों के साथ पांच लिंकों ने मेरी रचनाओं को असंख्य अपरिचित स्नेही पाठकों तक पहुँचाने में बहुत सहयोग किया जिसके लिए आभार शब्द बहुत छोटा है | मेरे ब्लॉग की बहुत सारी रचनाएं ऐसी रही जो हमकदम श्रृंखला से जन्मी और पाठकों के अपार स्नेह से खूब पनपी |इस पुस्तक में आधे से ज्यादा वही रचनाएँ हैं जो हमकदम के कारण लिखी गयी | ' 'समय साक्षी रहना तुम' भी ऐसी रचना थी जो हमकदम के' परिक्रमा' विषय पर लिखी गयी और पाठकों द्वारा खूब सराही गयी | जब ये रचना लिखी थी तो 2017 विदा ले रहा था जो मेरे जीवन का उपलब्धियों भरा साल था | मन मानो इसे विदाई नहीं दे पा रहा था | एक अजीब सी वेदना में ये रचना लिखी गयी थी जिसकी पंक्ति पुस्तक का शीर्षक बनी | सो , पांच लिंक को असंख्य आभार | ये मंच यूँ ही पनपता साहित्य साधकों को आगे बढ़ता रहे यही दुआ और कामना है | और दीदी आपको आभार नहीं अपनी शुभकामनाएं दे रही | स्वस्थ रहिये और बुलंद रहिये |सादर

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