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गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

3258...नव वर्ष जल्दी से क्यूँ न आए...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशालता सक्सेना जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक के साथ पाँच रचनाएँ  लेकर हाज़िर हूँ-

लीजिए पढ़िए आज की पसंदीदा रचनाएँ-

यह दिन जल्दी क्यूँ आए

कभी मन में बेचैनी होती

इतना इन्तजार किस लिए

कब तक राह देखी जाए

नव वर्ष जल्दी से क्यूँ न आए।

मरवण जोवे बाट

लाज-शर्म रो घूँघट काड्या

फिर-फिर निरख अपणों रूप।

लेय बलाएँ घूमर घाले

जाड़ घणा री उजळी धूप

मोर जड़ो है नथली लड़ियाँ

प्रीत हरी बुनियाद रही।।

लीलाधर मुस्कावे रे

बृजवासिन को चैन चुरावे,

गाए-गाए गुण ग्वाल सब झूमे,

ग्वालिन भोग ख्वावे रे,

धेनु उड़ावे धूरी घन-घन पर,

सुरवर बहुत पछतावे रे,

बिटिया का घर बसायें संयम से


जाँच-परखकर रिश्ता ढूँढा है तुमने उसके लिए।अपने चयन और अपनी परवरिश पर भरोसा रखो !और थोड़ा संयम रखो ! बाकी सब परमात्मा की मर्जी" कहकर वह अन्दर गयी।

थोड़ी देर बाद निक्की का फोन आया तो सुरेश ने माँ के सामने आकर ही फोन उठाया और बोला, "कोई बात नहीं बेटा ! आज नहीं सकते तो कोई नहीं जब समय मिले तब आना, हाँ अपनी सासूमाँ और बाकी घर वालों से राय मशबरा करके ठीक है बेटाअपना ख्याल रखना"सुनकर सरला ने संतोष की साँस ली

शादी में

गुनगुनाते हुए और मस्ती में गोयल सा ने गाड़ी स्टार्ट की और फटाक से रिवर्स गियर लगाया. तेजी से स्टीयरिंग घुमाते हुए कार बैक की. पीछे से धम्म की आवाज़ आई. श्रीमती चौंकी - संभाल के ! क्या कर रहे हो ? उतर कर पीछे देखो.

गोयल साब ने उतर कर देख दो गमले ढेर हो गए हैं. आकर बैठ गए और बोले - अरे यार गमले गिर गए कोई ऐसी बात नहीं. फ़िकरनॉट होता रहता है ये तो, और तेज़ी से गाड़ी गेट की तरफ भगा दी.

कार के पीछे पीछे गार्ड दौड़ता रहा था - हेलो रोको रोको ! पर गोयल सा को आगे देखना जरूरी था या पीछे ?

यात्रा अंडमान की

अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ढाए गए अत्याचारों का सिलसिलेवार विवरण जब यहां आयोजित  ''लाइट और साउंड शो'' में सामने आता हैतो उपस्थित दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं और आँखें नम हो जाती हैं ! खेद होता है कुछ पूर्वाग्रहों से ग्रसित लोगों की अक्ल और विचारों को देख-सुन करजिन्हें ना यहां के इतिहास की और ना ही यहां की परिस्थितियों की कोई जानकारी है पर सिर्फ अपना मतलब सिद्ध करने हेतु किसी व्यक्ति विशेष को लक्ष्य कर अमर्यादित टिप्पणियां करने से बाज नहीं आते !

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे आगामी गुरुवार।

 रवीन्द्र सिंह यादव 

 


11 टिप्‍पणियां:

  1. जय श्री कृष्ण
    बृजवासिन को चैन चुरावे,
    गाए-गाए गुण ग्वाल सब झूमे,
    आभार..
    बढ़िया अंक
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर लिंक्स चयन
    इस पल में जीवन खूबसूरत है

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया रहा
    वर्ष समापन सप्ताह..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति..
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद आ.रविन्द्र जी!
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन।
    मुझे स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया सर।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. विविधतापूर्ण रचनाओं का सुंदर अंक ।बहुत शुभकामनाएं आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी ।

    जवाब देंहटाएं
  7. 'शादी में' शामिल करने के लिए धन्यवाद यादव जी. सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं

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