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शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021
3252....जाते हुए पलों में
10 टिप्पणियां:
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बहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंपूरा पढ़ूंगी
धूप में बैठकर
आभार..
सादर..
चला रहा सदियों से आरी
जवाब देंहटाएंआशाओं के बाग खड़ा।
माँग बढ़ाता नित ही दायज़
अपनी हठ को लिए अड़ा।
लड़कियां आज कल मांग कर लेती हैं दहेज
ताकि उसे ससुराल उत्पीड़ित न होना पड़े
सुंदर अंक
बहुत सुन्दर रचनाओं का चयन किया गया है। मुझे भी जगह देने के लिये आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका श्वेता जी...। रचना का सम्मान देने के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सराहनीय संकलन।
जवाब देंहटाएंजाते हुए पलों में
हड़बडी में टटोली गयी स्मृतियों से
कुछ शब्दों की उभरी किर्चियाँ
चीर देती है अनायास
कोमल समय की उंगलियां... अहा!शब्द नहीं है क्या कहूँ।
मुझे स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय श्वेता दी जी।
सादर
बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंसार्थक सूत्रों से सज्जित अंक ।बहुत बहुत शुभकामनाएं श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक भूमिका के साथ सरस और मधुर रचनाओं से सजा सुंदर अंक प्रिय श्वेता | लघुकथा हो या कविता सभी को पढ़कर बहुत आनंद आया | सभी रचनाकार बधाई के पात्र हैं | सभी को नमन और शुभकामनाएं| तुम्हें आभार इस सार्थक अंक के लिए |
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता
जवाब देंहटाएंआने वाले पल में उजास मिलेगा या नहीं, लेकिन ठिठक कर उम्मीद तो लगा ही बैठते हैं .... पीछे की स्मृतियाँ कभी किरचें चुभोती हैं तो कभी कुछ सुखद पलों को भी ज़ेहन में ला खड़ा करती हैं ....जो कुछ भी हो आने वाले पल में कदमताल करते नए निशान बने इसी उम्मीद में.....
आज की प्रस्तुति का हर लिंक बेहतरीन ....
यूँ धर्मेंद्र जी ग़ज़ल बहुत अच्छी लिखते हैं लेकिन पारा और पानी से समझा दिया कि चमक ही सब कुछ नहीं ...भारती दास ने कहा कि सौंदर्य और सुगंध दोनो ही महत्त्वपूर्ण हैं ....अनुराधा जी ने ध्यान आकृष्ट किया सामाजिक कुरीति दहेज की ओर तो संदीप जी ने भूख का चित्र खींच दिया रही सही कसर अनिता जी ने पूरी कर दी यह बता कर कि वक़्त के साथ मोह का त्याग कर कुछ अपना भी ख्याल करना सीख लेना चाहिए स्त्रियों को ।
संक्षेप में शानदार प्रस्तुति ।
सस्नेह ।
बहुत ही मोहक प्रस्तुति
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