यह दुनिया जिन्दी लाशों से बनी दुनियां है
जहाँ मौत का कुंआ,होती बदबूदार गलियां हैं
जहाँ भूख से बिलबिलाते तन, मौत एक दवा है
क्षुधा अग्नि ,जलाती चिता बन कर दुआ है।
किसने बिछा दी, एक कोहरे की, चादर?
और जगा दी, अजीब सी कशिश,
अन्दर ही अन्दर, जगी सी इक चुभन,
बहकी-बहकी ये पवन,
अब, जाए किधर!
जब माली ही झंखाड़ों को जमने की इजाज़त देता है।
सिर्फ मधुवन ही
नहीं रोता,
पतझड़ भी
छुपकर रोता
है।
क्लांत चित्त को शांत करे जो
पल में धमके नहीं डरे वो
मिली प्रीति की फिर से थपकी
का सखि साजन! ना सखि झपकी।।
प्यार
एक हवा का झोंका हैं
जो आता है और चला जाता हैं
पलक झपकते
निधि राज़दान से स्कैम पर क्या कहती है NYT की रिपोर्ट
निधि राजदान ने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट सामने आने के बाद अपने एक ब्लॉग में लिखा है कि साइबर अपराध के शिकार कई पीड़ितों ने अपनी कहानियां साझा करने और अपना उपहास उड़ने के डर के बारे में मुझसे कॉन्टेक्ट किया. निधि ने कहा 'मैं चाहती हूं कि उन्हें पता चले कि जब आप किसी अपराध के शिकार होते हैं तो इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है, जो लोग सोचते हैं कि वे अचूक हैं, मैं उन्हें शुभकामनाएं देती हूं.*****
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन अंक...
जवाब देंहटाएंराजदान का राज़
पठनीय होगा
आभार..
सादर..
विविधता लिए हुए पठनीय अंक,आपको और सभी रचनाकारों को बहुत शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार
अति सुन्दर अंक ,हमारी रचना को पटल पर रखने के लिऐ ह्रदय से आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संयोजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंलाजवाब अंक
जवाब देंहटाएंमुझे इसमें शामिल करने के लिए आभार 🙏 आदरणीय
सादर