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सोमवार, 27 दिसंबर 2021

3255 ...मरा मानव पर जागी मानवता

सादर अभिवादन
दीदी का पाक्षिक अंक
तो मेरा भी पाक्षिक अंक
दीदी ने  अगर मासिक का मूड बना लिया तो
मुझ नासमझ को इतनी अकल नहीं कि 
ये तीसरा सप्ताह है या चौथा
आगे राम जी की इच्छा
चलिए रचनाओं की ओर




चमक-दमक बाहर की
श्वेत वस्त्र मन काला
तिलक भाल चंदन का
हाथ झूठ की माला‌
मनके पर जुग बीता
खड़ा बैर का ताना।।


कुछ अलग सा


गलत बोलने-करने वाला यह अच्छी तरह जानता है कि यदि उनके कदाचरण का विरोध सौ जने करेंगे तो उसके पक्ष में भी दस लोग आ खड़े होंगे ! उन्हीं दस लोगों की शह पर वह अपनी करनी से बाज नहीं आता ! पत्र-पत्रिकाओं में ''ये उनके निजी विचार हैं'', लिख औपचारिक खानापूर्ति कर देने से समाज में फैलाई जाने वाली कडुवाहट कम नहीं हो जाती ! इसीलिए ऐसे लोगों और उनकी बातों को बिलकुल नजरंदाज करने की बजाए बीच-बीच में गलत बातों का विरोध होना बहुत जरुरी है ! यह विडंबना है कि हमारे देश में कुछ भी बकने की आजादी तो है, पर अपना फर्ज-नैतिकता निभाने की कोई विवशता नहीं है !




जो करता था कभी हिफाज़त चरागों की,
दौर क्या बदला वो हवा हो गया,
वो मुर्दा तड़प रहा है दर्द से अभी,
कत्ल किया था जिसने अब वो ही गवाह हो गया,


आख़िर मैंने चाहना कम किया
वो कहती भी रही कम का
मगर कम भी तो कितना कम होता
अब कम क्या विलुप्त का पर्याय होगा
मगर.... चलो कोई बात नहीं




किस-किस तरह से आ गिरी रिश्तों पे बिजलियाँ,
टूटा था रिश्ता मेरा मगर सादगी के साथ ।

रिश्ता यूँ रक्खा ताक पे उसने भी इस तरह,
गुजरी हो अजनबी की जैसे अजनबी के साथ ।





मरा मानव
पर जागी मानवता
दम भर छलका करूणा का अमृत
थामने को बढ़े आतुर हाथ,
और बाँटने को
आशा का नया बीजन।
समवेत स्वर।
सृजन!सृजन!!सृजन!!!
....
आज बस इतना ही

सादर 

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    हर रचना का अलग संदर्भ, विविधतापूर्ण रचनाओं का अंक । बहुत शुभकामनाएं आदरणीय दीदी 💐🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय सखी..
      शुभ संध्या..
      भूलिएगा नहीं..
      भ्रमर कल मंगल को है
      अपने दैनिन्दनी में अंकित कर लीजिए
      रोज आना है..
      सादर..

      हटाएं
  2. प्रिय यशोदा ,
    अभी कुछ समय पाक्षिक ही हलचल लगाने दो , बाद में सोच लेंगे मासिक के लिए , वैसे आइडिया अच्छा है 😄😄
    आज के सभी लिंक बेहतरीन , शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय दीदी
      सादर नमन
      आप भी न...
      मैं तो आपको वापस साप्ताहिक पर लाने की सोच रही थी
      गनीमत आपने वार्षिक नहीं लिक्खा
      मैं तो मर ही जाती
      सादर

      हटाएं
  3. शुभ-प्रभात
    बहुत ही सुंदर लिंक प्रेषित किये हैं आपने...
    मेरी रचना को "पाँच लिंकों का आनन्द पर" में स्थान देने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर संकलन, मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर सूत्रों का संकलन। सुधाजी की समीक्षा-कृति के लिए आप सबका हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार अग्रज
      सखी सुधा ने पटरी बदल ली है
      ये दूसरी समीक्षा है...
      सार नमन..

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. आदरेषु
      शुभ संध्या...
      आपकी रचना...
      इश्क है गुलाबों वाला
      कल मंगल के अंक को शिड्यूल हुई है
      पधारिएगा..
      सादर..

      हटाएं
  7. शानदार लिंक्स , शानदार प्रस्तुति, सभी रचनाएं बहुत आकर्षक और सुंदर।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को पाँच लिंक पर स्थान देने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  8. उम्दा लिंको के साथ लाजवाब प्रस्तुति... मेरी समीक्षा को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आ. यशोदा जी!
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत शानदार लिंक्स रहे।
    हर्ष जी को पढ़कर बहुत अच्छा लगा
    विश्व मोहन जी की किताब के बारे में जाना।

    जवाब देंहटाएं

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