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बुधवार, 27 जनवरी 2021

2021..लौ न गणतंत्र की बुझाने पाए..

 

।। उषा स्वस्ति ।।


दिल्ली को दिया गया ये दर्द असहनीय है...सर झुक रहा,क्या..
ये हमारे किसान या हमारे लोग हैं अगर ये है तो इन्हें क्या कहा जाये...
अज्ञेय जी के शब्दों के साथ आज लिंको पर नज़र डालें...

"सुनो हे नागरिक! अभिनव सभ्य भारत के नये जनराज्य के

सुनो! यह मंजूषा तुम्हारी है।

पला है आलोक चिर-दिन यह तुम्हारे स्नेह से, तुम्हारे ही रक्त से।

तुम्हीं दाता हो, तुम्हीं होता, तुम्हीं यजमान हो।

यह तुम्हारा पर्व है.."

 अज्ञेय


पक्षियों को आजाद कर दीजिए


आजाद कर दीजिए घरों में कैद पक्षियों को ये पिंजरा हमारी भौतिक इच्छाओं की पराकाष्ठा है...। हम पक्षी को नकली मानकर उसे भी पिंजरे में ही देखना पसंद करते हैं... जिस तरह से असल पक्षी होता है...। हमें पक्षी को आखिर कैद क्यों करना है, क्यों हमने इस मानसिकता को इतना जड़ बना लिया है कि बाजार भी समझ गया कि हम पक्षी को कैद में रखने की इच्छाओं पर काबू नहीं कर पाएंगे... हालांकि एक और तर्क ये भी हो सकता है कि असली पिंजरे सेतो यही सही है लेकिन मेरी
❄️❄️

 
धन्य कोख,सैनिक जो जन्म करती है।
-----
शपथ लेते, 
वर्दी देह पर धरते ही 
साधारण से 
असाधारण हो जाते
❄️❄️

Dr. Varsha Singh


लौ न गणतंत्र की बुझाने पाए


       - डॉ. वर्षा सिंह


हमने दिल में ये आज ठानी है

एक दुनिया नई बसानी है


जिनके हाथों में क़ैद है क़िस्मत

हर ख़ुशी उनसे छीन लानी है


दिल के सोए हुए चरागों..

❄️❄️


ये भारत के वीर


प्राण हथेली पे लिए

चौकस रहते वीर

गर्मी बर्षा शीत में

होते नहीं अधीर।


हर्षित मात वसुंधरा

पाकर ऐसे रत्न

अरिदल चकनाचूर

❄️❄️





पीले पुष्पों से लदे वृक्ष
जल में से झांकती 
उनकी छाया
हिलती डुलती बेचैन दीखती
अपनी उपस्थिति दर्ज..
❄️❄️
.
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

11 टिप्‍पणियां:

  1. गणतंत्र दिवस पर राजधानी में मचे हुडदंग ने मन व्यथित कर रखा है।
    सटीक भूमिका के साथ सुंदर सूत्रों से सजी सराहनीय प्रस्तुति।
    मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार आपका दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात..
    व्यथित है मन
    पर जो हुआ उसका प्रचार -प्रसार में योगदान न देना ही श्रेयकर है,
    हम पत्रकार नहीं हैं..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. सराहनीय प्रस्तुति
    सामयिक उम्दा लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय पम्मी सिंह 'तृप्ति'जी,
    सर्वप्रथम तो कृपया मेरी ग़ज़ल के मिसरे को आज के इस अंक का शीर्षक बना कर मुझे सम्मानित अनुभव कराने के लिए मेरा हार्दिक आभार स्वीकार करें। 🙏
    वास्तव में कल गणतंत्र दिवस को भारत की राजधानी दिल्ली में जो हुआ, ऐसा पहले किसी भी गणतंत्र दिवस में नहीं हुआ था। ईश्वर से प्रार्थना है कि भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो।
    सभी लिंक्स अच्छी हैं। मेरी ग़ज़ल को आपने शामिल किया, यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
    हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  5. व्वाहहह..
    बेहतरीन अंक..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  6. धन्यवाद आज के अंक में मेरी रचना को स्थान देनी के लिए

    जवाब देंहटाएं
  7. दिल्ली में हुए शर्मनाक कृत्य से वास्तव में मन आहत हुआ । बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी 🌹 सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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