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सोमवार, 3 अगस्त 2020

1844 हम-क़दम का एक सौ उन्तीसवाँ अंक..पदचिन्ह

स्नेहिल अभिवादन
पद-चिन्ह
क़दमों के निशां
कोई चलता पदचिन्हों पर, कोई पदचिन्ह बनाता है ,
बस वही सूरमा वीर पुरुष ,दुनिया में पूजा जाता है l
देता संघर्षो को न्योता, मानवता की खातिर जग में ,
ठोकर से करता दूर सदा, जो भी बाधा आती मग में ,
जो दान रक्त का देकर भी,अपना कर्तव्य निभाता है

सर्वप्रथम प्रतिष्ठित रचनाएँ

स्मृतिशेष महादेवी वर्मा
पथ को न मलिन करता आना,
पद चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली!"


आदरणीय स्वप्निल श्रीवास्तव
गीली-गीली पगडंडियों पर
साँचे की तरह छप गए हैं पदचिन्ह
मिट्टी की नींद को तोड़ते हुए ये पदचिन्ह
कलाकृतियों की तरह आकर्षित करते हैं

आदरणीय विजय गौड़

रेतीले रास्तों को पार कर
दौड़ते पशुओं के झुण्ड
ढूँढते ही रहे हरी घास

अज्ञात, अन्जान जगहों की यात्राओं में
दौड़ती दुनिया
छोड़ती रही है पद चिह्न
सांझी संस्कृतियों के


आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा (दो रचना)
क्या गाती विहाग, नींद से जागी प्रभात?
या क्षितिज पे प्रेम का, छलक उठा अनुराग?
या प्रीत अनूठा, लिख रहा प्रभात!

पदचिन्ह हैं ये किसके....

न जाने किन पदचिन्हों पर अग्रसर,
पल पल कितने ही मिश्रित अनुभव,
संग्रहित कर रहा इन राहों पर मानव।

आदरणीय विश्वमोहन जी
चंदामामा के साथ चार दिन

अब मैं अपनी  जन्मभूमि से तीन लाख चौरासी हज़ार चार  सौ  बीस  किलोमीटर की दूरी पर ठीक उसी जगह अपने पदचिन्हो को आरोपित कर रहा था, जहां नील साहब सहित बारह अन्य चन्द्रयात्रियों के पदछाप साफ साफ दीख रहे थे. चंद्रमा पर न कोइ वायुमंडल है न हवाओं का अत्याचार. इसलिये वहां वायु के द्वारा भूक्षरण की प्रक्रिया का नामो निशान नही है. सम्भवतः इसी कारण आने वाली सदियों  तक ये सारे चरण चिन्ह ऐसे ही अपने मूल स्वरूप  मे संरक्षित  रहेंगे.और यह बात हमारे लिये अद्भुत रोमांच  का विषय  था.





आदरणीय हरिहर झा
पगलाई आँखें ढूंढती ...
पगडंडी के पदचिन्ह से भी
क्षितिज देखा हर जगह  
पगलाई आँखें ढूंढती अपने पिया को हर जगह।  

फूल सूंघे, छुअन भोगी
सपन का वह  घर
कचनार की हर डाल लिपटी राह  में दर दर
मधुरस पिया जम कर वहीं
छाया चितेरा जिस जगह
पगलाई आँखें ढूंढती अपने पिया को हर जगह।



आदरणीय डॉ. सुशील जोशी
सुना है 
शायद 
है आज है 

पदचिन्ह 
हैं मिटाने हैं 

नये 
अपने 
बनाने हैं 

‘उलूक’ 
साफ करने हैं

बहुत हैं
सारे 
हैं इतिहास हैं । 

हमारे पाठकों द्वारा रचित रचनाएँ

आदरणीय साधना वैद
न आवाज़ न आहट
न पदचाप न दस्तक,
युग-युग से उसके मन के
इस निर्जन वीरान कक्ष में
कोई नहीं आया !


आदरणीय आशा सक्सेना
जब हो आचरण ऐसा कि
 पद चिन्हों  पर चल कर जिसके
गर्व होने लगे  श्रद्धा में सर झुके
 सब कहें किसके अनुयाई हो |
 बात यही  आकर्षित करती  सब को
पहले जानकारी लेते अनुयाइयोँ से
फिर दिल की इच्छा जानना चाहते  
स्वीकृति मिलती तभी कदम आगे बढ़ाते |

आदरणीया अनीता सैनी
विचार बुनते हैं ज़िंदगी

रुठी  नज़्म ज़िंदगी की,
बारिश की बौछारों  से फिर महकाने  लगती है ज़िंदगी |
कागज़ की कश्ती पर सवार कुछ  ख़्वाबों को  ,
अपनत्व के भाव से फिर पुकारने लगती है ज़िंदगी |


आदरणीय शुभा मेहता

पदचिन्ह .......?
किसके पदचिन्हों का 
करूँ अनुसरण 
यहाँ तो पदचिन्हों का जमावडा है ,
छोटे -बडे ,टेढे -मेढे 
सब एक दूसरे में गड्डमड्ड 
दिखाई नहीं दे रहा कुछ साफ 
करना चाह रही हूँ 

आदरणीय कुसुम कोठारी
विरानों में पदचिन्ह
विराने समेटे कितने पदचिन्ह
अपने हृदय पर अंकित घाव
जाता हर पथिक छोड छाप
अगनित कहानियां दामन में
जाने अन्जाने राही छोड़ जाते
एक अकथित सा अहसास



आदरणीय सुबोध सिन्हा (तीन रचना)
पर साहिब !! .. आइए .. निहारिये ना एक बार .. 
हमारी बेबस बर्बादी के अवशेष,
वीरान हुए .. बहे खेत-खलिहान, 
बची-खुची .. टूटी-फूटी मड़ई के शेष,
और रौंदने के बाद के कई-कई भयावह मंज़र
गुजरे उफनते सैलाबों के पद-चिन्हों के।


संग-संग गुज़ारे लम्हों की
टहपोर लाल आलते में
सिक्त पाँवों से
मेरी सोचों के 
गलियारे से होते हुए
मन के आँगन तक

एहसासों के पद चिन्ह
सजाती रहती है,
आहिस्ता-आहिस्ता,
अनगिनत ..
अनवरत ..
बस यूँ ही .


कालखंड की असीम सागर-लहरें
संग गुजरते पलों के हवा के झोंके,
भला इनसे कब तक हैं बच पाते
पनपे रेत पर पदचिन्ह बहुतेरे।
यूँ ही तो हैं रूप बदलते पल-पल
रेगिस्तान के टिब्बे भी तो रेतीले सारे ।
तभी तो "परिवर्तन है प्रकृति का नियम" -
हर पल .. हर पग .. है बार-बार यही तो कहते।

आदरणीय ऋतु आसूजा
 कर्मवीरों के पदचिन्ह
कविता "जीवन कलश": February 2016
महान विभूतियां
सत्य मार्ग की
जागृति हैं आज सभ्य
समाज की, सत्य धर्म
के कर्मवीर के पदचिन्हों का
अनुसरण सफल जीवन
का प्रथम उद्देश्य
इतिहास गवाह है
जिन पदचिन्हों का।
....
इति शुभम्
रवीन्द्र भाई अपने गृहग्राम गए हैं
और कल ही लौटेंगे
कोई न कोई तो आएगा ही
एक सौ तीसवाँ विषय लेकर
आपको आमंत्रित करती हूँ
आप आएंगे क्या
कभी तो हमारे पाठक स्वीकृति दें कि
हम आएँगे....
सादर..

16 टिप्‍पणियां:

  1. सस्नेहाशीष शुभकामनाओं के संग छोटी बहना
    सराहनीय प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी |

      हटाएं
    2. आदरणीया मैम,
      सादर नमन।
      अत्यंत सुंदर प्रस्तुति आपके द्वारा। पढ़ कर मन आनंद से भर गया।
      "आपको आमंत्रित करती हूँ
      आप आएंगे क्या
      कभी तो हमारे पाठक स्वीकृति दें कि
      हम आएँगे...."
      सादर..
      आपके इस कथन के विषय में एक जिज्ञासा थी। आज अपने सभी पाठकों को प्रस्ताव दिया आने का , यह किस संदर्भ में ?
      यदि कुछ ऐसा है जिसमें पाठक भी जुड़ सकते हैं तो फिर मेरा अनुरोध है की मुझे भी आने की अनुमति दीजिये। यह सही है की सहयोग देने योग्य तो मैं नहीं हूँ, आप सब मुझे अपनी शिष्या मान के ले लीजिये, आप के मार्गदर्शन में रहूंगी और आप जो- जो कहें वो करुँगी।
      इस मंच से जुड़ना मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी। आप सबों से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।

      हटाएं
  2. खूबसूरत प्रस्तुति । मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। सभी रचनाएँ पदचिन्ह विषय पर सुंदर चिंतन हैं। यह मेरी एक और बहुत प्रिय प्रस्तुति है। सभी रचनाएँ प्रेरणादायक हैं और कुछ कुछ के कोमल मनोभाव मन को हर्षित भी करते हैं । हर कृति को पढ़ कर आनंद आया।
    पांच लिंकों का आनंद हमारे लॉक डाउन का अच्छा साथी बन चूका है और हमारी दिनचर्या का वो हिस्सा है जिसके लिए हम सब उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं।
    मेरे लिए यह स्थान विशेष महत्व रखता है क्योंकि यहाँ मुझे नई प्रेरणा के साथ साथ आप सबों का प्रोत्साहन और आशीष भी मिलता है।
    ह्रदय से आभार। आप सबों को प्रणाम एवं रक्षाबंधन की शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. रक्षा बंधन के पावन पर्व पर आप सभीको हार्दिक शुभकामनाएं एवं अभिनंदन ! बहुत सुन्दर सूत्रों का चयन आज के संकलन में ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  6. सभी रचनाकारों की बेहतरीन रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय यशोदा दीदी के द्वारा।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. पद चिन्ह पर देर से आई, बहुत सुंदर प्रस्तुति, शानदार रचनाकारों की पदचिन्ह पर मनभावन अभिव्यक्ति।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरे पदचिन्हों को जगह देने के लिए हृदय तल से आभार।
    भूमिका के साथ महान रचनाकारों के पदचिन्ह सदा प्रशंसनीय।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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