से ज़िन्दगी संवारी जाए,
कभी कभार क्यों न
ज़मीर के लिए
जीत के
बाज़ी हारी जाए - -
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
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इस से पहले कि बेवफ़ा हो जाएँ
जवाब देंहटाएंक्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ
सादर नमन..
धन्यवाद यशोदा जी
हटाएंसराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभावभीनी हलचल
जवाब देंहटाएंनमस्कार रवींद्र जी , अच्छी प्रस्तुतियां हैं परंतु आज इतनी कम क्यों हैं
जवाब देंहटाएंसादर नमन.
हटाएंइस पटल पर हम हर रोज़ केवल पाँच रचनाओं के लिंक प्रस्तुत करते हैं. विशेष प्रस्तुतिओं में संख्या बढ़ जाती है.
इस अंक कविताएँ कम गद्य रचनाएँ ज़्यादा हो गईं हैं.
सादर.
वाह!सुंदर प्रस्तुति अनुज रविन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति, मेरी रचना शामिल करने के लिए हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंSundar prastuti
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुति उम्दा लिंक्स...
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
वाह बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसराहनीय. 'चीनी यात्री'को शामिल करने के लिए धन्यवाद.
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