बंद मुद्दों के पिटारे, ज़िंदा हैं सिसकियाँ
मुर्दे के फुदने से लटकायी कठपुतलियाँ
खेल रचे सच-झूठ और रहस्योद्घाटन के
तमाशबीन रोमांच से पीटते हम तालियाँ
आले पर रोटी और पैताने मनुष्यता रख
जीभ पर झंडे उठाये देकर हम गालियाँ
देशभक्ति का लबादा प्रदर्शनी में पहने
मुँह में जड़ ताले,आँखों में लगा जालियाँ
न भूख,न बेकारी,न बाढ़ और न बीमारी
मनोरंजक बातें करते 'हम' और मीडिया।
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
बहुत जगह लगे दिखे लहराते हुऐ हवा में
कई कई वर्षॉं से टिके
खिड़कियाँ भी नहीं थी ना ही दरवाजे थे
कहीं दिखा ही नहीं
लेकिन सवाल यह है कि आग में वो ही क्यों कूदे? सती-प्रथा हो या जौहर, एक नारी के लिए ये समाज की कुदृष्टि से बचने के लिए चुना गया अंतिम विकल्प है जो दुर्भाग्य से सामूहिक भी होता आया है. कितने दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण होते होंगे वो पल, जहाँ उसे इस बात का पूरा भरोसा हो जाता है कि उसके मान-सम्मान की रक्षा करने वाला कोई नहीं! और लोग इसे महानता कहकर अपनी शर्मिंदगी पर पर्दा डाल देते हैं! हाँ, वो सचमुच महान है पर पुरुष समाज से निराश भी!
जब लाइफबॉय से नहाएँ
तो फिर पियर्स से नहायी
'लकी' चेहरा वाली 'आँटी'
किसी भी 'कम्पटीशन' के पहले
अब हम भला कहाँ से लाएँ ?
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं.
मिरी नज़रें भी ऐसे क़ातिलों का जान ओ ईमाँ हैं.
निगाहें मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं.
अपने विषय विशेष के साथ
सादर
हमारे मुहल्ले भर की चाची
जवाब देंहटाएंजब लाइफबॉय से नहाएँ
तो फिर पियर्स से नहायी
'लकी' चेहरा वाली 'आँटी'
किसी भी 'कम्पटीशन' के पहले
अब हम भला कहाँ से लाएँ ?
सुबह की मुस्कान..
आभार ..
सादर..
आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंवाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंजी! आभार आपका ... आज की अपनी इंद्रधनुषी प्रस्तुति के साथ इस मंच पर मेरी रचना/ विचारधारा को स्थान देने के लिए .. साथ ही अंत में एक पसंदीदा बंद -
जवाब देंहटाएं"तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों के चादर तान लेते हैं"
को समेटे ग़ज़ल से रूबरू कराने के लिए भी ...
रही बात आपके आज के प्रस्तुति के आगाज़ की तो ...
"न भूख,न बेकारी,न बाढ़ और न बीमारी
मनोरंजक बातें करते 'हम' और मीडिया।"
हम या मीडिया भी भूख, बेकारी, बाढ़ या बीमारी की बात करके समस्या का निदान तो कर नहीं पाते कभी। हम अपनी रचनाओं से अपनी और मीडिया अपनी बातों से TRP की होड़ में लगे रह जाते हैं और निदान कोई तीसरा सच्चा समाजसेवी इंसान या संस्थान कर जाती है .. शायद ...
निदान के लिए सरकार के साथ-साथ हमें भी Ground Zero Reporting वाले मीडिया की तरह वहाँ तक जाना होगा, पर रिपोर्टिंग के लिए नहीं, बल्कि सोनू सूद ( ना चाहते हुए भी बार-बार नाम लेना पड़ता है) की तरह निदान के लिए ..शायद ...
बहुत बहुत शुक्रिया श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंआभार
सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंसशक्त संकलन
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