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बुधवार, 26 अगस्त 2020

1867..मैं प्रपंच गुड की मक्खी..

।। भोर वंदन ।।
कोई मौसम इतना अधूरा नहीं होता
कि उसका होना ही खटकने लगे,
कोई मौसम मौसम इतना निर्दय नही होता
कि तबाह करे जीवन,

कोई मौसम जर्जर नही होता
अतीत का खंडहर नही होता
कोई मौसम बंजर नही होता,

एक मौसम में बीज बोया जाए तो
वही खिलता है दूसरे मौसम में..।
शंकरानन्द
सच है कि अधूरा कुछ नहीं होता। परिवर्तन समय की मांग है, एक रचनात्मक प्रक्रिया जो 
विश्वास जगा कर सोच और कर्म की जमीन बनातीं हैं..
 तो फ़िर इसी सोच के साथ आज की लिंकों पर नज़र डालें..✍️
आ० जयश्री वर्मा जी..जो उनकी याद आई

आज जो उनकी याद आई,तो आती चली गई 
शाम ख़्वाबों की बदरी छाई,तो छाती चली गई।
वो मुस्कुराना आँखों में,बहक जाना बातों में , 

और झूठ पकड़े..

🌺🌺
आ० गिरिजा कितने चौराहे कुलश्रेष्ठ जी...कितने चौराहे

हर सुबह करती हूँ एक प्रण
फेंककर आवरण
आलस्य का , 
करनी ही है पूरी
आज कोई कहानी
नई या पुरानी ..
या कुछ नहीं तो लिख ही डालूँ..

🌺🌺

आ० सुधा देवरानी जी..अहंकार 

मानसूनी मौसम में बारिश के चलते,

सूखी सी नदी में उफान आ गया ......
देख पानी से भरा विस्तृत रूप अपना,
इतराने लगी नदी, अहंकार छा गया.....
बहाती अपने संग कंकड़-पत्थर,

फैलती काट साहिल को अपने...

🌺🌺

भी है ख़ून में पानी अभी सैलाब देखेंगे,
अभी तो गूँज लो नारों 
चिता में आग देखेंगे। 

बजा लो मज़लिसों करतल 
लगा लो जीत के नारे, 
क़दम पर हुक्मरानों के 
तुम्हारे ख़्वाब देखेंगे..

🌺🌺

आ० आशा जोगलेकर जी की रचनाओं के साथ आज की प्रस्तुति यहीं तक..

मैं प्रपंच गुड की मक्खी

मैं प्रपंच गुड पर बैठी मक्खी,
गुड पर बैठ बैठ इतराऊँ
अपने देह ताप से और लार से
पिघले गुड से मधु रस पाऊं
रस पीते पीते खूब अघाऊं..

🌺🌺
हम-क़दम का नया विषय
🌺🌺
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

9 टिप्‍पणियां:

  1. पाँच लिंकों का आनंद में स्थान देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद पम्मी सिंह 'तृप्ति' जी !🙏 😊

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर सराहनीय प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन
    सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं......
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद एवं आभार पम्मी जी!

    जवाब देंहटाएं

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