सादर
अभिवादन।
मंगलवारीय प्रस्तुति में
आपका
स्वागत
है।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव
दिलचस्प होता जा रहा है
दोनों उम्मीदवारों का प्रचार
भारत से निकटता दर्शा रहा है
राजनीति भावुक दृष्टिकोण
बख़ूबी तलाश लेती है
सत्ता हथियाने के बाद
सिर्फ़ अपने हित-लाभ में
बस अपने लिए सांस लेती है।
-रवींद्र
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
जो फल नहीं पाईं कभी
ऐसी दुआओं से घिरे !
क्यूँ जी रहे हो जिंदगी
यूँ छद्म भावों से घिरे !
बस मौन हो सहते रहे
हर जुल्म को,अन्याय को
तुम बाँच भी पाए कहाँ
आयु के हर अध्याय को ।
मुझे मान है इस धरती के
नदिया पर्वत अम्बर पर
मुझे गर्व चरणों को धोते
विनत भाव से सागर पर !
कण्ठ कण्ठ से जहाँ फूटता
भारत माँ का गान है
मैं भारत की बेटी हूँ
और भारत मेरी शान है !
हर
बार
अपने
वजूद
के
प्रवाह
के
पहले
मुझे
जुड़ना
होता
है
खुद
पतवार
बनना
होता
है
ये
सच
है
कि,
मैं
खंडित
होती
हूँ
कुछ
बातों
से,
जज्बातों से
आपदाओं
से,
विपदाओं से
लेकिन
ठीक
उसी
वक्त
मुझे
ईश्वर
की
खंडित
प्रतिमा
किसी
मंदिर
के
आँगन
में
एक
कोने
में
रखी
मिलती
है
जुड़ नहीं पाता अपने परिवार की जड़ों से
खो देता है हक़ जिसका वह है हक़दार।
मल लेता है वह अपनी ही देह पर मटमैले दाग़
और ज़िंदगी भर धोता रहता है निष्ठा के घोल से।
घर से भागा लड़का अभागा होता है।
अपने ही बनाए दायरे में खड़ा स्वयं से जूझता है।
पर कहीं नहीं इन वीरों का,
इतिहास में नाम लिखा है,
इनके असीम बलिदानों को,
बस काल चक्र ने देखा है।
ऐसे ही एक गुमनाम वीर की,
में यह कथा सुनाती हूँ,
इन्हें और इनके परिवारों को,
में नित नित शीष झुकाती हूँ।
जिसका अपनी इन्द्रियों व भावनाओं पर पूरा नियंत्रण हो ! इसके साथ ही अपने जीवन भर के पुण्यों की आहुति, बिना किसी हिचक, सोच या पछतावे के, यज्ञ में होम कर सके ! क्योंकि उन्हीं पुण्यों के तेज और प्रताप से दैवी प्रसाद का निर्माण संभव था।
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हम-क़दम का अगला विषय है-
'मुंडेर'
उदाहरणस्वरूप उपन्यासकार / कवयित्री मनीषा कुलश्रेष्ठ जी की एक कविता-
एक औरत के गुनाह- मनीषा कुलश्रेष्ठ
"ये गुनाह हैं क्या आखिर?
ये गुनाह ही हैं क्या?
कुछ भरम,
कुछ फन्तासियां
कुछ अनजाने - अनचाहे आकर्षण
ये गुनाह हैं तो
क्यों सजाते हैं
उसके सन्नाटे?
तन्हाई की मुंडेर पर
खुद ब खुद आ बैठते हैं
पंख फडफ़डाते
गुटरगूं करते
ये गुनाह
सन्नाटों के साथ
सुर मिलाते हैं
धूप - छांह के साथ घुल मिल
एक नया अलौकिक
सतरंगा वितान बांधते हैं
सारे तडक़े हुए यकीनों
सारी अनसुनी पुकारों को
झाड बुहार
पलकों पर उतरते हैं
ये गुनाह
एक मायालोक सजाते हैं
फिर क्यों कहलाते हैं ये
एक औरत के गुनाह?"
- मनीषा कुलश्रेष्ठ
साभार : हिंदी समय डॉट कॉम
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी गुरूवार।
रवींद्र सिंह यादव
बेहतरीन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहद पसंद का शब्द
वाह!!अनुज रविन्द्र जी ,खूबसूरत प्रस्तुति ,दमदार भूमिका संग ।
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर व आनंदकर प्रस्तुति। सभी रचनाएँ सशक्त व प्रेरणादायक हैं।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिये हृदय से आभार। इस सुंदर व प्रव्म मयि साहित्यिक मंच से जुड़ना मेरे लिये सौभाग्य है।
आप सबों को प्रणाम ।
बहुत ही सुन्दर सूत्र आज की हलचल में ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार रवीन्द्र जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंमान देने हेतु हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसूंदर प्रस्तूति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति।मुझे स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुतियां, हमारे हिंदी ब्लॉग पर भी पधारें प्रेरणादायक सुविचार
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवींद्रजी, देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ। बेहतरीन लिंक्स का संयोजन। सोच के दायरे को विस्तृत करती हुई भूमिका। मेरी रचना को पाँच लिंकों में स्थान देने के लिए हृदय से धन्यवाद आपका। सादर।
जवाब देंहटाएंमहान क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को पंजाब में किशन सिंह और विद्यावती भगत सिंह के घर हुआ था। उन्हें 23 साल की उम्र में ब्रिटिश सरकार और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु ने लाहौर में एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी, जॉन सॉन्डर्स की हत्या के लिए फांसी पर लटका दिया था। यह नेशनल कॉलेज के संस्थापक लाला लाजपत राय की मौत के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारी से उसका बदला था, जो साइमन कमीशन के खिलाफ अपने मूक मार्च के दौरान मारा गया था। जॉन सॉन्डर्स ने लाठीचार्ज का आदेश दिया था जिसमें लाला लाजपत राय को बुरी तरह पीटा गया था, और बाद में उन्होंने दम तोड़ दिया।
जवाब देंहटाएंonline business ideas in hindi language