कफ़न लेकर
चल रही हवाओं के
दस्तक से खड़खड़ाते
साँकल के
भयावह पैगाम से।
क्योंकि
अंर्तमन को
अनसुना करना,
बात-बात पर चुप्पी साधना,
मज़लूमों को परे धकियाना,
जीने के लिए तटस्थ होना
सीख लिया है।
पर जाने क्यों
बहुत डर लग रहा है...
नफ़रत और उन्माद
का रस पीकर मतायी
लाल नरभक्षी चींटियों
के द्वारा
मानव बस्तियों की
घेराबंदी से।
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
घृणा-हिंसा को जयी किया बुद्ध ने
प्रेम-करुणा से
इस धरती की सारी हवा पानी आग
हिरण कछुए जंगल का पत्ता-पत्ता
उनके प्रेम में थे
तथागत की आँखें उनके गुरुत्व में
अर्धोन्मीलित हो गयी
साथ -साथ एक महान भाषाविज्ञानी थे।
स्व- स्वतंत्र: एक दृष्टिकोण
–विद्यालय में नामांकन के समय विद्यालय के आसपास के मुहल्लों के घरों में जा-जा कर अभिभावकों के आगे बच्चों के नामांकन के लिए गिड़गिड़ाना।
–शिक्षक को अपने ही वेतन के लिए चार-चार ,पाँच-पाँच महीने इंतजार करना।
इस भयावह कोरोना काल में सभी को घर में रहने के लिए लॉकडाउन में रखने के लिए सभी तरह से प्रयास किये गए और शिक्षकों को कोरोनटाइन सेंटर में कार्य पर लगाया गया। प्रवासियों के आने पर डॉक्टर से पहले स्टेशन पर शिक्षकों के द्वारा स्क्रिनिग करवाना। जनवितरण के दुकान में बैठकर करोनाकाल में भीड़ वाली जगह में अनाज वितरण करवाना.. उफ्फ्फ..
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आशा.है आज का अंक
आपको अच्छा लगा होगा।
हमक़दम के लिए
यहाँ देखिए
कल का अंक पढ़ना न भूले
कल आ रही हैं विभा दी
विशेष विशेषांक लेकर।
#श्वेता
सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छुटकी
जवाब देंहटाएंपर जाने क्यों
बहुत डर लग रहा है...
नफ़रत और उन्माद
का रस पीकर मतायी
लाल नरभक्षी चींटियों
के द्वारा
मानव बस्तियों की
घेराबंदी से।
सामयिक चिंतन
साधुवाद
सुंदर संकलन!
जवाब देंहटाएंमुझे डर नहीं लगता
जवाब देंहटाएंक्योंकि
अंर्तमन को
अनसुना करना,
बात-बात पर चुप्पी साधना,
मज़लूमों को परे धकियाना,
जीने के लिए तटस्थ होना
सीख लिया है।
बहुत ही सटीक पंक्तियो के माध्यम से आज के प्रस्तुति का प्रारब्ध किया है आपने। सुबह-सुबह एक सुंदर सी प्रस्तुति देखकर, प्रतिक्रिया किए बिना रह नहीं पाया।
साधुवाद ...शुभ प्रभात ... शुभकामनाएँ।
सार्थक भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुति प्रिय श्वेता। 🌷🌷💐🌷🌷
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक, सुन्दर हलचल
जवाब देंहटाएंपर जाने क्यों
जवाब देंहटाएंबहुत डर लग रहा है...
नफ़रत और उन्माद
का रस पीकर मतायी
लाल नरभक्षी चींटियों
के द्वारा
मानव बस्तियों की
घेराबंदी से।
बेहतरीन प्रस्तुति
सादर
सुन्दर लिंक बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंकों से सुसज्जित ।
जवाब देंहटाएंमेरी कृति को शामिल करने हेतु शुक्रिया ।
सादर ।
सुन्दर लिंक
जवाब देंहटाएंमुझे डर नहीं लगता
जवाब देंहटाएंक्योंकि
अंर्तमन को
अनसुना करना,
बात-बात पर चुप्पी साधना,
मज़लूमों को परे धकियाना,
जीने के लिए तटस्थ होना
सीख लिया है।
सबसे पहले इस कटु यथार्थ को इतने स्पष्ट और मुखर शब्द देने के लिए आप बधाई की पात्र हैं प्रिय श्वेता। यही ज्वाला हमारे दिलों में भी जल रही है, मन घुटकर रह जाता है। आपको पता है ना, बादल छाए रहें और बरस ना पाएँ तो वातावरण में उमस बढ़ जाती है। इसी घुटन और उमस ने जिंदगी को घेर रखा है जैसे.....
आज की बेहतरीन प्रस्तुति सुंदर लिंकों के साथ, मन को झकझोर देनेवाली भूमिका !!! हलचल के अंक में मेरी रचना को स्थान देने के लिए मैं हृदय से आपकी आभारी हूँ।