जय मां हाटेशवरी......
हर राह आसान हो, हर राह पर खुशियां हो,
हर दिन खूबसूरत हो, ऐसा ही पूरा जीवन हो,
यही दुआ है हमारी,
ऐसा ही तुम्हारा हर जन्मदिन हो।
पांच लिंकों का आनंद परिवार की ओर से......
आदरणीय विभा आंटी को......
जन्मदिन की शुभकामनाएं !!
इन की लिखी एक लघु-कथा से आज की हलचल का श्रीगणेश करता हूं......
नया सवेरा'-विभा रानी श्रीवास्तव
रुग्न अवस्था में पड़ा पति अपनी पत्नी की ओर देखकर रोने लगा, “करमजली! तू करमजली नहीं.., करमजले वो सारे लोग हैं जो तुझे इस नाम से बुलाते है..।”
“आप भी तो इसी नाम से...,”
“पति फफक पड़ा.. हाँ! मैं भी.. मुझे क्षमा कर दो!”
“आप मेरे पति हैं.., मैं आपको क्षमा...? क्या अनर्थ करते हैं..,”
“नहीं! सौभाग्यवंती...!”
“मैं सौभाग्यवंती...?" पत्नी को बेहद आश्चर्य हुआ...!
“आज सोच रहा हूँ... जब मैं तुम्हें मारा-पीटा करता था, तो तुम्हें कैसा लगता रहा होगा...!” कहकर पति फिर रोने लगा।
समय इतना बदलता है...। पति की कलाई और उँगलियों पर दवाई मलती करमजली सोच रही थी। अब हमेशा दर्द और झुनझुनी से उसके पति बहुत परेशान रहते हैं। एक समय ऐसा था,
जब उनके झापड़ से लोग डरते थे...। चटाक हुआ कि नीली-लाल हुई वो जगह...। अपने कान की टूटी की बाली व कान से बहते पानी और फूटती-फूटती बची आँखें कहाँ भूल पाई है,
आज तक करमजली फिर भी बोली,- “आप चुप हो जाएँ...।”
“मुझे क्षमा कर दो...,” करबद्ध क्षमा मांगता हुआ पति ने कहा।पत्नी चुप रही वह कुछ बोल नहीं पाई।
“जानती हो... हमारे घर वाले ही हमारे रिश्ते के दुश्मन निकले...। लगाई-बुझाई करके तुझे पिटवाते रहे...।
अब जब बीमार पड़ा हूँ तो सब किनारा कर गये। एक तू ही है
जो मेरे साथ...,"
“मेरा आपका तो जन्म-जन्म का साथ है...!"
पति फिर रोने लगा, "मुझे क्षमा कर दो...,”
“देखिये जब आँख खुले तब ही सबेरा...। आप सारी बातें भूल जाइए...,”
“और तुम...?”
“मैं भी भूलने की कोशिश करूँगी...। भूल जाने में ही सारा सुख है...।”
पत्नी की ओर देख पति सोचने लगा कि अपनी समझदार पत्नी को अब तक मैं पहचान नहीं सका...
आज आँख खुली... इतनी देर से...।
देखो भूला ना करो, मास्क लगाया करो
देखो भूला ना करो, मास्क लगाया करो
हम न बोलेंगे कभी, मास्क बिन न आया करो
जो कोई बीमार हुआ, सोचो क्या हाल होगा
इस ख़ता पर तेरी, कितना नुक़सान होगा
खुद भी समझो ज़रा, औरों को समझाया करो
जान पर मेरी बने, ऐसी क्या मर्ज़ी तेरी
क्या मैं दुखी रहूँ, यही चाहत है तेरी
लघुकथा : वो कुर्सी
अब भी बाहर दो कुर्सियाँ ले जाती हूँ ... एक पर बैठी ,बच्चों की गेंद के इस पार आने की प्रतीक्षा करती हूँ और हाथ में थामी हुई किताब को पढ़ने का प्रयास किये
बिना ही दूसरी खाली कुर्सी पर छोड़ देती हूँ ।
पास ही रखे 'कारवाँ' से गाना गूँज उठता है "ज़िंदगी कैसी है पहेली .... "
सच ये मन भी न कहाँ - कहाँ भटकता रहता है !
ये जरुरी तो नहीं
माना तुम्हारे हजारों दिवाने है जमाने में,
पर मेरी तरह तुम्हें चाहे कोई,
ये जरुरी तो नहीं……..
हर मोड़ पर मिलेगें कोई न कोई जिन्दगी की राह में,
पर मेरे जैसा कोई मिले,
ये जरुरी तो नहीं……..
दिल की गहराई
कौन कहता है गहराई सिर्फ समुंदर की होती है,
जरा दिल की गहराई में झाँक कर देखिए जनाब कई समुंदर समाए हुए मिलेंगे।।
जयचंदों को आज बता दो
लालच की विष बेल बो रहे
करके खस्ता हाल,
जयचंदों को आज बता दो
नहीं गलेगी दाल।
चयन हमारा ऐसा जिससे
बढ़े देश का मान,
विश्वगुरु फिर कहलाएँ और
भारत बने महान ।।
क्या है मेरे ‘मैं’ की परिभाषा
नहीं झुकें आपद के आगे
नहीं व्यर्थ के गाल बजाएं
‘मैं’ को पावन शुद्ध करे जो
‘उसमें’ ही सारा जग पाएं !
सब कुछ ठीक ही है - -
न ही कोई ज़िरह की
उम्मीद, सबूत
ही नहीं
फिर
भी ज़माने के नज़र में आप हैं
गुनाहगार, फिर भी यहाँ
सब कुछ ठीक है।
धन्यवाद।
सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार पुत्तर जी
जवाब देंहटाएंनमन योग्य प्रस्तुति
विभा रानी श्रीवास्व को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंअशेष शुभकामनाएँ आदरणीय दीदी को
जवाब देंहटाएंसादर नमन...
शुभकामनाएं विभा जी के लिये।
जवाब देंहटाएंविभा दीदी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति प्रिय कुलदीप जी। विभा दीदी को जसंम् दिन की> हार्दिक शुभकामनायें और बधाई। --🙏🙏🌹🌹💐💐🙏🙏
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की - टंकण अशुद्धि के लिए खेद है
हटाएंशुभकामनाए
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
आदरणीया विभा जी को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँँ💐💐💐💐💐💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति ।