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बुधवार, 5 अगस्त 2020

1846..यूँ ही बोलना मैं भी फ़कत सुनता रहूँगा..

।। उषा स्वस्ति ।।
मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ,
तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ,
फिर ऐसा कोई ख़ास कलम वर नहीं हूँ मैं,
लेकिन वतन की ख़ाक से बाहर नहीं हूँ मैं..!!
~ शम्स मीनाई
बोलो सियावर रामचंद्र की जय !! 
और इसी जयघोष के साथ
आज लिंकों की शुरुआत समसामायिक ग़ज़ल के साथ जिसके कलमकार है..✍
⚜️⚜️

ये दरिया सैलाब तो हर साल लाती है..
किसी के लिए यादों का मौसम बेमिसाल लाती है
किसी के लिए ये बारिश जीवन का काल लाती है

तुम पुख्ता क्यों नही करते सुखी जमीन का इंतजाम
ये दरिया सैलाब तो हर साल लाती है
ये मौतों का मंजर देखो और हुकुमतों से पूछो..
⚜️⚜️
आ० अरुण चन्द्र राय जी..

उजाले की मित्रता दिखती है
 वह परछाई की तरह कराता रहता है 
अपने होने का एहसास हर क्षण ।..
⚜️⚜️
 
हल्का हवा का झोंका
 प्राणवायु देते पेड़
 ठूँठ में तब्दील हो चुके हैं। 
कुछ पत्ते हैं उन पर पीले रंग के 
 झड़े नहीं वृक्ष को जकड़े हुए हैं।
टहनियों की 
धड़कनों से रिसती है घुटन।
नमी का एहसास..
⚜️⚜️ 


यह एक प्रचलित लोकोक्ति है कि ‘साहित्य समाज का दर्पण है’। अर्थात,  कोई भी साहित्य अपने समाज के प्रतिबिम्ब को हमारे सामने रखता है। साहित्यकार जिस समाज में जीता है, उसी की मिट्टी से अपनी रचना की उर्वरा शक्ति को प्राप्त करता है । उसी समाज के वे समस्त उपादान जो रचनाकार के रचनात्मक वातवारण
⚜️⚜️
तिवारी जी शौकीन मिजाज के आदमी हैं। उन्हें गुस्सा होने का शौक है। वो कभी भी कहीं भी अपना यह शौक पूरा कर लेते हैं। उनके गुरु जी ने उन्हें बचपन में सिखाया था की हर इंसान को कोई न कोई एक शौक जरूर रखना चाहिये। ..
⚜️⚜️ 
आ० दिगम्बर नासवा जी
मेरी फ़ोटो
अधूरी ख्वाहिशें रहती हैं दरवाज़ों में अपनी
तभी तो ज़िन्दगी जीते हैं सब टुकड़ों में अपनी
तू यूँ ही बोलना मैं भी फ़कत सुनता रहूँगा
सुनो शक्कर ज़रा कम डालना बातों में अपनी
⚜️⚜️
हम-क़दम का एक सौ तीसवाँ विषय
⚜️⚜️
।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’...✍







11 टिप्‍पणियां:

  1. जानदार, शानदार प्रस्तुति..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय पम्मी दी।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु दिल से आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. इँहा उमा जोषित की नाईं
    सबही नचावत राम गोसाईं।
    बहुत सुंदर संकलन। आभार और जय श्री राम।

    जवाब देंहटाएं
  4. अत्यंत सुंदर और अनंदकर प्रस्तुति। जीवंत व सम- समायिक रचनाओं से भरी हुई प्रेरणादायक प्रस्तुति।
    मनोरंजन के साथ साढ़ ज्ञान और मनो- मंथन का अच्छा साधन।
    प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छी और पठनीय रचनाओं के सार -संकलन का सुंदर प्रस्तुतिकरण । हार्दिक आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. राम जी की महिमा इतनी है की अनंत बोल सकता है कोई ...
    आभार मेरी गज़ल को मान देने के लिए ... देरी से आने की क्षमा ... बहुत सुन्दर सूत्र ...

    जवाब देंहटाएं

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