मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ,
तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ,
फिर ऐसा कोई ख़ास कलम वर नहीं हूँ मैं,
लेकिन वतन की ख़ाक से बाहर नहीं हूँ मैं..!!
बोलो सियावर रामचंद्र की जय !!
आज लिंकों की शुरुआत समसामायिक ग़ज़ल के साथ जिसके कलमकार है..✍
ये दरिया सैलाब तो हर साल लाती है..
किसी के लिए यादों का मौसम बेमिसाल लाती है
किसी के लिए ये बारिश जीवन का काल लाती है
तुम पुख्ता क्यों नही करते सुखी जमीन का इंतजाम
ये दरिया सैलाब तो हर साल लाती है
ये मौतों का मंजर देखो और हुकुमतों से पूछो..
उजाले की मित्रता दिखती है
वह परछाई की तरह कराता रहता है
अपने होने का एहसास हर क्षण ।..
ठूँठ में तब्दील हो चुके हैं।
कुछ पत्ते हैं उन पर पीले रंग के
झड़े नहीं वृक्ष को जकड़े हुए हैं।
यह एक प्रचलित लोकोक्ति है कि ‘साहित्य समाज का दर्पण है’। अर्थात, कोई भी साहित्य अपने समाज के प्रतिबिम्ब को हमारे सामने रखता है। साहित्यकार जिस समाज में जीता है, उसी की मिट्टी से अपनी रचना की उर्वरा शक्ति को प्राप्त करता है । उसी समाज के वे समस्त उपादान जो रचनाकार के रचनात्मक वातवारण
तिवारी जी शौकीन मिजाज के आदमी हैं। उन्हें गुस्सा होने का शौक है। वो कभी भी कहीं भी अपना यह शौक पूरा कर लेते हैं। उनके गुरु जी ने उन्हें बचपन में सिखाया था की हर इंसान को कोई न कोई एक शौक जरूर रखना चाहिये। ..
अधूरी ख्वाहिशें रहती हैं दरवाज़ों में अपनी
तभी तो ज़िन्दगी जीते हैं सब टुकड़ों में अपनी
तू यूँ ही बोलना मैं भी फ़कत सुनता रहूँगा
सुनो शक्कर ज़रा कम डालना बातों में अपनी
हम-क़दम का एक सौ तीसवाँ विषय
बहुत सुंदर हलचल.....
जवाब देंहटाएंजानदार, शानदार प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसादर..
बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय पम्मी दी।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु दिल से आभार।
जवाब देंहटाएंसादर
लाज़बाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइँहा उमा जोषित की नाईं
जवाब देंहटाएंसबही नचावत राम गोसाईं।
बहुत सुंदर संकलन। आभार और जय श्री राम।
सराहनीय प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर और अनंदकर प्रस्तुति। जीवंत व सम- समायिक रचनाओं से भरी हुई प्रेरणादायक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमनोरंजन के साथ साढ़ ज्ञान और मनो- मंथन का अच्छा साधन।
प्रणाम।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छी और पठनीय रचनाओं के सार -संकलन का सुंदर प्रस्तुतिकरण । हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंराम जी की महिमा इतनी है की अनंत बोल सकता है कोई ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी गज़ल को मान देने के लिए ... देरी से आने की क्षमा ... बहुत सुन्दर सूत्र ...