1848..प्रसन्न रहना बहुत सरल है, लेकिन सरल होना बहुत कठिन है
शुक्रवारीय अंक में आपसभी का स्नेहिल अभिवादन ------- रवींद्रनाथ टैगोर को पुण्यतिथि पर सादर नमन।
विश्वविख्यात साहित्यकार, चित्रकार, दार्शनिक, शिक्षाशास्त्री रवीन्द्रनाथ टैगोर किसी भी परिचय के मोहताज नहीं। हमारे देश के एक गौरवशाली व्यक्तित्व, इन्हें नोबल पुरस्कार के प्रथम भारतीय होने का गौरव प्राप्त है. इनकी रचना गीतांजली जिसमें धर्म, दर्शन, एवं विश्व मानवता के अनूठे संदेश से अनुप्रमाणित है, पर 1913 को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। राष्ट्रगान जन-गण-मन के रचयिता टैगोर जी बंगाल में नवजागृति लाने में उनका अनुपम योगदान रहा. प्रकृति प्रेमी, महान नाटककार, कहानीकार, अभिनेता, रवीन्द्रनाथ भारत के उन महान सपूतों में से एक हैं जिन्होंने अपने देश का नाम विश्व में अमर कर दिया. आज उनकी पुण्यतिथि पर पढ़ते हैं उनके कुछ अनमोल विचार- * सिर्फ़ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है जिसमे सिर्फ़ ब्लेड है. यह इसका प्रयोग करने वाले के हाथ से खून निकाल देता है। * वही पाए जीवन का सार जिसे प्यारा लगे सारा संसार. * थिरकने दो जीवन को समय के पंखो पर, जैसे ओस की नन्ही बूंद झूमती है पत्तों पर. * हर बच्चे के हाथों ईश्वर भेजता है यह पाती, कि इंसान में उसकी उम्मीद अब भी है बाकी * तितली मास नहीं पलों की गणना करती है और उसके पास पर्याप्त समय होता है। एक कविता नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से, मुझे बचाओ, त्राण करो विपदा में निर्भीक रहूँ मैं, इतना, हे भगवान, करो। नहीं मांगता दुःख हटाओ, व्यथित ह्रदय का ताप मिटाओ दुखों को मैं आप जीत लूँ,ऐसी शक्ति प्रदान करो विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,इतना, हे भगवान,करो। कोई जब न मदद को आये मेरी हिम्मत टूट न जाये। जग जब धोखे पर धोखा दे और चोट पर चोट लगाये – अपने मन में हार न मानूं,ऐसा, नाथ, विधान करो। –रबिन्द्रनाथ टैगोर– -----------
ये काका भरोसे करने लायक नहीं होते कांता और ये बच्चियां अपना दर्द किसी से कह नहीं पाती.इतना कहकर सरिता उन भयानक क्षणों को याद कर के सुबक उठी कांता को लगा.जैसे पिंकी के बहाने सरिता का कोई दर्द बह निकला हो ये आंसू सरिता के मानसिक जख्मों पर मरहम का काम कर रहे थे कांता कुछ बोल पाती इस से पहले ही मन ही मन निश्चय कर के सरिता जोर से बोली अब इन बच्चियों का भरोसा नहीं टूटेगा
मेरा बचपन करीब चार साल तक पंजाब में अपने दादा-दादी जी के साथ ही बीता था। सुना है कि उन्हीं दिनों मेरी आँखों में कोई बड़ा इंफेक्शन हो गया था ! उन दिनों चिकित्सा व्यवस्था इतनी व्यापक और उत्कृष्ट नहीं थी ! खैर जैसा भी था रोग पर काबू पा लिया गया होगा। फिर मेरा ''ट्रांस्फर'' कलकत्ता हो गया। उन दिनों पढ़ाई और स्कूलों की इतनी मारा-मारी नहीं थी। स्कूल भी कम और दूर-दूर हुआ करते थे। तब हम बंगाल के कोन्नगर में रहा करते थे। जब बाबूजी के कार्यस्थल से पांच-छह बच्चों का जत्था स्कूल जाने लायक हो गया तो हम सब एक-एक रिक्से में दो-दो जने लद रिसरा विद्यापीठ में जाने लगे। जो घर नौ-दस किलोमीटर दूर था। मेरा स्कूल में दाखिला चौथी कक्षा में हुआ था। उसके पहले की पढ़ाई घर पर ही हुई थी। और चलते-चलते रोज़ वैसे भी कौन लिखता है
क़तार में किसी के पीछे सिमट लिया था हर कोई किसी के नाम पर कुछ बनाने के जुनून का एक सिरा पकड़े हुऐ एक नाम आसमान होता दिखा था।------ सुनिये एक बेहद प्रेरक गीत
उम्मीद है आज का अंक आपको पसंद आया होगा। हमक़दम का विषय यहाँ देखिए कल का अंक पढ़ना न भूले कल आ रही हैं विभा दी विशेष प्रस्तुति लेकर। #श्वेता
बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति कविन्द्र रविन्द्र ठाकुर के जन्म दिवस पर सुंदर समायोजन। बहुत प्यारे लिंक । सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई। सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर। मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
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शुभकामनाएँ, सादर नमन
जवाब देंहटाएंराष्ट्र गीत के रचयिता को..
एक बेहतरीन अंक..
सादर..
सत्य कथन सरल होना कठिन है
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुति
धन्यवाद स्वेता जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को शुभकामनाए
बेहतरीन अंक
सादर नमन गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर जी को 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति श्वेता ।
आभार श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल ...
जवाब देंहटाएंसम्मिलित कर सम्मान देने हेतु अनेकानेक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति कविन्द्र रविन्द्र ठाकुर के जन्म दिवस पर सुंदर समायोजन।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारे लिंक ।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
बहुत अच्छी भूमिका के साथ सुंदर संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
आपको साधुवाद