वर्ष का 8वां माह भी बीतने को है......
करोना का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है......
दुनियां कहां जा रही है......
समझ से परे है.......
हे गजानंद-गणपती अब तो तुम ही रक्षा करो.....
देशभक्ति पर कुछ पंक्तियां
थोड़ा शर्म करो सियासत करने वालों
नमन तो करो देख जवानों का जज़्बा
सेना तुम्हारी ही हिफ़ाज़त में जाहिलों
करती सरहद पर है अपनी जान क़ुर्बां ।
मुंडेर
कोई बता नहीं सकता !
मेरी छत की मुंडेर इन पंछियों का
साझा आशियाना है, आश्रय स्थल है !
किसी भी किस्म के अंतर्विरोधों से परे
ये सारे पंछी यहाँ आकर हर रोज़
सह भोज का आनंद लेते हैं !
इनमें कोई ऊँच नीच, कोई अमीर गरीब
कोई छोटा बड़ा नहीं होता !
सब प्यार से हिलमिल कर रहते हैं
और सह अस्तित्व के सिद्धांत पर
निष्काम भाव से चलते हैं !
मरहमका भरम - -
मरहम के भरम में सीने के ज़ख्म
भरता है आम आदमी, नई
सुबह की आस में हर
एक पल कड़ुए घूँट
निगलता है आम
आदमी ।
व्यवस्थाके खिलाफ विद्रोह की पुरज़ोर आवाज़: "अस्थिफूल"
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ लेकिन यह आजादी विभाजन के कंधे पर चढ़कर
आई। अपने नेताओं की बात को भारतवासियों ने स्वीकार कर लिया कि विभाजन के
बिना शायद आजादीका सपना पूरा ही नहीं हो सकता और आजादी की खुशी के रंगों के बीच विभाजन
का बदनुमा दाग हमेशा अखरता और कसकता रहा। 1947 में विभाजन का जो
दुस्वप्न हमने देखाथा, वह पहला भले ही था अंतिम बिल्कुल नहीं। उस दिन तो विभाजन की महज
शुरुआत हुई थी, तब से देश में लगातार होनेवाले विभाजनों का सिलसिला अब भी
जारी है, कभी भाषा,कभी प्रांत, तो अभी जाति के नाम पर। बड़े -बड़े राज्य दो टुकड़ों में बंटकर
दो नामों से तो जाने गए लेकिन इससे वह कितना समृद्ध या अशक्त हुए यह एक
बहस सापेक्ष प्रश्न है। कुछ बड़े राज्य जिस तरह दो खंडों में बंटे उसी तरह बिहार भी
विभाजित हुआ और झारखंड अस्तित्व में आया। उत्साही कार्यकर्ताओं और
आंदोलनकारियों ने "धुसका चना, खाएंगे झारखंड बनाएंगे" का जुझारू उद्घोष करते हुए लंबे आंदोलन के
बाद झारखंड तो बना ही लिया,
ऐ जिंदगी
हमने तो कभी सोचा ही नहीं,
नुक्शानों मे जिए कि नफ़ोंं मे।
ऐ जिंदगी, मुझको अब इतना भी मत तराश कि
बदन की दरारें, नींद मे खलल का सबब बन जांए।
अनाम फूल की ख़ुश्बू - -
मगर, ये बंजारे भटकते जाते
सागर तट के घरौंदें ज्यों
बहते जाये लहरों के बीच।
अब अंत में.......
आदरणीय विभा आंटी के ब्लॉग से.....
फैसला
"मत भूलो कफ सिरप और सैनिटाइजर में भी अल्कोहल है। वैसे हूमन पीना छोड़
देने का वादा किया है। उसका दिल सफेद हो रहा। हम स्याह को भूलने की कोशिश
कर सकते हैं।"
हनीफ़ की बातों से उसकी पत्नी सहमत हो रही थी और हूमन सधा दम को सम्भालने
में व्यस्त दिखा।
धन्यवाद।
शानदार प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआभार...
सादर.
स्तब्ध हुई
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका
शानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत लिंक्स का चयन आज की हलचल में ! मेरी रचना 'मुंडेर' को आज की प्रस्तुति में स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप भाई ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति उम्दा लिंक्स...
जवाब देंहटाएंगणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।