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सोमवार, 16 अप्रैल 2018

1004..हम-क़दम का चौदहवां क़दम

सबने डटकर काम किया
सलाम सभी को
आज डर का प्रांगण हमारे हिस्से में
थोड़ा  डरे से हैं हम....
आदरणीय 
शिव खेड़ा जी ने एक पुस्तक लिखी
"डर के आगे जीत है"
शिव खेड़ा जी से मिले एक बार
वे स्वयं डरे से लगे...

चलिए चलते हैं देखते हैं... 
साहित्य शिल्पियों की कलम क्या कहती है...

टीपः रचनाएँ सुविधानुसार दी गई है

आदरणीय कविता बहन की पहली बार..

जिससे बचना मुश्किल हो, उससे मूर्खता है डरना
कल क्या हो यह सोचकर आज क्यों डर के रहना

दुष्ट को क्षमा नहीं डर दिखाकर बस में करना भला
हमेशा के डर से उससे एक बार गुजर जाना भला
●●●●●★●●●●●

आदरणीय आँचल पाण्डेय दो कविताएँ

डर का कोई घर नही है
कब आता कोई खबर नही है
हर मन में छुपा होता है
सामने आने से डर डरता है
थोड़ी झिझक से थोड़ी हिचक से
हर कोई इसे छुपाता है

हाँ डर है मुझे

इस बदलते कायनात से
मरते जन के ज़स्बात से
बिखरते सबके अरमान से
इस बदनसीब जहान से
●●●●●★●●●●●

आदरणीय शुभा जी..
सुबह खाया तो शाम का ठिकाना नहीं
पर ,शायद डर नहीं कोई मन मेंं
कुछ चोरी हो जाने का
या फिर होने का अपमानित
हार जाने का या कुछ खो देने का 
दिखावे का या मान सम्मान का 
रोज़ अपमानित होने...
●●●●●★●●●●●

आदरणीय अपर्णा बहन का डर वाजिब है

जहां वो रहे महफूज़ हर बुरी नज़र से...
डरती हूँ कि..... 
नन्ही सी बच्ची, 
नहीं समझती 
गलत हरकतें,
समझ नहीं पाती
गंदे इशारे,
दौड़ जाती है 
एक चॉकलेट के लालच में
हर एक की गोद में,
हर इंसान को समझती है अपना,
●●●●●★●●●●●

आदरणीय नीतू जी...

डर व्याप्त सदा हो जिस मन में,
जीवित वो मृतक समान लगे,
कुंठा से मन व्याकुल प्रति पल,
कैसे सुंदर ये जहान लगे ,
●●●●●★●●●●●

आदरणीय डॉ. इन्दिरा जी की सोच

डरना और ठिठकना गति में 
सदा पूर्णतः वर्जित है 
डरा वही पल भक्षित कर गया 
जीवन मैं जो भी अर्जित है ! 
कण कण  हिम गलता और बनता 
क्षीर सिंधु सा जल विस्तार 
बूँद बूँद प्रवाहित होकर 
●●●●●★●●●●●

आदरणीय पूनम भाभी की कलम से
My photo
डर से ना तुम डरना
निर्भीक हो के बढ़ना
सुनना जरूर सबकी
करना अपने मन की
डर कंहीं और नहीं,
है तुम्हारे अंदर।
मन का डर भगाना
डर से ना तुम डरना।।
●●●●●★●●●●●

आदरणीय आशा मौसी का कथन
मन का भय के लिए इमेज परिणाम
बचपन से ही डर लगता है
आदी नहीं  किसी वर्जना की
ऊंची आवाज से भयभीत हो
 अपने अन्दर सिमट जाती है
उस पर   है प्रभाव है इस कदर
अँधेरे में  सिहर जाती है
●●●●●★●●●●●

आदरणीय कुसुम जी का वाजिब भय
आजकल डर के कारण
सांसे कुछ कम ले रही  हूं 
अगली पीढ़ी के लिये
कुछ प्राण वायु छोड़ जाऊं, 
डरती हूं क्या रहेगा
उनके हिस्से
●●●●●★●●●●●

आदरणीय रानू जी..

नवजनित पुत्र से डर है माता पिता को ,
कहीं ये बड़ा होकर वृद्धाआश्रम ना छोड़ आये,
नवजनित पुत्री से डर है माता पिता को,
कहीं युवावस्था तक पहुंचते ये अपनी इज़्ज़त 
बलात्कारियों के पास न छोड़ आये...
●●●●●★●●●●●

आदरणीय साधना बहन..

कैसा डर ?
किससे डर ?
किस बात का डर ?
डरने की वजह ?
और फिर डरना ही क्यूँ ?
क्या खोने का डर है ?
●●●●●★●●●●●

श्री पंकज प्रियम जी

क्या खूब,कोई कह गया
जो डर गया,वो मर गया।
वो जीता नही,वो हार गया
डर से डर के जो डर गया।
हैं नही अमर ,जानते मगर
मौत से यहां,सब डर गया।
●●●●●★●●●●●

आदरणीय अर्चना जी..
मौत पर कविता
मौत है ऐसी दुखद घटना 
ना जाने ये कब आ जाए
इसके डर से तो सब जाने 
अच्छों- अच्छों की शामत आए
●●●●●★●●●●●

आदरणीय सुधा सिंह जी

जरूरी है थोड़ा डर भी
मर्यादित अरु सुघड़ भी
इसी से चलती है जिंदगी,
और चलता है इंसान भी

●●●●●★●●●●●

आदरणीय डॉ. सुशील जी जोशी
सच में कहा गया है 
और सच ही 
कहा गया है 
क्रोध वाकई में 
कपटवेश में 
एक डर है 
अपने ही अंदर 
का एक डर 
जो डर के ही 
वश में होकर 
बाहर आकर 
लड़ नहीं पाता है 
वैसे भी कमजोर 
कहाँ लड़ते हैं 
●●●●●★●●●●●
आत्म कथ्य
डर..
हर कोई डरता है
कोई मरने से
कोई जीने से
और तो और
कोई
डर-डर के जीने से
ऐसे डर से क्या डरना

सादर
दिग्विजय






22 टिप्‍पणियां:

  1. डर नहीं, ये भ्रम अवचेतन का
    शासित संशय स्पंदन का.
    जब जीव जगत है क्षणभंगुर,
    फिर, जीना क्या और मरना क्या.
    चल पथिक, अथक अभय पथ पर,
    मन में घर डर यूँ करना क्या!..............पूरी निडरता से बयान कर रहा हूँ. बहुत अच्छी रचनाओं का संकलन. बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. कहीं डर हैं, कहीं डरने पर प्रताड़ना है,कहीं अपने अंतर का डर तो कहीं बाहरी वातावरण मे व्याप्त वर्जनाओं का डर पर डर है जरूर कहीं गुरुर बन कर छिपा है कहीं भय बन कर दिख रहा है, वाह डर पर एक से एक अभाव्यक्ति सुंदर काव्य सृजन, सभी रचनाकारों को साधुवाद
    मेरे डर को जगह देने का हार्दिक आभार।
    शानदार प्रस्तुति नमन।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब बहुत अच्छी लिंक्स का संकलन |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर संकलन।धन्यवाद मेरी रचना को जगह देने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर संकलन।धन्यवाद मेरी रचना को जगह देने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर सोम्वारीय हलचल। एक पन्ने पर कई सारे डर समेट लिये आपने और उसके साथ 'उलूक' के डर को भी जगह दी आभार दिग्विजय जी।

    जवाब देंहटाएं
  7. आज लग रहा है कि डर हर व्यक्ति के मन में है, जो कहता है कि डर किस बात का वह भी कंही न कंही डरा हुआ है। आजकल आबोहवा ऐसी है कि सांसे भी लगता है कि डर डर कर निकल रही हैं।
    मेरे डर को सबके डर के साथ शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार भाई साहब।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह!!बहुत खूबसूरत संकलन । मेरी रचना को इस डर गाथा मेंं स्थान देने हेतु धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह डर पर सभी की रचनाएँ लाजवाब है एक से बढ़कर एक सभी को बधाई
    सुंदर प्रस्तुति
    हमारी रचना को मान देने के लिए अति आभार
    सादर नमन सुप्रभात 🙇

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह!डर पर बहुत सुंंदर अभिव्यक्ति..
    सुंदर प्रस्तुति धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर प्रस्तुति....हमारी रचना को मान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  12. आगे भी विषय पर लिखने का प्रयास करूंगी ..
    हम-क़दम का चौदहवें क़दम में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  13. आदरणीय सर,बहुत सुंदर प्रस्तुति है।
    डर अंतर्मन का एक व्यक्त एवं अव्यक्त भाव है जो जीवन के कल्पना एवं यथार्थ में मौजूद है।
    डर पर हमारे प्रिय रचनाकारों की रचनात्मकता की विविधापूर्ण अभिव्यक्ति बेहद सराहनीय है।
    सभी को.बहुत बहुत बधाई एवं आभार।

    जवाब देंहटाएं
  14. सर्वप्रथम साभार,सहृदय धन्यवाद मेरी रचना समिल्लित करने हेतु,और शुभकामनाएं कविता जी,आँचल जी,शुभाजी, अपर्णा जी,नीतू जी,इंदिरा जी,पूनम जी,आशाजी,कुशुम जी,साधना जी, पंकज जी,सुधा जी,सुशील जी,
    सबकी रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं,

    कुछ शब्द हलचल5 लिंको का आनंद के लिए
    हमारे ह्र्दयतल पर अंकित जैसे कोई सुरमयी वन्द
    विचारों के संकलन का एक आसमान तले यूँ उड़ना स्वकछन्द..
    दिल का सुकून जैसे मीरा रहीम कबीर के छंद,
    वैसा ही सुकून है हमारा 5 लिंको का आन्नद..

    जवाब देंहटाएं
  15. वाह ! डर के विभिन्न आयामों को परिभाषित एवं व्याख्यायित करतीं एक से बढ़ कर एक रचनाएं ! बहुत ही सुन्दर संकलन ! बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार मेरी रचना को इस संकलन का हिस्सा बनाने के लिए ! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  16. आज के हम-क़दम में "डर" शीर्षक पर विविधता से परिपूर्ण रचनाओं में सार्थक दृष्टिकोण उभरा है। रचनाकारों का सटीक चिंतन सुधि पाठक के लिए मानसिक ख़ुराक होता है। इस अंक में प्रकाशित रचनाओं ने गहरा प्रभाव पैदा किया है। सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं। आदरणीय दिग्विजय भाई जी को बेहतरीन प्रस्तुतीकरण के लिए बधाई।



    जवाब देंहटाएं
  17. डर पर एक से बढकर एक प्रस्तुति... बहुत ही बढिया संकलन...बेहतरीन प्रस्तुतिकरण..

    जवाब देंहटाएं
  18. डर या भय एक शाश्वत भाव है जो हर किसी के मन में जन्मजात ही विद्यमान होता है। डर कहीं सकारात्मक परिणामों को उभारता है तो कहीं नकारात्मक । जब डर नकारात्मकता का निर्माण करने और आत्मविश्वास को डिगाने लगे तब उसे जीत लेने में ही भलाई है। सुंदरकांड में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं -
    "बिनय ना मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीति।
    बोले राम सकोप तब, भय बिनु होहिं ना प्रीति ।।"
    भय या डर कहीं कहीं आदर व प्रीति को भी उपजा देता है। अनेक रूप हैं इस डर के.... आज की संकलित रचनाओं में भी देखने को मिले। सबको बधाई इस नवीन सृजन के लिए। अब अगले विषय का इंतजार ।

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत सुन्दर संकलन डर पर |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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