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बुधवार, 21 मार्च 2018

978.. ये किस दयार पर खड़े हैं हम...

।।नमस्कार सर्वेषाम्।।


आज तम्हीद की जरूरत नहीं..

कुछ नए लफ्ज़ कुछ पुराने शब्दों के कांरवा से

जज्बातों और बातों से जीवन में नए संवेदनाओं को उभरने दो..



इसी के साथ रूख करें आज की लिंकों पर..✍


 "मीना भारद्वाज जी, की रचना..





दूध सा उफान खाती 
ताकत के गुरूर में उन्मुक्त
लहर ……,
नाहक गर्जन तर्जन करती हैं
शुक्ल पक्ष का दौर है 
और समय भी परिवर्तन‎ शील

दुःख के स्वाङ्ग
बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना.... से,


हरियाणा की बेटी अकेली

हिमांचल की वादियों में

बेटे की सलामती के लिए दिया जलाती बूढ़ी माँ

और झुर्रियों भरे चेहरे पर मुरझायी आँखों से 

प्रतीक्षा करते बूढ़े पिता... मुझे पता है

दुःख का यह पहाड़

वंदे मातरम् से विचारणीय प्रस्तुति..

जीवंत किरदारों से प्रेरणा लेना हर लेखक का सामान्य व्यवहार है लेकिन जब लेखक किसी जीवंत किरदार का पीछा करने लगता है तो वह अनभिज्ञता में ही सही, अपने लेखकीय धर्म को तिलांजलि दे रहा होता है। किरदारों का पीछा पत्रकार करते हैं, साहित्यकार नहीं। साहित्य पत्रकारिता नहीं है..
अनुपम चौबे जी की रचना..


जब यारों की महफ़िल में अचानक
छिड़े चर्चा मोहब्बत बाली,
या फिर नुक्कड़ बस्ती दूर गली में
कोई दिखती है भोली भाली,
करूँ जतन पर,दिल पर मेरे
छुरियाँ सी चल जाती हैं

- अलकनंदा सिंंह जी, की विचारोत्तेजक प्रस्तुति..


आज से नवदुर्गा हमारे घरों में विराजेंगी, पूरे नौ दिन देश में ऋतुओं के  माध्‍यम से जीवन में उतरते नवसंचार को उत्‍सवरूप मनाने के दिन हैं। एक  समाज के तौर पर  इन नौ दिनों में हम अपने संस्‍कारों के किस किस स्‍तर  को समृद्ध करें और सोच के किस स्‍तर को परिष्‍कृत करें, यह भी सोचना  आवश्‍यक हो गया है। यह कैसे संभव है कि एक ओर हमें 'दुर्गा' कहा जाए और  दूसरी ओर ..


और अंत शालिनी रस्तोगी जी ,की खूबसूरत शब्दों से..



तुम पढ़ लेना खुद को उसमें ।

बिखरते लफ़्ज़ों को समेट
रच दूँ जब नज़्म कोई
तुम ढूँढ़ लेना
अनकहा पैगाम कोई।
कभी मुस्कुराते लब
और नम आँखें लिए
हम-क़दम का ग्यारहवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........


।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह..✍


21 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीया पम्मी जी,
    सुप्रभातम्।
    बेहद उम्दा रचनाओं का सराहनीय संयोजन आज के अंक में। सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
    आभार
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात
    वाह....
    उत्तम रचनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात!
    बेहतरीन लिंक संयोजन.
    "आज तम्हीद की जरूरत नहीं..
    कुछ नए लफ्ज़ कुछ पुराने शब्दों के कांरवा से......." बहुत खूब...., अति सुन्दर!!

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक श्रम दिख रहा
    सुंदर प्रस्तुतीकरण
    सस्नेहाशीष

    जवाब देंहटाएं
  5. पम्मी जी बहुत मंजुल विषय वस्तु समेटे सुंदर सार्थक प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों की रचनाएँ प्रभाव शाली भाव पूर्ण सभी को बधाई ।
    साधुवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर ....सार्थक प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत श्रम से सजा है आज का अंक, बहुत बहुत बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ख़ूब आज का संकलन
    अति उत्तम

    जवाब देंहटाएं
  9. अत्यंत सुन्दर सार्थक पठनीय सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! इतने उत्कृष्ट संकलन के लिए हार्दिक बधाई पम्मी जी !

    जवाब देंहटाएं
  10. वैचारिकी की अनुशंसा करते हुए सार्थक बहस की ओर ले जाती बेहतरीन प्रस्तुति। आदरणीया मम्मी जी को बधाई। इस अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  11. अतिसुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  12. सशक्त संकलन के लिए आभार....

    जवाब देंहटाएं
  13. खूबसूरत संकलन ! बहुत सुंदर आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं
  14. वाह!!खूबसूरत संकलन ...सभी रचनाएं एक से बढकर एक।

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत सुंदर प्रस्तुति पढ़कर शुकून मिला मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  16. एक से बढ़कर एक रचनाएँ व् बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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