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शुक्रवार, 9 मार्च 2018

966.....हंसती-मुस्कुराती है, खुशियाँ लुटाती है, बोलती-बतियाती है,

सादर नमस्कार 
नारी दिवस पर उठा अधिकार, समानता और स्वतंत्रता का शोर, मुबारकबाद की जगमगाहट ने आधी आबादी को चकाचौंध से भर 
दिया है। सोशल मीडिया से जुड़ी पढ़ी-लिखी,पुरुषों के बराबरी करती हुई महिलाओं को बहुत 
अच्छा लग रहा होगा, ख़ुद को महत्वपूर्ण महसूस करने का एहसास सुखद तो होता ही है। पर अपने आस-पास नज़र डालने पर सोचने 
लगी पड़ोस की रमा ताई, मेरी घरेलू सहायक, कपड़े धोने वाली 
या सामने की बन रही बिल्डिंग में महिला मजदूर बन काम करने वाली 
जैसी बस्ती की अनगिनत औरतों को तो पता भी नहीं उनके 
नाम पर कैसा त्योहार मनाया जा रहा है। अपने दैनिक जीवन 
खोल में सिमटी औरतों तक भी बदलाव की हवा का शीतल झोंका पहुँचेगा कालान्तर में ऐसी उम्मीद हम कर सकते है।
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चलिए आपके रचनात्मकता के संसार में आपके द्वारा 
सुरभित पराग का आनंद लेते है.....
आदरणीया मीना जी की रचना
तिलमिलाता क्यों, ना जाने
शक्ति का पूजक समाज,
माँगती है अपने जब,
अधिकार औरत !!!
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आदरणीया जेन्नी शबनम जी की कलम से निसृत
मैं ठिठक कर तब से खड़ी  
काल चक्र को बदलते देख रही हूँ,  
कोई जिरह करना नहीं चाहती  
न कोई बात कहना चाहती हूँ  
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आदरणीया यशोदा दी की लेखनी से प्रसवित
आपसे एक विनती है कि हमें ये शक्ति भी प्रदान करे कि हम महिलाएँ एक - दूसरे की ताकत बनें कमजोरी नहीं, हम एक-दूसरे का दर्द समझे और उससे उबरने कोशिश भी मिलकर करे, महिलाओं को लिए महिलाओं की ये कोशिश बहुत जरूरी है। 
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आदरणीय अरुण साथी की प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति
जैसे ही कोई बेटी
अपने सपनों को
पंख लगाती है,
वह चरित्रहीन हो जाती है....!
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आदरणीय रेवा जी की रचना
जब रिश्तों की प्यास
से गला सूखा और प्यार
ढूंढा तब सिर्फ और
सिर्फ भ्रम हाथ लगा ....
और तब काम आया खुद की
जेब में भरा दोस्तों का प्यार ...
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आदरणीय दिलबाग सिंह 'विर्क' जी की लेखनी से
सफ़र ज़िंदगी का कब कटता है सिर्फ़ यादों के सहारे 
ज़िंदा रहना चाहता हूँ मैं, करने दे कोई काम मुझे ।

इश्क़ करना, लुटना, फिर रोना, ये कोई हुनर तो नहीं
क्या था मैं, क्यों सिर-आँखों पर बैठाता अवाम मुझे । 
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आदरणीया मीना भारद्वाज जी की कलम से प्रस्फुटित
मेरी फ़ोटो
यूं तो तुमसे
कोई गिला नही
बिना बताये
खामोशियों के पुल
दूरी बढ़ा‎ देते हैं
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आदरणीय ज्योति खरे जी की कलम
सही कहती है.......
मेरी फ़ोटो चाहती हैँ ईँट भट्टोँ मेँ काम करने वाली महिलाएं कि उनका भी अपना घर हो
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हम-क़दम का नौवें  क़दम
का विषय...

...........यहाँ देखिए...........
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आज की कहानी यहीँ तक कल मिलिएगा विभा दीदी से श्वेता

17 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    आभार
    अच्छी रचनाएँ
    अच्छे विचार
    किया जाए काम कोई
    तो असम्भव भी सम्भव हो जाता है
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात स्वेता दी,
    सुंदर प्रस्तुति.. सदैव की भांति, चयनित रचनाएं अच्छी है।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात ,
    विभिन्न पुष्पों से संयोजित पुष्पगुच्छ की भांति संयोजित अत्यन्त सुन्दर प्रस्तुतिकरण !!

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात
    सुंदर प्रस्तुति, संदेश प्रेरित करती भुमिका के साथ उम्दा रचनाओं का चयन।
    सभी रचनाकारों को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुती
    सभी चयनित रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर प्रस्तुति के साथ संदेशात्मक भूमिका।
    सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह
    कमाल का संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रिय श्वेता जी-- आधी आबादी पर हृदयस्पर्शी चिंतन और उत्कृष्ट रचनाओं के साथ आज का लिंक बहुत उम्दा है | वो महिलाएं जिनकी जाने कितनी पीढियां किसी मसीहा की प्रतीक्षा करती , अधूरे सपनों को जीती और विपन्नता से जूझती गुजर गयी - पर उनके दिन ना बदले -- आशा करनी चाहिए कि उनके दिन भी बदले और उन्हें उनके अधिकार मिले | इसी प्रार्थना के साथ आपको हार्दिक बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....

    जवाब देंहटाएं
  10. महिला दिवस पर महिलाओं को समर्पित रचनाओं का उम्दा संकलन ! सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने हेतु सादर, सस्नेह आभार आदरणीया श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  11. विश्व महिला दिवस पर महिलाओं के तमाम मुद्दों पर रचनाकारों ने अपना अपना नज़रिया पेश किया है विभिन्न रचनाओं के माध्यम से।
    आज की प्रस्तुति की भूमिका में उपेक्षित वर्ग की महिलाओं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करने का आदरणीय श्वेता जी ने प्रयास किया है जो कि निसंदेह है लाज़मी है।
    किसी विषय पर एक दिन चिंतन कर लेना उस समस्या का हल नहीं होता ज़रूरी बात यह है कि मुद्दों का निपटान करने के लिए अर्थात उनके समाधान के लिए कारगर नीतियों की ज़रूरत है , समाज की सोच में परिवर्तन लाने की ज़रूरत है। समाज को संवेदनशील बनाने की ज़रूरत है।

    जवाब देंहटाएं
  12. बेहतरीन प्रस्तुति, सार्थक लिंक संयोजन ।
    सस्नेहाभिवादन श्वेता जी ।

    जवाब देंहटाएं

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