आधुनिकता वह विचार है
जो मानव जाति में अज्ञानता और रुढ़िवादिता को
दूर कर प्रगतिशीलता का
बल प्रदान करती है।
आधुनिक शब्द का विश्लेषणात्मक विवेचन काफी पेचीदा है।
हम साधारण तौर पर यह समझ सकते है कि 19 वींं से 20 वीं सदी में पश्चिमी देशों में हुये वैज्ञानिक और औद्योगिक क्रांति की वजह से समाज में हुये मूलभूत बदलाव ने ही आधुनिक युग की परिभाषा गढ़ी है। जिसकी बयार ने हमारे देश को भी प्रभावित किया।
आधुनिकता तर्क आधारित है इसी वजह से विज्ञान और
टेक्नोलॉजी का युग संभव हो पाया है।
भारतीय समाज आज आधुनिकता के नाम पर
शाश्वत मूल्य खोते जा रहे हैं जो कि अत्यंत चिंतनीय है।
सोचिये न आधुनिकता का अर्थ लोग पोशाक,फर्नीचर,अध्यात्म
रस्मों-रिवाजों से लगाने लगे है। वस्तु या व्यक्ति जो आधुनिकता के खाँचे में फिट नहीं बैठते उसका उपहास करते हैं।
विचारों से विपन्न होकर दयालुता, पशु-पक्षी से प्रेम, लाचारों के प्रति स्नेह, सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजना, जैसे स्वाभाविक
मानवीय गुणों का मज़ाक बनाकर किस प्रकार की
आधुनिकता का निर्वहन कर रहे हम पता नहीं।
सादर नमस्कार
अब चलिए आप सभी की रचनात्मकता के सागर में...
आदरणीय विश्वमोहन जी की लेखनी से मुखरित
अ परिचित उर्मी सी आ तू ,
जलधि वक्ष पर चढ़ आई.
ह्रदय गर्त में धंस धंसकर
तू धड़कन मेरी पढ़ आयी.
संग प्रीत-रंग, सारंग-तरंग
तू धरा कूल की ओर बही,
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आदरणीया रश्मि प्रभा जी
हृदयविदारक स्वर में पूछना चाहती हूँ
तथाकथित अपनों से
समाज से
आसपास रोबोट हो गए चेहरों से
कि क्या सच में तुम इतने व्यस्त हो गए हो
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आदरणीय सतीश सक्सेना जी की सार्थक संदेश प्रेषित करती रचना
दर्द सारे ही भुलाकर,हिमालय से हृदय में
नियंत्रित तूफ़ान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !जाति,धर्म,प्रदेश,
बंधन पर न गौरव कीजिये
मानवी अभिमान लेकर, धीमे धीमे दौड़िये !
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आदरणीय दीपक सैनी जी की रचना
अपने जीवन के इतने साल
संग मेरे बिताये तुमने हर हाल
समझ सकी न कभी मुझको
आंखों में रखे हमेशा सवाल
अपनी बातें तुम पर थोपूं
ऐसा तो मेरा अंदाज नही
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आदरणीया विभा जी की रचना
"तुम्हारी सोच पर अफसोस हुआ... समय बदल रहा है...
ऐसा ना हो कि स्त्रियाँ शादी से ही इंकार करने लगे।"
"मछली हर धर्म की फंस जाती है आँटी!"
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आदरणीया आशा सक्सेना जी की कलम से
आज की दुनिया टिकी है
प्रगति के सोच पर
नन्हीं सी आशा पर
उसके विस्तार पर
रहता है हर मन में
एक छोटा सा बालक
जब भी आगे चलना सीखता है
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चलते-चलते..मुकेश जी.. आदत से मज़बूर लोगों की
मज़बूरियों पर एक अवलोकन...
गोल गोल घूमते
लगातार छल्लों पर छल्ला
अजीब सी कशमकश का धुंआ
बाहर आकर दूर तक जाता हुआ
जब पहली बार खींचा था अन्दर तक कश
होंठ से लगा था, गोल्ड फ्लेक वाली
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आज के लिए बस इतना ही
आप सभी की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है।
अपने विचारों से अवश्य अवगत कराये।
-श्वेता सिन्हा
वाह..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..
आधुनिकता का आधुनिकीकरण
अच्छी रचनाएँ
सादर
शुभ प्रभात
वाह!!श्वेता, उम्दा प्रस्तुति ..सही कहा आपने इस आधुनिकता की अंधी दौड में खोती जा रही है हमारी सभ्यता ,संस्कृति .....। सभी लिंक एक से बढकर एक..।
जवाब देंहटाएंयह रचना पसंद आई इसके लिए आभार श्वेता !
जवाब देंहटाएंआपके द्वरा संकलित सभी लिंक प्रभावी हैं !
बेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनायें,
वाह शानदार प्रस्तुति श्वेता अंधी आधुनिकता की दौड़, एक सवाल उर्धमुखी होती भावी पीढ़ी या गर्त मे गिरती?
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई, सभी पठनीय विषय सामग्री।
साधुवाद
बेहतरीन संकलन के साथ सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसभी चयनित रचनाकारों को बधाई।
किस प्रकार की
आधुनिकता का निर्वहन कर रहे हम पता नहीं...विचारणीय सोच
धन्यवाद
आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण में स्पष्ट अंतर है. आधुनिकता का परंपरा या प्राचीनता से कोई विपर्यय नहीं है प्रत्युत तार्किकता, विचारशीलता, चैतन्य, युक्तियुक्तता एवं मानवीय संस्कारों से शोभित अर्वाचीन तत्व का ही नाम है आधुनिकता! इसका सीधा सम्बन्ध सर्वांगींण उन्नयन से है न कि पदार्थवादी प्रगति से!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ,सार्थक और सटीक
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को सम्मलित करने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंविचारणीय भूमिका....
श्वेता जी, सारगर्भित पृष्ठभूमि और सुन्दर प्रस्तुति। इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंनिःशब्द हो जाती हूँ जब स्व के भाव चयनित पाती हूँ
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष संग आभार
उम्दा प्रस्तुतीकरण