┅
┅
┅
┅
┅
┅
सावन से न भादों दुबर
फागुन से ह चइत ऊपर
गजबे महीना रंगदार..
┅
हम-क़दम का बारहवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........
┅
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें
आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
टिप्पणीकारों से निवेदन
1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंमहाकवि दिनकर जी का कथन आज भी जीवन्त है
आभार
सादर
सुंदर प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं पठनीय हैं। सुन्दर रचनाओं का संकलन।
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर रचनाओं का संकलन।.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
बहुत सुंदर प्रभावशाली सारगर्भित भूमिका दिनकर जी की कविता स्वयं में परिपूर्ण है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शानदार लिंकों का लाज़वाब संयोजन कर पम्मी जी ने आज का अंक खास बना दिया है।
अति सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह!!पम्मी जी !!बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमहान कवि रामधारी सिंह दिनकर जी को नमन
जवाब देंहटाएंउनकी रचनाएँ सदैव से उत्कृष्ट कोटि की रही हैं
आज का संकलन बहतरींन सभी रचनाएँ पठनीय
स्नेही पम्मी जी दिनकर जी की ये रचना हृदय के पास है
जवाब देंहटाएंक्षमा करे इसका सौंदर्य पुरा देखना हो तो कविता की पुरी पंक्तियां देखनी जरूरी है मै डाल रही हूं अन्था न लेवें।
तब भी हम ने गाँधी के
तूफ़ान को ही देखा,
गाँधी को नहीं ।
वे तूफ़ान और गर्जन के
पीछे बसते थे ।
सच तो यह है
कि अपनी लीला में
तूफ़ान और गर्जन को
शामिल होते देख
वे हँसते थे ।
तूफ़ान मोटी नहीं,
महीन आवाज़ से उठता है ।
वह आवाज़
जो मोम के दीप के समान
एकान्त में जलती है,
और बाज नहीं,
कबूतर के चाल से चलती है ।
गाँधी तूफ़ान के पिता
और बाजों के भी बाज थे ।
क्योंकि वे नीरवताकी आवाज थे।
बहुत शानदार प्रस्तुति।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
सादर आभार इस कविता को पूरा देने के लिए ।
हटाएंमेरा सौभाग्य सखी।
हटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया..🙏
वाह ! शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक पठनीय सूत्रों का बढ़िया संकलन !
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति आदरणीया पम्मी जी। बढ़िया रचनाओं का संकलन । सादर ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन ...
जवाब देंहटाएंदिनकर जजी की लाजवाब रचना ... आभार ...
प्रिय पम्मी जी -- साहित्य शिखर आदरणीय दिनकर जी की रचना से लिंकों की शुरुआत और भोजपुरी मधुर चैतवा से विराम | कितना अच्छा लगा जब भोजपुरी गीत पहली बार सुना तो उस ब्लॉग पर भी आपका आभर लिख दिया | पहली बार पता चला कि फागुन से चैत क्यों श्रेष्ठ है ? बहुत आभारी हूँ आपकी, कि आपने उस मधुर ब्लॉग से परिचय करवाया |और दिनकर जी का आह्वान '' कवि, गरजो , गरजो--- कितना प्रासंगिक है आज भी | कवी की ओजस्वी वाणी आज भी अलसाये समाज और जनमानस में चेतना जगा सकती है | सभी रचनाकारों की रचनाएँ पढ़ी | सभी सार्थक | सभी सहभागी बधाई के पात्र हैं | आपको भी सार्थक हृदयस्पर्शी प्रस्तुति के लिए सस्नेह बधाई और शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंसोचने को बाध्य करने वाला बड़ा ही खूबसूरत पन्ना और चर्चा ....धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन
जवाब देंहटाएं