काव्य-पाठ में दो मुख्य थी गौरैया और
बेटियाँ
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
आने दो रे आ ने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो
भ्रूणहत्या का पाप हटे, अब ऐसा जाल बिछाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
बेटियाँ
नहीं चाहिए आसमान के चाँद तारे
मुझे तो चाहिए बस वही देश जहाँ
प्यार हो ,सम्मान हो
और मुझे आंसू ना दीजो
बस अगला जनम वहीँ पे दीजो.
बेटियाँ
बेटियाँ
बेटियाँ
हाथ बँटाकर काम में तेरे
चाहती हूँ कम करना
तेरे दिल के प्यार का गागर
चाहती मैं भी भरना
मिश्री से मीठे बोल बोलकर
चाहती मैं हूँ गाना
तेरे प्यार दुलार की छाया
चाहती मैं भी पाना
फिर मिलेंगे .... जरा ठहरिये तो....
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम ग्यारहवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
:::: एहसास ::::
:::: उदाहरण ::::
छुपा लेती अपने हृदय की वेदना,
जब लू या ठंड का झोंका तुम्हें
हिला जाता।
शायद कभी एहसास हो तुम्हें, कि
कितना कठिन होता, अपने जिगर
का टुकड़ा किसी को सौंपना
व अपनी अमानत उसकी
झोली में डालना।
आप अपनी रचना शनिवार 24 मार्च 2018
आज शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं।
चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 26 मार्च 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक
11 जनवरी 2018 का अवलोकन करें
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
सदा की तरह
हसती मुस्कुराती
बेटियाँ...
गौरैय्या
बनकर उड़ती बेटियाँ
सादर
बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह...दी..हमेशा की तरह जानदार प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबेटियों पर लिखी हर रचना सराहनीय है।
सुंदर संकलन दीः)
आभार
सादर।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेटी हैं ये जहान है
वाह!!!खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसच है । बेटियां और गौरैया एक जैसी होती हैं ।
जवाब देंहटाएंआंगन में उनका फुदकना देखते देखते न जाने कब उड़ जाती हैं ।
सुंदर संकसलन के लिए धन्यवाद ।
बहुत ही सुंदररर.....
जवाब देंहटाएंनवरात्र में......
बेटियों पर खूबसूरत चर्चा.....
आदरणीय आंटी आभार आप का.....
आदरणीय दीदी -- सदर प्रणाम | कन्या पूजन की पावन बेला में बेटियों का सम्मान बढाती अनुपम रचनाएँ | सभी पढ़ आई और लिख भी दिया | सभी रचनाकारों ने बेटियों को सम्मान और प्यार दिया है अपनी रचनाओं में | जो बेटियों से अन्याय करते हैं और कन्या - भ्रूण हत्या के भागिदार हैं उन्हें कन्या - पूजन का अधिकार नहीं |आज बेटियों ने पंख खोल लिए हैं वे भी बेटों की तरह हर उड़ान भर सकती हैं जरूरत है उनका साथ देने की | मुझे आदरणीय रविन्द्र जी की रचना की पंक्तियाँ याद हो आई जो उन्होंने बेटियों की आंतरिक कामना के रूप में लिखी हैं ---------
जवाब देंहटाएंलज्जा, मर्यादा ,संस्कार की बेड़ियाँ ,
बंधन -भाव की नाज़ुक कड़ियाँ,
अब तोड़ दूँगी मैं ,
बहती धारा मोड़ दूँगी मैं ,
मूल्यों की नई इबारत रच डालूँगी मैं,
माँ के चरणों में आकाश झुका दूँगी ,
पिता का सर फ़ख़्र से ऊँचा उठा दूँगी,------
बेटियां सब कर देगीं उन्हें बस हमारा साथ चाहिए | -----इस भावपूर्ण प्रस्तुती के लिए आपको हार्दिक आभार और बधाई | सभी रचनाकार साथियों को शुभकामनाये | सादर
वाह !!! बहुत ..सुंदर .. शानदार
जवाब देंहटाएंसच में अगर देश का भविष्य बनाना है तो बेटियों को सशक्त बनाना ही होगा बहुत सुंदर रचना
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