जय मां हाटेशवरी....
स्वागत व अभिनंदन है....आप सभी का.....
अनुभूति को दो शब्द देते ही विचार का जन्म हो जाता है. यह प्रतिक्रिया, यह शब्द देने की आदत अनुभूति को, दर्शन को विचार से आच्छादित कर देती है. अनुभूति दब जाती है, दर्शन दब जाता है और शब्द चित्त में तैरते रह जाते है. ये शब्द ही विचार है.-----------------ओशो
अब पेश है....मेरी पढ़ी हुई रचनाओं में से.....चुनी हुई कुछ रचनाएं....
समय बतायेगा
त्र्यम्बक अब जगने वाले हैं
योगनिद्रा से उठने वाले हैं
जलेगा विश्व या उस अर्चि को सह
बचेगा
यह तो समय ही कहेगा।
बदलाव की बयार
यूं स्त्री उत्थान के संदेश के साथ इस साल का महिला दिवस गुजर गया। मगर उम्मीद है कि आगे बंटवारा स्त्री-पुरूष में नहीं होगा और नि:संदेह हमलोग अब वास्तविक सामाजिक परिवर्तन की ओर आगे बढ़ेंगे। मेरे लिए यह जानना बेहद सुखद था कि एक महिला शरीर के प्राकृतिक चक्र को लेकर समाज में जो अंधविश्वास और दुराग्रह
फैले थे और माहवारी के दौरान कई बार महिलाओं को बेहद उपेक्षित और अपमानित करने वाली स्थिति से गुजरना पड़ता था, उस पर नई दृष्टि से सोचने-समझने और बात करने के लिए लोग सहज हो रहे हैं। अगर इसकी दिशा सकारात्मक रहती है तो आने वाले दिनों में स्त्री का जीवन थोड़ा आसान होगा।
आखरी वो सिसकियाँ.....नीतू ठाकुर
एक कोना ना मिला
छुपने को उसको मौत से
आज परछाई से भी
डरती रही छुपती रही
याद करती परिजनों को
वेदना से भर रही
बीते लम्हों की चिता
जलती रही बुझती रही
लाटसाहब
लोगों ने बताया कि ठाकुर साहब और उनकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली और रोहन नशे में धुत्त सड़क के किनारे पड़ा मिला। अन्तिमसंस्कार के लिए सब रोहन के होश में आने का इंतज़ार कर रहे हैं। अन्तिम संस्कार के बाद हवेली भी नीलाम होनी है क्योंकि ठाकुर साहब इकलौते लाडले की फरमाइशें पूरी करते करते सब कुछ गवां बैठे और कर्ज न चुका पाने की शर्मिंदगी में जान दे दी।
रोहन के होश में आते ही फिर उसके होश उड़ गए। जिसे जमीन पर चलने की आदत न थी ,बुरी आदतों ने जीते जी उसके अस्तित्व को कई गज नीचे दफ़न कर दिया।
रीना स्तब्ध थी बचपन के सपने चूर-चूर हो गए। समझ ही नहीं आ रहा था कि रोहन से सहानुभूति रखे या लाटसाहब से नफरत और इसी कशमकश में जाने कब उसी रिक्शे में बैठकर चुपचाप लौट गई।
भगत सिंह का साहित्य - 3 -
साप्ताहिक मतवाला में प्रकाशित उनका एक लेख ' युवक ' /
विजय शंकर सिंह
ऐ भारतीय युवक! तू क्यों गफलत की नींद में पड़ा बेखबर सो रहा है। उठ, आँखें खोल, देख, प्राची-दिशा का ललाट सिन्दूर-रंजित हो उठा। अब अधिक मत सो। सोना हो तो अनंत निद्रा की गोद में जाकर सो रह। कापुरुषता के क्रोड़ में क्यों सोता है? माया-मोह-ममता का त्याग कर गरज उठ-
“Farewell Farewell My true Love
The army is on move;
And if I stayed with you Love,
A coward I shall prove.”
तेरी माता, तेरी प्रात:स्मरणीया, तेरी परम वन्दनीया, तेरी जगदम्बा, तेरी अन्नपूर्णा, तेरी त्रिशूलधारिणी, तेरी सिंहवाहिनी, तेरी शस्यश्यामलांचला आज फूट-फूटकर रो रही है। क्या उसकी विकलता तुझे तनिक भी चंचल नहीं करती? धिक्कार है तेरी निर्जीवता पर! तेरे पितर भी नतमस्तक हैं इस नपुंसकत्व पर! यदि अब भी तेरे किसी अंग में कुछ हया बाकी हो, तो उठकर माता के दूध की लाज रख, उसके उद्धार का बीड़ा उठा, उसके आँसुओं की एक-एक बूँद की सौगन्ध ले, उसका बेड़ा पार कर और बोल मुक्त कण्ठ से-
सफ़र जो आसान नहीं ...
हाथ लगते ही ख्वाब टूट जाता है
सवाल खड़ा रहता है
उम्मीद का उजाला
आँखों का काजल बन के नहीं आता
धूप जरूरी है रात के बाद
किसी भी जंगली गुलाब के खिलने को
किसी साए के सहारे भी तो जिंदगी नहीं चलती
नारी
मातृ रूप में है दुआ, बहन रूप में प्रीत।
पुत्री रूप अहसास का, पत्नी रूप है मीत।।
नर विस्तारित कीजिये, अपने मन का कूप।
वर्णित है हर वेद में, सरस्वती का स्वरूप।।
अब बारी है नए विषय की
हम-क़दम
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम दसवें क़दम की ओर
इस सप्ताह का विषय है
:::: उम्मीद ::::
:::: उदाहरण ::::
उम्मीदें जब टूट कर बिखर जाती है,
अरमान दम तोड़ते यूँ ही अंधेरों में ।
कंटीली राहों पर आगे बढ़े तो कैसे ?
शून्य पर सारी आशाएं सिमट जाती हैं ।
विश्वास भी स्वयं से खो जाता है,
निराशा के अंधेरे में मन भटकता है।
जायें तो कहाँ लगे हर छोर बेगाना सा ,
जिन्दगी भी तब स्वयं से रूठ जाती है।
आप अपनी रचना शनिवार 17 मार्च 2018
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 19 मार्च 2018 को प्रकाशित की जाएगी ।
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक
11 जनवरी 2018 का अवलोकन करें
धन्यवाद.।
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रस्तुति
अनुभूति..को
और
दो शब्द दो
और ले लो आनन्द
सादर
अनुभूति की सरस व्याख्या के साथ शानदार प्रस्तुति सभी सामग्री लाजवाब। सभी लेखक रचनाकारों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंसूक्ष्म ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा ज्ञात-अज्ञात भावों को महसूस करना "अनुभूति" है। अच्छी भूमिका के साथ बहुत ही सुंदर रचनाओं का सराहनीय संयोजन आदरणीय कुलदीप जी के द्वारा।
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत खूबसूरत रचनाओं का संयोजन
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ
पठनीय सूत्रों का परिचय देता हलचल का सुंदर अंक...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति ....सभी लिंक लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा संकलन
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति. अनुभूति पर चर्चा और विचारणीय लिंक संयोजन के लिये भाई कुलदीप जी को बधाई. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्वेता जी की अनुभूति की व्याख्या सरल शब्दों में प्रभावपूर्ण है.
अति सुंदर प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुतिकरण उम्दा पठनीय लिंक संयोजन...
जवाब देंहटाएंउम्मीद के उदाहरण स्वरूप मेरी रचना चुनने के लिए शुक्रिया एवं आभार....
विविधता से परिपूर्ण खूबसूरत संकलन व सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
सुन्दर लिंक ... सभी पोस्ट लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंआभार मुझे भी शामिल करने का ...
अति सुन्दर
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