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बुधवार, 14 मार्च 2018

971..जरूरत है उन झरोखों को खोलना..


।प्रात: वंदन।

आज आदमी आदमी न रहा.. 

इस वाक्यों से आप सभी वाकिफ होगें..

सवाल है तो आदमी क्या रहा? 

आदमियत कहाँ गई?

अच्छाइयां और कमियां तो सदा से रही पर  व्यवहार, विवेक, विचारों का संतुलन 

न होना ही आदमियत विनाश का कारण है ।जरूरत है उन झरोखों को खोलना जहाँ से वही पुरानी नमी, संवेदनशील विचारों की

 हवाएँ आती हो..



संतुलन की अपेक्षाओं के साथ अब रूख करें आज की लिंकों पर..✍

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हे बादल!

अब मेरे आँचल में तृणों की लहराई डार नहीं,

न है तुम्हारे स्वागत के लिये
ढेरों मुस्काते रंग
मेरा ज़िस्म
ईंट और पत्थरों के बोझ के तले
दबा है।
उस तमतमाये सूरज से भागकर
जो उबलते इंसान इन छतों के नीचे पका करते हैं
तुम नहीं जानते...
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मच्छर और आदमी का अनुवांशिक संबंध

मच्छरों का मस्तिष्क आदमी से अधिक विकसित है और उसकी बुद्धि भी! आपको विश्वास नहीं होता तो विश्वास कर लीजिए नहीं 

तो एहसास कर लीजिए। जैसे कि

 वैज्ञानिक शोधों से यह पता लग चुका है कि मच्छरों पर एक तरह के जहर का प्रभाव एक बार ही होता है। दूसरी बार वह अपने शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर उस जहर का काट ..

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कल वाले लेमनचूस

थोड़ा पागलपन भेजवादो

और ज़रा से लेमनचूस,

जीवन इतना खट्टा हो गया

दिल के इन गड्ढों से पूछ। 

भोर का सूरज जगा नहीं है 

चंदा निदिया को तरसे,

फूल गंध से बिछड़ गए हैं

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जिस मरने से जग डरे

हम जीवन से प्रेम करते हैं पर मृत्यु से डरते हैं. यह जानते हुए भी कि एक दिन यह देह छूटने वाली है, मृत्यु के बारे में जानना तो दूर सोचना भी नहीं चाहते. सुकरात को जब जहर दिया गया तो उसने अपने साथियों से कहा, मृत्यु कैसे 

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 मयंक शुक्ला जी की रचना..


आज के जीवन पर सबसे बेहतर पंक्तिया " वक़्त का दर्रा दर्रा"  वक़्त का दर्रा दर्रा बिता जा रहा है, यादो के पन्नो को समेटा जा रहा है।  

इस भागदौड़ की जिंदगी में, इस कदर उलझे हुए हैं, ऐसा लग रहा है कि जिंदगी को बस घसीटा जा रहा है।    



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तो क्या हो गया- 

हाँ मचला था कुछ  पल को  दिल फिर सो  गया
आज उससे फिर मिल भी लिये तो क्या हो गया
मोहब्बत की राहों में  हर किसी को भटकना  है
सामना उनसे अगर हो भी गया तो क्या हो गया
माना  की  ज़ख्म  अभी अभी  तो भरा  था  मेरा

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हम-क़दम का दसवें क़दम
का विषय...



आज बस यहीं तक कल हाजिर होते हैं एक नई प्रस्तुति के साथ..

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह..✍


13 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    शानदार संयोजन
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर,अलग अलग विधा और शैली की रचनाओं का संकलन ! बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीया पम्मी जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह लाजवाब संयोजन पम्मी जी विविधता समेटे सार्थक रचनाओं का सुंदर गुलदस्ता ।
    बहुत सटीक भुमिका प्रश्न वाचक
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात पम्मी जी,
    सुंदर सराहनीय रचनाओं के संकलन शानदार प्रस्तुति के साथ। विचारणीय भूमिका लिखी है आपने।
    बहुत सुंदर संयोजन।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. सही खा है आपने, संवेदनशीलता की कमी ही समाज में बिखराव का कारण है, नीरज के शब्दों में, आदमी को आदमी बनाने के लिए थोड़ा सा हो, आँखों वाला पानी चाहिए..सुंदर सूत्रों से सजी प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  7. सही पंक्तियाँ हैं...
    "आदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए और कहने के लिए कहानी प्यार की, स्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए"।

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह!सुंंदर भूमिका के साथ ,लाजवाब लिंक संयोजन । सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
    आदमी आदमी न रहा...आदमियत कहाँ गयी....
    एकदम सटीक....

    जवाब देंहटाएं

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