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रविवार, 11 मार्च 2018

968.....मौन के इर्द-गिर्द मन की परिक्रमा

हजारवीं प्रस्तुति के 
काफी नजदीक
पहुँच गए हैं हम
सादर अभिवादन....
बगैर किसी लाग-लपेट के
चलते हैं आज की 
पसंदीदा रचनाओं की ओर.....


हथेली भर प्रेम.....श्वोता सिन्हा
मौन के इर्द-गिर्द 
मन की परिक्रमा
अनुत्तरित प्रश्नों के रेत से
छिल जाते है शब्द



पत्थर दिल....पुरुषोत्तम सिन्हा
हैरान हूँ मैं, न जाने कहां खोई है मेरी संवेदना?
आहत ये दिल जग की वेदनाओं से अब क्यूँ न होता?
देखकर व्यथा किसी कि अब ये बेजार क्यूँ न रोता?
व्यथित खुद भी कभी अपने दुखों से अब न होता!
बन चुका है ये दिल, अब पत्थर का शायद!
न तो रोता ही है ये अब, न ही ये है अब धड़कता!



धूल जमे 
रिश्तों को 
फूल से बुहार लो । 
बिखर गए 
जुड़े सा 
इन्हें भी संवार लो । 

हम हैं भारत के निवासी, न दगा देते हैं
अपने आचार से ही खुद का पता देते हैं।

वक़्त आने पे तो हम खून बहा देते हैं
सिर झुकाने से तो बेहतर है कटा देते हैं।

थक गया हूँ तेरे इन्तजार में बहुत
गेसुओं की छाँव पनाह कर लेने दो।

छुप गए हो इन गेसुओं में बहुत
चाँद का अब तो दीदार कर लेने दो।

निशिगंधा की भीनी
मदहोश करती सौरभ
चांदनी का रेशमी
उजला वसन
आल्हादित करता
मायावी सा मौसम
फिर झील का अरविंद
उदास गमगीन क्यों

आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलते हैं





10 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभातम् दी:),
    बहुत सुंदर रचनाओं का संयोजंन है आज के अंक में। इस सुंदर गुलदस्ते में मेरी रचना को मान देने के लिए बहुत आभारी है आपके।
    सभी साथी रचनाकारों को भी मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर पठनीय लिंक संकलन...
    उम्दा प्रस्तुतिकरण...

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए आभार व्यक्त करता हूं।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बहुत आभार आपका |सुन्दर लिंक्स

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत उम्दा रचनायें
    खूबसूरत संकलन

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूबसूरत रचनाओं का संयोजन
    सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  7. सखी दी सादर आभार मेरी रचना को सामिल कर मुझे सम्मानित किया , सभी साथी रचनाकारों को हार्दिक बधाई,
    पुरी प्रस्तुति लाजवाब सरस सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह!!बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

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