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गुरुवार, 7 जनवरी 2016

173...साल सोलवां आ गया जीवन में फिर से इक बार

सादर अभिवादन
आज संजय भाई नहीं हैं
सो आज मेरी प्रस्तुति..

मैं एक काफिर हूँ 
हां! तुम्हारे लिए मैं एक काफिर हूँ, 
यद्यपि कि मैं मानता नहीं किसी को 
सिवा एक ईश्वर के मैने कभी सर नहीं झुकाया 
किसी बुत के सामने 


काश कि तुम्हारी बेटी होती तुम्हारा बेटा होता 
क्या होता है उन्हें खोने का दर्द तुम्हें पता होता -
जीवन की शाम का खौफ, टूटी बैसाखी का ड़र 
तुम्हें भी मालूम होता जो तेरा चिराग बुझा होता -


सुनो !!
मैं सारी जिंदगी
करवाना चाहता हूँ
रूट केनाल ट्रीटमेंट !!
बत्तीसों दाँतों का ट्रीटमेंट
जिंदगी भर ! लगातार !


साल सोलवां आ गया जीवन में फिर से इक बार
ये तो हो गया हम सब के साथ फिर से इक चमत्कार
आ जाओ कर लें मस्ती फिर से इक बार
तन को छोड़ो भर लो उंमग मन में फिर से इक बार


बिन तुम्हारे हमारा दिल बेकरार  है
न जाने क्योँ  हमें  तेरा  इंतज़ार है

गुनगुनाते  गीत अब  होंठों पे मेरे
अभी तक मुस्कुराती शब का खुमार है 


नितीश तिवारी के ब्लॉग में
कुछ तो खता कर दी मैंने मोहब्बत निभाने में, 
जो तुमने देर ना की पल भर में मुझे भुलाने में। 
खुदा की जगह तेरा सज़दा किया मैंने सुबह-ओ-शाम, 
पर तेरी दिलचस्पी नहीं थी इस रिवाज़ को निभाने में। 




और ये रही आज की अंतिम कड़ी
गोपाला ने अपना एक झोला और बैग लिया और ट्रेन में बैठ गया, 
ये ट्रेन दुर्ग से जगदलपुर जा रही थी। गर्मी के दिन थे, 
उसे खिड़की के पास वाली सीट मिली ।
ट्रेन चलने लगी तो भागते हुए तीन युवक आये 
और ठीक उसके सामने वाली सीट पर बैठ गए ।
................
इस अनुनय के साथ









9 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात छोटी बहना
    उम्दा परस्तुतिकरण

    जवाब देंहटाएं
  4. meri kahani ko shamil karne ke liye aapka dil se shukriya .
    aapka aabhar aur dhanywaad
    vijay

    जवाब देंहटाएं
  5. आभार "काफिर" को शामिल करने हेतू .....

    जवाब देंहटाएं
  6. शुभप्रभाद दीदी...
    सुंदर हलचल...
    आभार आप का....

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  8. बढ़िया हलचल ,मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका आभार

    जवाब देंहटाएं

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