सादर अभिवादन स्वीकार करें
एक से एक सोच बन रही है
सोलहवां साल लगते ही
लवणीय हो जाती है देह
पागल कर देती है
सठियाए हुए लोगों को भी..अस्तु
मैं भी रूमानी हो चली थी आज
ऋतु शरद का आगमन जो हो रहा है
तो चलें..
मन में है ये नफ़रत क्यूँ
इंसान की ऐसी फ़ितरत क्यूँ
छोटा सी ही ये जीवन है
उसमें जीना ज़रा सा क्या
2016 आ गया। यह साल कैसा होगा, यह तो समय के गर्भ में हैं लेकिन हर कोई अपने अपने अंदाज में इसकी व्याख्या करने में लगा हुआ है। कोई खुद को २० का होना और अपनी प्रेयसी को १६ का हो जाने का शायराना अंदाज दिखा रहा है तो कोई सुफियाना अंदाज में कह रहा है,
21 वीं सदी को सोलहवाँ साल लग गया।
ये वो माँ है जिसके सारे बच्चे अच्छे पद व रुतबे,
कोठी व कार वाले हैं
ये वो माँ है जिसने दो रुपये की खादी की साड़ी पहन
बच्चों को अच्छे कपड़े पहनाये
ये वो माँ है जो खुद भूखी रही पर
बच्चों का पेट भरा खुद के बच्चों का पालन सब करते हैं
उन्नयन में..उदयवीर सिंह
हम रह गए अपने घरों मे ही कैद
मुबारकबाद रश्मी होकर रह गए -
तराशते रहे सियासती मूरत,न मिली
मेरे हाथ जख्मी होकर रह गए -
उच्चारण में... डॉ. रुपचन्द्र शास्त्री
शस्य-श्यामला धरा पर, बनें सुखद संयोग।
नये साल में लोग सब, होंवे सुखी निरोग।।
सरिताओं में फिर बहे, पावन-निर्मल घार।
नाविक के कर में रहे, नौका की पतवार।।
और ये है आज की अंतिम कड़ी..
कविता मंच में ...राजेश्वरी जोशी
मेरे शब्द उड़ने लगेंगे
दूर-दूर तक हवा में
करने लगेंगे फूल-पत्ती,
नदी पर्वत से संवाद
कण-कण से टकराएँगे
दूर-दूर तक फैल जाएँगे
धरती से अंबर तक
आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलेंगे
शुभप्रभात...
जवाब देंहटाएंसमय कितनी तेजी से अपने कदम चलता है...
2016 के पांच दिन...
पांच लिंकों का आनंद के 171 दिन...
अति सुंदर...
आभार दीदी आप का....
सुन्दर व सार्थक लिँक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंनववर्ष मंगलमय हो।
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!