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बुधवार, 20 जनवरी 2016

187...{[<बेटियां शीतल हवा होती है।।

जय मां हाटेशवरी...

कल मेरे मित्र ने whatsapp पर  एक कविता पोस्ट की...
 पर कवि का नाम नहीं था...
कविता मन को भा गयी...
आप भी  आनंद लें इस कविता का...

पहला दृश्य --
एक कवि नदी के किनारे खड़ा था !
तभी वहाँ से एक लड़की का शव नदी में तैरता हुआ जा रहा था
   कवि ने उस शव से पूछा ----

"कौन हो तुम ओ सुकुमारी,
बह रही नदियां के जल में ?
कोई तो होगा तेरा अपना,
मानव निर्मित इस भू-तल मे !
किस घर की तुम बेटी हो,
किस क्यारी की कली हो तुम ?
किसने तुमको छला है बोलो,
क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?
किसके नाम की मेंहदी बोलो,
हांथो पर रची है तेरे ?
बोलो किसके नाम की बिंदिया,
मांथे पर लगी है तेरे ?
लगती हो तुम राजकुमारी,
या देव लोक से आई हो ?
उपमा रहित ये रूप तुम्हारा,
ये रूप कहाँ से लायी हो?
.........."

दूसरा दृश्य----
कवि की बाते सुनकर लड़की की आत्मा बोलती है.....

"कवी राज मुझ को क्षमा करो,
गरीब पिता की बेटी हुँ !
इसलिये मृत मीन की भांती,
जल धारा पर लेटी हुँ !
रूप रंग और सुन्दरता ही,
मेरी पहचान बताते है !
कंगन,चूड़ी,बिंदी,मेंहदी,
सुहागन मुझे बनाते है !
पति  के सुख को सुख समझा,
पति  के दुख में दुखी थी मैं !
जीवन के इस तन्हा पथ पर,
पति के संग चली थी मैं !
पति को मेने दीपक समझा,
उसकी लौ में जली थी मैं !
माता-पिता का साथ छोड
उसके रंग में ढली थी मैं !
पर वो निकला सौदागर ,
लगा दिया मेरा भी मोल !
दौलत और दहेज़ की खातिर
पिला दिया जल में विष घोल !
दुनिया रुपी इस उपवन में,
छोटी सी एक कली थी मैं !
जिस को माली समझा ,
उसी के द्वारा छली थी मैं !
इश्वर से अब न्याय मांगने,
शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !
दहेज़ की लोभी इस संसार में,
दहेज़ की भेंट छड़ी हूँ मैं, !
दहेज़ की भेंट चडी हूँ मैं,"

{[<बेटियां शीतल हवा होती है।। इन्हें बचा कर रखे>]}
अब देखते हैं आज के सूत्र...



काव्य प्रेरणा
  राम लखारा 'विपुल' का कविता संसार
 परहित Hindi Poem

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ऐसे  में   इन  सबका  अब  तो
सबक  सीखना     निश्चित  है
परहित   पाठ    पढा़ने        को
 सूरज   निकलना   निश्चित है।



खिल गई बगिया बहारें जो चमन में आई
Ocean of Bliss
परRekha Joshi

देखते ही आपको यह क्या हुआ साजन अब
खुद इधर दिल ने बहकने की तमन्ना की है

लो शर्म से अब सनम आँखे झुका ली हमने
दिल में तेरे बस जाने  की तमन्ना की है

प्रेम ">प्रेम से  झपकती पलकें
जिंदगी की राहें
परMukesh Kumar Sinha

s640/prem
 पता नहीं, कितने तरह की तस्वीरें
ब्लैक एन वाइट से लेकर
पासपोर्ट/पोस्टकार्ड पोस्टर
हर साइज़ की वाइब्रेंट
कलर तस्वीरें,
सहेजते चला गया मन !!


साम्यवाद (Communism)
 स्त्रियों की आधी आबादी की जागृति और लामबन्दी के बिना कोई भी सामाजिक परिवर्तन सम्भव नहीं
 M.s. Rana
विजय राज बली माथुर

आज़ादी और बराबरी के इन मतवालों को आज याद करने का मतलब यही हो सकता है कि हम धर्म और जाति के भेदभाव भूलकर इस देश के लुटेरों के ख़िलाफ़ एकजुट हो जायें. अशपफ़ाक-बिस्मिल-आज़ाद
और भगतसिंह की विरासत को मानने का मतलब आज यही है कि हम हर क़ि‍स्म के मज़हबी कट्टरपंथ पर हल्ला बोल दें। आज हम सभी नौजवानों और आम मेहनतकशों को यह समझ लेना
चाहिये कि हमें धर्म और जाति के नाम पर बाँटने और हमारी लाशों पर रोटियाँ सेंकने का काम आज हर चुनावी पार्टी कर रही है! हमें इनका जवाब अपनी फ़ौलादी एकजुटता
से देना होगा। परिवर्तनकामी छात्रों-युवाओं को नये सिरे से मेहनतकशों के संघर्षों से जोड़ना होगा। उन्हें शहीदेआज़म भगतसिंह के सन्देश को याद करते हुए क्रान्ति
का सन्देश कल-कारखानों और खेतों-खलिहानों तक लेकर जाना होगा। स्त्रियों की आधी आबादी की जागृति और लामबन्दी के बिना कोई भी सामाजिक परिवर्तन सम्भव नहीं। मेहनतकशों,
छात्रों-युवाओं, बुद्धिजीवियों सभी मोर्चों पर स्त्रियों की भागीदारी बढ़ाना सफलता की बुनियादी शर्त्त है। हमें हर तरह के जातीय-धार्मिक-लैंगिक उत्पीड़न और दमन
के ख़िलाफ़ खड़ा होना होगा इस संघर्ष को व्यापक सामाजिक बदलाव की लड़ाई का एक ज़रूरी हिससा बनाना होगा।
हम जानते हैं कि यह रास्ता लम्बा होगा, कठिन होगा और प्रयोगों से और चढ़ावों-उतारों से भरा होगा। पर यही एकमात्र विकल्प है। यही जन-मुक्ति-मार्ग है। यही इतिहास
का रास्ता है। और हर लम्बे रास्ते की शुरुआत एक छोटे से क़दम से ही होती है।

हम बहुत कुछ है
WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION
परShanti Purohit

गर्व से पापा का सीना चौड़ा हो गया ।
" देखो आज मेरी सभी बेटियां प्रशासनिक सेवा में चयनित हो गयी ! गदगद होते गए पत्नी सुरेखा से कहा।
परिवार में सब लोग कितना सुनाते थे, मेरी बेटियो को हीन भावना से देखते थे। बेटा नही बन सकती बेटियां सास तो हमेशा सर पर ही सवार रहती थी।
मम्मी ! मुहँ खोलो कहाँ खो गयी आप ! बिसरी बाते भूल जाओ , सेलिब्रेशन की तैयारी करो।


 मेरा नया बचपन / सुभद्राकुमारी चौहान
गाँव
परगिरधारी खंकरियाल

मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी।
नंदन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी॥
'माँ ओ' कहकर बुला रही थी मिट्टी खाकर आयी थी।
कुछ मुँह में कुछ लिये हाथ में मुझे खिलाने लायी थी॥
पुलक रहे थे अंग, दृगों में कौतुहल था छलक रहा।
मुँह पर थी आह्लाद-लालिमा विजय-गर्व था झलक रहा॥


धन्यवाद।

13 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई
    सुभद्रा कुमारी की याद दिला दी आपने
    महान कवियत्रियों मे गिना जाता है उन्हें
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. भावपूर्ण कविता सुंदर हलचल प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर संकलन । बहुत बढ़िया ।

    जवाब देंहटाएं

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