हिंदी के प्रायः सभी कवि अपने उपनामों से ही प्रसिद्ध हैं.कहा तो यह भी जाता है कि इस परंपरा में विदेशी प्रभाव के साथ ही साहित्यिक चोरी भी इसका कारण रही है.अपनी कविता के बीच में अपना नाम दे देने से चोरी की आशंका कम हो जाती थी.
और ये रख दी मैंने आज की प्रथम कड़ी
सुधिनामा में...साधना वैद
जीवन जीने के लिये दो इतना अधिकार
चुन कर दुःख तुम पर करूँ सुख अपने सब वार !
हर पग पर मिलती रहे तुम्हें जीत पर जीत
फ़िक्र नहीं मुझको मिले कदम कदम पर हार !
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क्षमा कीजिएगा गलती हो गई
सूचना देते वक्त दिन का ख्याल ही नहीं रहा
शुक्रवार को गुरुवार लिख बैठी
ध्यान कहीं और काम कहीं का चक्कर चल गया
चलती हूँ....पर उदास मन से नहीं
आज्ञा दें और सुने ये गीत
बहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी ! मेरी रचना 'शुभाशंसा' को आपने आज की हलचल में सम्मिलित किया आभारी हूँ ! मुझे अपरिहार्य कारणों से बाहर जाना पड़ गया इसलिए विलम्ब से आपका धन्यवाद कर पा रही हूँ ! आशा है क्षमा करेंगी !
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Sunder awam sarthak
जवाब देंहटाएंSunder awam sarthak
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका |सुन्दर लिंक्स पढ़वाने हेतु आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.मुझे भी शामिल करने के लिए आभार.
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जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने के लिए आभार!
सबको मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं.
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं । सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक संयोजन....
जवाब देंहटाएंआभार दीदी।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी ! मेरी रचना 'शुभाशंसा' को आपने आज की हलचल में सम्मिलित किया आभारी हूँ ! मुझे अपरिहार्य कारणों से बाहर जाना पड़ गया इसलिए विलम्ब से आपका धन्यवाद कर पा रही हूँ ! आशा है क्षमा करेंगी !
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