जय मां हाटेशवरी...
मैं कुलदीप ठाकुर आप सब का...
पांच लिंकों का आनंद पर...
पुनः अभिवादन व स्वागत करता है...
दीदी जी कुछ दिनों से अधिक व्यस्त है...
गणतंत्र दिवस पर उनका संदेश...
"भारतीय गणतत्र अमर रहे
कभी भी राजतंत्र हावी न होने पाए
ऐसी शुभकामना है.."
अब देखिये मेरी पसंद...
फूलों की ख़ुशबुएँ हिमालय की ओर चली गई हैं
कबाड़खाना में...Ashok Pande
फूलों की अंतिम उपयोगिता हमारी ख़ुशहाली और
आनंद में कुचले जाने की है. हमारा जन्म-मरण
और समर्पण, पुष्प श्रृंगार और पुष्प संहार के बिना
अधूरा है हो सकता है दस हज़ार टन से कुछ अधिक भारतीय फूल
इस साल सामाजिक या आर्थिक कारणों से नष्ट या सार्थक
हुए हों. फिर भी भारत के मूल माली फूलों पर नहीं
अपनी माली हालत पर रोए. उनके चारों ओर मक्खियाँ
भिनभिनाती रहीं. मधुमक्खियां दूर कहीं अपना शोक-
गीत गाती रहीं अशोक की तरह
इसीलिए रे मूर्ख, अरे माटी के पुतले
रविकर की कुण्डलियाँमें...रविकर
केवल व्यर्थ-प्रलाप, आग पानी में लागे |
पानी पानी होय, चेतना रविकर जागे।
इसीलिए रे मूर्ख, अरे माटी के पुतले।
नहीं उस समय झाँक, जिस समय पानी उबले ||
गणतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ||
Unlimited Potential (अजेय-असीम)में...ajay yadav
66 वर्षो से हम गणतंत्रता दिवस मनाते आ रहें हैं|हमारे पूर्वजों के लहूँ से लिखा हुआ सुनहरा अतीत हमारे सामने हैं और यही हमारा सबसे बड़ा गर्व भी हैं।|अपने जीवन की खुशहाली अपनी आजाद जिंदगी; अपने लहलहाते खेतो,अपने शिक्षको और भाई बहनों के बीच, हमे अपने पूर्वजों, अपने शहीदों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजली देने का यह उचित समय हैं|
हर दिल लुभा रहा है, यह आशियाँ हमारा
प्रेमरस में...शाहनवाज़ 'साहिल
हो ताज-क़ुतुब-साँची, गांधी-अशोक-बुद्धा
सारे जहाँ में रौशन हर इक निशाँ हमारा
हिंदू हो या मुसलमाँ, सिख-पारसी-ईसाई
यह रिश्ता-ए-मुहब्बत, है दरमियाँ हमारा
सारे जहाँ में छाया जलवा मेरे वतन का
हर दौर में रहा है, भारत जवाँ हमारा
गणतन्त्र
Matrooq में..Om Abhay Narayan
बचपन तिरंगे बेचकर
भविष्य रफ़ू करता है
और मुश्ताक़ अली अंसारी ६ दिसम्बर १९९२ से
मुस्लिम मुहल्ले की गलियों से बचकर निकलते हैं
क्या करें वो
पूरे हिन्दू लगते हैं
भूख
ख़ून
इन्सानियत को थर्रा देने वाली
गणतन्त्र की दहलीज़
बिछ जाती है
धर्म के आगे
भारत भाग्य विधाता [आलेख
साहित्य शिल्पी में...सुशील क मार शर्मा
गणतंत्र वास्तवमें मानवीय मूल्यों का पोषक है। किन्तु आज गणतंत्र सिर्फ शासक एवं शोषित के बीच दम तोड़ता नजर आता है। संविधान एवं स्वतंत्रता किसी भी राष्ट्र की सर्वोत्कृष्ट धरोहरें होती हैं। अगर देश का कोई भी निवासी इन की सुरक्षा एवं अनुशरण की अवहेलना करता है तो समझना चाहिए की वह देश पतन की ओर बढ़ रहा है। भारत में आज यह खतरा बढ़ रहा है लोग विधि एवं विधान की अवज्ञा में लगे हुए हैं। वैश्विक प्रगति के नाम पर हम अपने मूलभूत आदर्शों की बलि देते जा रहे हैं। हमारे पुराने हो चुके हैं की वर्तमान सन्दर्भों में अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहें हैं। अरस्तू ने कहा है
" It is better for a city to be governed by a good man than even by good laws .
"अच्छे कानूनो की अपेक्षा एक अच्छे व्यक्ति द्वारा शासित होना कहीं ज्यादा अच्छा है।
धन्यवाद व शुभ विदा...
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसारे जहाँ में रौशन
हर इक निशाँ हमारा
उत्तम प्रस्तुति
सादर
धन्यवाद!
हटाएंबढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंBahut achhee rachanayen
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
भाई कुलदीप जी
बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
अच्छी कोशिश है, इसमें अपनी ग़ज़ल का लिंक देखकर गदगद हूँ!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंBahut sundar
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