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सोमवार, 15 नवंबर 2021

3213 ...धन कमा कर तन मिटाना जब बहकते पाँव पड़ते फिर करे जीवन गरल ये

क्षमा याचना सहित
रविवार के लिए चुनी रचनाएँ
आज सोमवार को
इसे ग्रह-नक्षत्रों का खेल ही कहिए
गलतियां होती रहती है
नजरअंदाज कर दीजिएगा
आज की खासियत...
सखी जिज्ञासा सिंह की तीन रचनाएँ हैॆ
सादर
आज की रचनाएं देखें



मैं भारत की नारी, मैं कमजोर नहीं हूँ भारी हूँ।
मैं काली,दुर्गा,लक्ष्मी हूँ, मैं जननी महतारी हूँ।
मैंने ही तो सबको जीवन दान दिया है




सहरा मे पसरा हुआ कुहासा है,
और शहर मेरा धुआं-धुआं सा है।

कोई कहे ये 'दिवाली' का रोष है,
कोई दे रहा 'पराली' को दोष है,

मुफ्त़जीवी, मुरीद हैं गिरगिटों के,
विज्ञापनों से खाली हुआ कोष है।





फुर्र फुर्र पंख फड़फड़ाता  छोटा सा बिल्कुल नन्हा परिंदा, जिसकी आँखें भी ठीक से नहीं खुली थीं, इधर उधर ढेले की मानिंद लुढ़क रहा था, नंदिनी हाय कहके चीख पड़ी। देखा तो फ़ाख्ता का बच्चा घोंसले से गिर गया था।



अर्थ भी मजबूत होता
देश का भरता खजाना
दोहरी अब नीतियां हैं
धन कमा कर तन मिटाना
जब बहकते पाँव पड़ते
फिर करे जीवन गरल ये।।
मद्य तन का पान करता
फिर क्षणिक सुख दे तरल ये।।




धरती से ऊपर पग हैं,
औ धरती खींच रही मुझको ।
हाथ अंजूरी कढ़ी हुई,
मैं पग पग ढूँढ रही तुझको ।।

मेरे मन की शंकाओं की,
सुन लो अब तो करुण पुकार ।




जो कह रहे हैं चमन ये बड़ा ही सुंदर है ।
उन्हीं के द्वार पर बजती सदा शहनाई है ।।

यहाँ तो हो रहा है, चलती साँसों का सौदा ।
बड़ी मुश्किल से डोर श्वाँस की बचाई है ।।
.....
आज बस
कल फिर
सादर

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    आज के सुंदर अंक में अपनी तीन रचनाएँ देख अभिभूत हूं, रचनाओं को मान देने के लिए आपका हृदयतल से आभार व्यक्त करती हूं, आप सभी का स्नेह तो निरंतर मिलता है, क्षमा की कोई बात नहीं । आप बहुत आदरणीय हैं, आपको मेरा नमन और वंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 🙏🙏💐💐

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर अंक जिज्ञासा जी एवं सह रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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