।। उषा स्वस्ति।।
प्राची ने खिड़की खोली
अब नवल सूर्य है जाग रहा
चिर परिचित कुसुमों के दल सेके रचनाकार
फिर मांग रहा है चाँद विदा!
धरती के घूँघर से जग कर
है कृषक पथ नाप रहा
बैलों के खुर की धूल भरा
नव यौवन सा है प्रात उगा..!!
लावण्या शाह
आप सभी का बुधवार की सुबह और चिरपरिचित कुसुमों के दल .. संग शामिल आज के रचनाकारों के नाम क्रमानुसार पढें..
आ० अनिता जी,
आ०अपर्णा त्रिपाठी जी,
आ० आशा लता सक्सेना जी,
आ० उदय वीर सिंह जी
आ० -यशवन्त माथुर जी...✍️
एक अनेक हुए दिखते हैं
ज्यों सपने की कोई नगरी,
मन ही नद, पर्वत बन जाता
एक चेतना घट
❄️
दिल में फिर, इक ख्वाब पल रहा है,
जमाना फिर हमसे, कुछ जल रहा है
उनके आने के लम्हे, ज्यों करीब हुये
इंतजार कुछ जियादा, ही खल रहा है
❄️
कठिन मार्ग दौनों का
या हो पुष्प कमल का
उन तक जाने में
पहुँच मार्ग में
बड़े व्यवधान आते हैं |
दौनों तक पहुँच पाने में
हम उलझ ही जाते..
❄️
दिल में लिखी है अजमत....
छीना नहीं बख्सा है रब ने स्वीकार करते हैं।
रब का नूर आला है वो सबसे प्यार करते हैं।
रोक देती है चलने से पहले शमशीर खुद को,
❄️
सुप्रभात !
जवाब देंहटाएंसभी रचनाओं पर गई, विविधतापूर्ण और सराहनीय रचनाओं का सुंदर संकलन । बहुत शुभकामनाएँ पम्मी जी ।
उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंलावण्या जी द्वारा रचित भोर की बेला का सुंदर शब्द चित्र! सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएँ, आभार पम्मी जी आज के अंक में मुझे भी शामिल करने हेतु!
जवाब देंहटाएंसफर जारी रहे..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का संगम
सादर नमन
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबस ये सफर ऐसे ही जारी रहे....😊
सादर नमन 🙏
Nice post, all the post are too good. And thank you so much for including my post.
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