हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
राय कृष्णदास (जन्म- 13 नवंबर, 1892, वाराणसी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1985) कहानी सम्राट प्रेमचन्द के समकालीन कहानीकार और गद्य गीत लेखक थे। इन्होंने 'भारत कला भवन' की स्थापना की थी, जिसे वर्ष 1950 में 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' को दे दिया गया। आज 'भारत कला भवन' शोधार्थियों के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। राय कृष्णदास को 'साहित्य वाचस्पति पुरस्कार' तथा 'भारत सरकार' द्वारा 'पद्म विभूषण' की उपाधि मिली थी। भारतीय कला-आन्दोलन में राय साहब का अद्वितीय स्थान है। उन्होंने भारतीय कलाओं का प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत किया है।संतमत को साम्प्रदायिक भावना से मुक्त करने की चेष्टा की है, किन्तु ऐसा लगता है कि इनमें आत्म-महत्त्व-स्थापना की प्रवृत्ति अत्यधिक सबल थी, इसीलिए कहीं-कहीं परस्पर-विरोधी, असंगत और दुरूह कल्पनाएँ करने में भी इन्हें संकोच नहीं हुआ। इनमें कौशल, चतुरता और आडम्बर अधिक है, संतों की सहजता कम। काव्य-दृष्टि से इनकी रचनाएँ उत्कृष्ट नहीं हैं। आध्यामिक विषयों की आग्रहपूर्ण अभिव्यक्ति के कारण इनकी वाणी सरस नहीं हो सकी।वैसे इस तथ्य को इस उक्ति से भी समझा जा सकता है कि ‘माधुर्य भक्ति और लौकिक शृंगार का अन्तर तर्क और वाद-विवाद के द्वारा स्पष्ट नहीं किया जा सकता। तर्क के आधार पर बड़े-बड़े भक्त कवि के माधुर्य भाव को मानसिक रुग्णता और दमित वासना का प्रकाशन कहकर निन्दित किया जा सकता है।
विश्व दयालुता दिवस
जवाब देंहटाएंपर अशेष शुभकामनाएं
सदाबहार संदर्भ अंक..
आभार..
सादर..
बहुत सारगर्भित जानकारी दी आपने दीदी,
जवाब देंहटाएंरायकृष्ण दास जी को सादर नमन 🙏🙏
आपको मेरा सादर अभिवादन 🙏🙏
बहुत बढ़िया प्रस्तुति प्रिय दीदी। कृष्णमार्गी शाखा और विश्व दयालुता दिवस पर अनमोल लेख पढ़वाने के लिए कोटि आभार। दया और करुणा हर धर्म का मूल है। दया से ही संसार में मानवता जीवित रह सकती है अन्यथा सब कुप्रपंच मात्र है। विभिन्न मध्यकालीन भक्ति काव्य विभूतियों के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। आपके श्रम साध्य संकलन के लिए पुनः आभार और अभिनंदन। हैरान हूं कि विश्व को दया दिवस का प्रतिपादन करना पड़ा अन्यथा दया और करुणा के बिना मानव निरा पशु कहा जा सकता है 🙏🙏
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