हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
"अद्धभुत, अप्रतिम रचना।
नपे तुले शब्दों में सामयिक लाजवाब रचना। दशकों पहले लिखी यह आज भी प्रासंगिक है। परिस्थितियाँ आज भी ऐसी ही हैं।
लाज़वाब.. एक कड़वी हकीकत को बयां करती सुंदर रचना।
रचना में अनकहा कितना सशक्त है। मार्मिक व सच्चाई को उजागर करती उम्दा रचना।
सशक्त, गजब, बेहतरीन, बहुत शुक्रिया, इस रचना को पढ़वाने का हृदय से आभार..
जैसे आदि-इत्यादि टिप्पणियों के बीच में कोई भी विधा की रचना हो तुम्हारे भाँति-भाँति के सवाल, तुम्हें ख़ुद में अटपटे नहीं लगते?"
"नहीं ! बिलकुल नहीं.. अध्येता हूँ। मेरा पूरा ध्यान विधा निर्देशानुसार अभिविन्यास पर रहता है। और करना भी तो पड़ता है"
कुछ तो है ऐसा जो अन्दर चुभ रहा है पर दिख नहीं रहा।टीस तो उठ रही है पर वजह क्या है समझ नहीं आ रही।एक सन्नाटा सा मन में है।क्या कहें उसे सन्नाटा,निशब्द,शून्य या फिर कुछ और? बस इतना पता है कि कुछ तो मर गया है अन्दर, निशास्वत होगया है। कितना भी उठाओ झिंझोड़ो मन है कि पहले सा दौड़ता नहीं है।
खूब हुई है कहासुनी ...
इसबार सुन लूं 'अनकही '...|
ताकि जान सकूं 'ना ' में छुपी 'हाँ' को ,
गुस्से में दबे प्यार को ,
और खुद्दारी में समाई प्यास को ......
ईश्वर की वो सुंदर रचना है
गर भक्ति मार्ग प्रस्थ करे
तो लौकिक होते हुए भी
पारलौकिकता
का अनुभव बोध करा सकती है
एक प्रतीक्षित मृत्यु स्वयं के साथ न जाने कितने जीवित लोगों को मुक्त कर देती है–-यह विचार उस कुहासी मौसम में उसे अधिक ठंडी झुरझुरी दे गया।
अन्तेयष्टि के बाद निकटतम परिचित लोग परिवार जनों से मिलकर अपने घरों को जा रहे थे।भीड़ के एक छोर पर वह खड़ा था।
मीठी-मीठी बात किसी की
फ़ौरन ठग लेती है
मीठी छुरियो ने हरदम
गर्दन तेरी रेती है
मीठा विष भी होता है
सदा की तरह दमदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर नमन..
सुंदर लिंकों का चयन।
जवाब देंहटाएंसादर।
सुंदर, सराहनीय अंक । सादर अभिवादन 🙏💐।
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