सादर अभिवादन
पंचोत्सव का चौथा दिवस
स्मित हास्य के साथ
रचनाएँ.....
तन्दूर के पास हर पच्चीस लोगों में एक ऐसा होता है जो
सूखी रोटी बिना बटर-घी वाली की डिमांड करता है
हालांकि उसकी प्लेट में पहले से ही
गुलाबजामुन
छोले
फ्रूट क्रीम
पनीर बटर मसाला
मूंग दाल का हलवा आदि होता है!!
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दीपावली पर्व में सूरन की सब्जी क्यों बनायी जाती है, इसका क्या महत्व है?
दीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है,,,सूरन को जिमीकन्द (कहीं कहीं ओल) और कांद भी बोलते हैं, आजकल तो मार्केट में हाईब्रीड सूरन आ गया है,, कभी-२ देशी वाला सूरन भी मिल जाता है ! दीपावली के 3-4 दिन पहले से ही मार्केट में हर सब्जी वाला (खास कर के उत्तर भारत में) इसे जरूर रखता है ,और मजे की बात है कि इसकी लाइफ भी बहुत होती है!
यह बवासीर से लेकर कैंसर जैसी भयंकर बीमारियों से बचाए रखता है। इसमें फाइबर, विटामिन सी, विटामिन बी6, विटामिन बी1 और फोलिक एसिड होता है। साथ ही इसमें पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम और कैल्शियम भी पाया जाता है !
मुझे नही पता कि ये परंपरा कब से चल रही है लेकिन सोचिए तो सही कि हमारे लोक मान्यताओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई होती थी .
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रात्रि श्यामला सनी,
कालरात्रि सी घनी ।
आज तिमिर से ठनी ।।
एक दीप जल रहा,
वायु संग मचल रहा ।
बर्फ सा पिघल रहा ।।
बुझ गया अगर कहीं,
दिख रहा है डर यही ।
मिल रही डगर नहीं ।।
नन्हा दीपक
तम से लड़ता
चमक रही कंदील
तेज हवा से
रक्षा करतीं
ममता की दीवारें
रंग बिरंगे
इस मंजर पर
लक्ष्मी खुद को वारें
फिर हों बुझे चिराग़ रौशन, ज़िन्दगी
फिर बने दिवाली की रात, कुछ
खो दिया है अंधेरे में कहीं,
बहुत कुछ पा भी लिया
है उजाले के साथ,
दुआओं के लौ
जलते रहे
लक्ष्मी लोहा-लक्कड़ और बासन-बर्तन में नहीं वल्कि गणेश यानी बुद्धि के साथ
प्रसन्न रहती है। धनतेरस में स्टील, काँच, प्लास्टिक, लोहा इत्यादि खरीदकर
आप शनि राहु को आमंत्रित करते हैं।
बुद्धिमान बनिये, स्वस्थ रहिए, अच्छी पुस्तकें पढ़िए और माँ लक्ष्मी को प्रसन्न कीजिये। लक्ष्मी की भी पूजा बुद्धि के देव गणेश से ही होती है और माता लक्ष्मी सदैव उनके
साथ ही विराजमान प्रसन्न रहती हैं।
जहाँ बुद्धि और ज्ञान
यहीं लक्ष्मी का वरदान।
माटी के दीये जलाकर अपने संस्कृति की अलख जगायें हम
परित्याग कर चाइनीज़ वस्तुएं,वस्तु स्वदेशी ही अपनायें हम
पुनर्जीवित कर परम्पराओं को दीपावली यादगार बनायें हम
जन-मन में राष्ट्रभक्ति के भाव के वीर्य बोने को उकसायें हम ,
कुम्हार के चाक पर
मिट्टी और नमी से
गढ़े गए हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम।
बच्चों की हठ पर
हाट-बाज़ार से
खरीदे गए हैं हम ।
मिट्टी के दिये हैं हम ।
मन से अंधेरे भगाकर देखो।
दीप से दीप जलाकर देखो।
आओ मनाएं हम आज दिवाली।
कभी नहीं आए रात कोई काली।
मन में सपने सजाए कर देखो।
दीप से दीप जलाकर देखो।
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आज बस
कल मिलिए विभा दीदी से
सादर
शुभकामनाओं के संग साधुवाद
जवाब देंहटाएंआशीर्वचन की अभिलाषा
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक..
सादर नमन..
अहा !
जवाब देंहटाएंचतुर्दिक दीप ही दीप जल उठे !
गोविन्द ने जब गोवर्धन धारे !
इस जगमगाती कड़ी से जोड़ने के लिए अनंत आभार, यशोदा जी.
सभी के लिए दीपोत्सव मंगलमय हो. नमस्ते.
आओ मनाएं हम आज दिवाली।
जवाब देंहटाएंकभी नहीं आए रात कोई काली।
सादर शुभकामनाएं
दीपमालिका की तरह जगमगाता सुंदर अंक, और मध्य मेरी भी रचना ।मन खुशी से प्रफुल्लित हो गया और आपका असंख्य आभार व्यक्त करता है,आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन । आज के इस विशेष अंक के श्रमसाध्य कार्य के लिए आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं यशोदा दीदी 🙏🙏💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाओं का संगम है। मेरी रचना को स्थान देने के लिये धन्यवाद।
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