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शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

3217 ....फूल और.बच्चों का मन

शुक्रवारीय अंक में

आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।

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सोचती हूँ, 

श्वेत पन्नों को काले रंगना छोड़

फेंक कर कलम थामनी होगी मशाल

जलानी होगी आस की आग 

जिसके प्रकाश में

मिटा सकूँ नाउम्मीदी और

कुरीतियों के अंधकार
काट सकूँ बेड़ियाँ 
साम्प्रदायिकता की साँकल में
जकड़ी असहाय समाज की
लौटा पाऊँ मुस्कान
रोते-बिलखते बचपन को
काश!मैं ला पाऊँ सूरज को 
खींचकर आसमां से
और भर सकूँ मुट्ठीभर उजाला
धरा के किसी स्याह कोने में।

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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

 ध्यान धरो


वही जोगिनी यात्रा होगी
जिस पर चलते लाखों पग
अधम अगम सब योग्य दिखेगा
तृष्णा बन जब उड़े विहग

अरे उठो तुम तनिक जमी से
खुद को थोड़ा दान करो

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मरना कोई नहीं चाहता
वह भी नहीं
भले ही जन्मा
सड़क के किनारे
स्वतंत्र प्राणी के रूप में
पर चाहता है ग़ुलामी
ज़िन्दा रहने के लिए

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कब तक रहा, वक्त इक जैसा,
डरो मत, ये बस सांझ है,
मन में, इक बांझपन ये बढ़ाएगी, कब तक,
चलो ना,
वक्त की, बदलती, करवटें ढ़ूंढ़ लाएं!

उस ओर, वो पल उम्मीदों भरा,
तो हों, यूं नाउम्मीद क्यूँ,
बादल नाउम्मीदियों के, छाएंगे ये कब तक,
चलो ना,
उम्मीद की, वो नई किरण ढ़ूंढ़ लाएं!

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आज कैसी ये लगन है
पाँव झाँझर से बजे हैं
उड़ रहा है खग बना मन
हर दिशा तारक सजे है
लो पवन भी गुनगुनाकर
कुछ महक कर सरसराई।।

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किसी का क्या बिगाडा था, हुआ जो साथ ये मेरे

किया जो होम तो फिर, जला ये हाथ आखिर क्यों

 

किसी को मिल गया पैसा, किसी के पास शोहरते

मेरे दामन में ही कांटे, हजार आये है आखिर क्यों

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साहित्य का युवा वर्ग पर प्रभाव

यहां घास और तिनके को अलग करके भी

देखा जाए तो फूल,बच्चे और मन सबसे पहले कुचले जाते हैं तो फिर शेष क्या रह जाता है ? हो सकता है यही पंक्तियां यदि किसी महिला ने लिखी होतीं तो वह यहां एक शब्द और जोड़ देती वो होता "लड़कियां " और ये पंक्तियां और ज्यादा रूखी -कठिन हो जाती। जितना भी किशोरवय या बच्चे इस तरह के साहित्य को पढ़ेंगे उनकी भावनाएं बिना सोचे-समझे एक धारणा बना लेंगी जो किसी के लिए भी उचित नहीं होगा। जबकि ये भी सभी मानते होंगे कि फूल और मन पर तो ज्यादातर सारा का सारा काव्य साहित्य टिका हुआ है। बच्चों के साहित्य की भी कहीं कमी नहीं है बच्चों पर भी कविताएं पहले भी लिखी गई हैं आज भी लिखी जा रहीं हैं।




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आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं

प्रिय विभा दी।

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5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर अंक
    हौसला अंत तक कुरेदने की चाहत
    पंद्रह दिनों का गंभीर चिंतन
    साधुवाद..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. कार्तिक पूर्णिमा (पुन्नी मेला),
    गुरुनानक जयंती की
    शुभकामनाएं..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय श्वेता आज का अंक तो बेमिसाल है ही पर आपकी भूमिका बहुत ही शानदार/ लाजवाब है सुंदर अर्थ पूर्ण भूमिका से प्रस्तुति में चार चाँद लग गये।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    सस्नेह सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. श्वेता जी, हमेशा की तरह एक शानदार और अंक को सुशोभित करती सुंदर शब्दावली से सज्जित भूमिका ने हर रचना तक जाने की जिज्ञासा पैदा कर दी । रचनाएँ भी बहुत सुंदर और सार्थक है, उन्हीं के मध्य मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन । मेरी आपको और सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं

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