।।प्रात वंदन।।
"जब प्रभात में मिट जाता
छाया का कारागार,
मिल दिन में असीम हो जाता
जिसका लघु आकार।
मैं तुमसे हूँ एक, एक हैं
जैसे रश्मि प्रकाश;
मैं तुमसे हूँ भिन्न, भिन्न ज्यों
घन से तड़ित्-विलास..!!"
महादेवी वर्मा
सूर्य उपासना का सामाजिक महोत्सव छठ, पर्यावरण संरक्षण के साथ संस्कृति को जोड़,निरंतर कर्मरत का संदेश दे रहा।चलिए इसी को मद्देनजर रखतें हुए नज़र डालें आज की प्रस्तुति पर..✍️
सूर्य की उपासना अनादी
काल से ही भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के समस्त भागों में श्रद्धा-भक्ति के साथ की जाती रही है.सूर्य सबके ही उपास्य देव रहे हैं. हमारे देश में सूर्य उपासना के लिए विशेष पर्व छठ है जिसे बहुत ही आस्था-श्रद्धा के साथ मनाया जाता है .’ षष्ठी देवी ‘..
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अमृत है हर बूंद
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सागर के तट पर बैठा हो
फिर भी कोई, प्यासा ! कहता,
जीवन बन उपहार मिला है
मन चातक सा...
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शानदार अंक
जवाब देंहटाएंछठ पर्व की शुभकामनाएं..
सादर..
महादेवी जी की रचना की सुंदर पंक्तियों से सज्जित आज की भूमिका मन मोह गई । शानदार सूत्रों का अंयोजन । मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार पम्मी जी । छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
जवाब देंहटाएंसुप्रभात🙏🙏
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंको से सजी बहुत ही उम्दा प्रस्तुति!
सभी को छठ पर्व की हार्दिक-हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई💐💐💐💐
सागर के तट पर बैठा हो
जवाब देंहटाएंफिर भी कोई, प्यासा ! कहता,
अति सुंदर अभिव्यक्ति।
अच्छे लिंक्स है।
मुझे भी स्थान देने के लिए आभार पम्मी जी
सुंदर भूमिका और मनोरम रचनाओं का चयन, बहुत बहुत बधाई पम्मी जी आज के अंक के लिए, आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंछठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं