सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक
लेकर हाज़िर हूँ।
नवंबर की धूप मनभावन लगे,
खिले-चहके घर-आँगन लगे।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
कौन हमसे ज्यादा
मन को प्यारा होता
क्या है उसमें
लाडला किस लिए
ख्याल तुम्हारे
सबसे अलग हैं
प्रिय हैं मुझे
तब यह दूरी क्यों
किसके लिए |
जिन तालाबों का पानी पीते थे बेधड़क
वे तालाब सूख जाएंगे
और उदास हो जाएंगे नदियों के तट
जिनपर पर "मास" करने नहीं आया करेंगे आस्थावान श्रद्धालु ।
बहुत दिनों तक रास रचाए
ग्वाल बाल सँग चोरी
और घनेरा माखन खाया
फोडी गगरी बरजोरी
सब कुछ भोगा इसी धरा से
विश्व नाचता दरणी पर।।
सियासत का लहू | शायरी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
क्यों सन्नाटें को छोड़
जब
गुजरता हूँ भीड़ से कई
टुकड़े हो जाते है
मेरे तन-मन के अब।
****
आज बस
यहीं तक
फिर मिलेंगे अगली
प्रस्तुति में आगामी
गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह
यादव
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंसादर.।
सुंदर सराहनीय अंक ।
जवाब देंहटाएंपठनीय और बेहतरीन रचनाओं की खबर देते सूत्रों से सजा अंक, आभार!
जवाब देंहटाएंसबको सादर प्रणाम!
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
आज की आपकी प्रस्तुति में वाक़ई सभी रचनाएँ बेहतरीन एवं प्रशंसनीय है। इस प्रस्तुति की अंतिम रचना "गमों का सिर्फ एक ही रंग..." अद्भूत रचना है।
सुंदर लिंक्स से सुशोभित सुंदर अंक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।।
सादर सस्नेह।
सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं