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सोमवार, 29 नवंबर 2021

3227...मसि कागद जब खाद बने शब्द कहाँ से पाए

सादर अभिवादन
मौसम संधिकाल
लगभग सभी की तबियत में
नरमी ला दिया है..वैसे इस मौसम को
हैल्दी सीज़न कहते है,  रुग्ण लोग जल्द
जो स्वस्थ हैं वे
स्वस्थ हो जाते हैं और अधिक
तरोताजा हो जाते हैं...
रचनाएँ...



प्रीति भरके प्रवाहित हुई एक नदी
झूमती दस दिशाऐं बहारों से हैं

तब प्रणय गीत अधरों पे सजने लगे
बन्द पलकें सजल डबडबाने लगीं

लेखनी चल पड़ी तेरे अहसास कर
शब्द दर शब्द भर कंपकंपाने लगी




श्वेत वस्त्र को पहन
मनन मनन मनन गहन
चला चला चले है वो

है राह अब गहे है जो
न यत्र से न तत्र से
लिखेगा ताम्रपत्र से

भुजंग सी लकीर वो
नहीं नहीं फकीर वो




अभावों में ही पली बढ़ी
नहीं थी कुछ भी लिखी पढी
मल्लाह परिवार में हुआ जनम
मुश्किलों से होता भरण पोषण
पति नहीं था ससुराल नहीं थी




चंचल, बेकाबू, मतवाला
भागा करता सपनों के संग,
रुकता ही नहीं पल भर को भी
उड़ता फिरता विहगों के संग !

कैसे रोकूँ दीवाने को
सुनता ही कहाँ ये पागल मन,
हाथों से छूटा जाता है
यह चिर चंचल यायावर मन !




सृजन पीर माधुर्य लिए
आनन्द लुटाती है

क्षणिक चित्र उर माटी में
दृश्य बीज अकुलाए
मसि कागद जब खाद बने
शब्द कहाँ से पाए
सृजनहार कवि फिर जन्मा
वो कलम लुभाती है।।




सुरमई यह शाम है
तुम्हारे ही नाम है,
अधरों पर गीत सजा
दूजा क्या काम है !

बिखरी है चांदनी
गूंजे है रागिनी,
पलकों में बीत रही
अद्भुत यह यामिनी !
.....
इति शुभम
सादर

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    आपको मेरा सादर अभिवादन आदरणीय दीदी,
    सभी रचनाओं पे गई ,सुंदर और पठनीय अंक सजाया है आपने,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन।
    शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 🙏💐

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
    सभी को बधाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर रचनाओं का संकलन आज के अंक में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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