निवेदन।


फ़ॉलोअर

रविवार, 7 नवंबर 2021

3205 ...अगली मुलाकात के वादे पर आंखों से किया हस्ताक्षर था

सादर अभिवादन

भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धी तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।

यह पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरम्भ होता है। पहले दिन सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरम्भ होता है। व्रति दिनभर अन्न-जल त्याग कर शाम करीब ७ बजे से खीर बनाकर, पूजा करने के उपरान्त प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे खरना कहते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्जित होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहाँ भक्तिगीत गाये जाते हैं।अंत में लोगो को पूजा का प्रसाद दिया जाता हैं।

रचनाएँ...



उसके बयान के आधार पर भैरव पर लगे सारे आरोप हट गये और वह मुकदमा जीत गया तब उसे विश्वास हो गया कि भाई -दूज के दिन बहन के हाथ का भोजन करने से कितना लाभ है। भगवान बहनों के दिल से निकले आशीर्वाद द्वारा भाईयों के हर कष्ट का निवारण इसी प्रकार करते हैं।


क्षणिकाएँ....
सुना है
तुम्हारा शहर भीग रहा है
तनिक जाकर देख लो
आसमान की आंखें नम है
या फिर किसी
अल्लहड लड़की का गम है ।

पहली मुलाकात में
बिछड़ते समय
तुम्हारा यूं पलटकर देखना
अगली मुलाकात के वादे पर
आंखों से किया हस्ताक्षर था
सरिता सैल की अप्रकाशित रचना
केवल पठन हेतु




जीवन गुलाब सा नहीं है
कांटों भरी पौध सा है, उसके
फूल बहुत खिलते हैं,किन्तु
चुभते हैं बहुत कांटे भी दुःख के।


परसादु चढ़ावै का विचारि, उइ मन्दिर अन्दर बैठि गईं
हम चारि बूँद पानी छिरकेन, औ ठौरइ पै परिकमा कीन।।

इन बातन ते गुस्सा हुइके, जो हाथें परा चलाई दिहिनि।
हम देवी का परसादु समझि, हँसि हँसि के तन पे सहा कीन।।





"दीपमालिका करन आई
व्रज वधू मन हरनि
कंचन थाल लसत कमलन कर।।१।।

नंद महर घर घरनि
गज मोती न के चौक पूराये
गावत मंगल गीत युवती जन
'आसकरण' प्रभु मोहन नागर
निरख हरख प्रफुल्लित तन मन।।२।।..
...
कल फिर
सादर

1 टिप्पणी:

  1. छठ पर्व की जानकारी और महत्ता से सुशोभित सुंदर भूमिका । सराहनीय संकलन । छठ पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई 💐💐 ।

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...