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रविवार, 10 जनवरी 2021

2004....ज़िन्दगी के कुछ साल लीज़ पर मिली है, रजिस्ट्री के चक्कर मे ना पड़े

जय मां हाटेशवरी...... 
माँ तुमने जब गोद मे उठाकर प्यार किया था हमारा ये ब्लॉग...... 
2000 पोस्टों का आंकड़ा पार कर गया..... 
जो मंजिलों को पाने की चाहत रखते है 
वो समुन्द्रों पर भी पत्थरो के पुल बना देते है 
सादर नमन..... 

 इस वर्ष का आज 10वां दिन है..... 
समय कितनी तेजी से भाग रहा है...... 
ज़िन्दगी कुछ साल के Lease पर मिली है 
रजिस्ट्री के चक्कर मे ना पड़े मस्त रहे,
स्वस्थ रहे देखिये आज के लिये मेरी पसंद..... 

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, 27984
माघ माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि, 
मकर संक्रांति की तिथि होती हैं। 
जो अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक 14 या 15 जनवरी में से 
कोई भी एक तिथि हो सकती है। 
आमतौर पर मकर संक्रान्ति 14 जनवरी को मनाया जाता है। 
हिमांचल, हरियाणा तथा पंजाब में मकर संक्रान्ति 
एक दिन पूर्व यह त्यौहार लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। 
हिंदू धर्म में मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन से ही 
खरमास खत्म हो जाता है और 
शुभ कार्यों की शुरूआत हो जाती है। 
 
दोगुने जोश से जुट जाती हूँ  
और प्रश्न हल करने में 
सफलता का नशा  
मस्तिष्क पर छा जाता है  |
  
पार के तटबंध, 
किनारे खड़े 
अर्ध नग्न बच्चों की आँखों में उभरते हैं, 
कुछ रंगीन गुब्बारे, न जाने क्या तलाशते हैं, 
वो मेरे वक्ष के अंदर, 
धूसर आईने में नहीं उतरते हैं 
सुबह के सितारे, वो डूब जाते हैं वहीँ 
अपने उसी जन्म स्थान के किनारे, 
निर्ममता से समय 

वो जागते ख़्वाब में तनहा सा भटकता है,  
मैं ख़्वाबों नींद में भी साथ उस के जा रहा हूँ। 
मुसाफ़िर रिश्तों को ढोने में अब रखा क्या है, 
सफ़र में समान अधिक जो था उसे हटा रहा हूँ। 

पुराने कपड़ों से छुटकारा पाना कितना सुखद होता है अगर उनके बदले स्टील का कोई सस्ता–सा बर्तन, प्लास्टिक का सामान या ऐसा ही कोई फालतू सामान मिल जाए। जाने कितने लोग अपने कान खड़े किए रहते हैं बर्तन या सामान के बदले रद्दी कपड़े लेने वालों की आवाज की प्रतीक्षा में। अब तो वृद्धाश्रम का भी अच्छा–खासा चलन बढ़ गया है, एक दिन भाई साहब किसी से चर्चा कर रहे थे। शायद भाई साहब के मन के किसी कोने में यह बात उमड़ती–घुमड़ती होगी कि दादी जैसी रद्दी कपड़ों की गठरी को वृद्धाश्रम में सौंप कर जीवन का दायित्वहीन पल हासिल किया जा सकता है। मगर, भाई साहब का दुर्भाग्य कि सागर अभी इतना प्रगतिवान शहर नहीं बना है जहाँ वे दादी को वृद्धाश्रम के हवाले कर के चैन से रह सकें। मोहल्ले, पड़ोस, परिचित सब के सब टोकेंगे। अच्छी–खासी भद्द उड़ेगी। अतः दादी को अपने साथ ही रखना होगा, हर हाल में। यह विवशता उनके हर हाव–भाव में परिलक्षित हो रही थी। शायद यही कारण था कि वे बात–बात में चिड़चिड़ा रहे थे। बार–बार असहज हो उठते 

वर्तमान स्थिति में क्यों नहीं किसानों का पक्ष जानकर इन कानूनों को समाप्त कर नए कानून ले आए जाएँ? लोकतंत्र का तकाजा है कि 'लोक' की आवाज को लोक के प्रतिनिधि सुनें, समझें तदनुसार कानून और नीति को बदलें। देश के लोकप्रिय और समर्थ प्रधान मंत्री जी इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाकर, किसानों के विश्वास की रक्षा करें तभी लोकतंत्र की जीत होगी।  

अब न कहीं जाना, 
कुछ पाना  
दो ना एक हुए रहते हैं,  
एक बोलना यदि चाहे तो   
कर्ण दूसरे के सुनते हैं ! 

आज बस इतना ही...... मिलते रहेंगे.... 
हाथ बांधे क्यों खड़े हो हादसों के सामने 
हादसें भी कुछ नही है हौंसलो के सामने 
 धन्यवाद।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति..
    आभार आपका
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर भूमिका के साथ रोचक और पठनीय रचनाओं का संकलन, आभार मुझे भी इसमें शामिल करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  3. कुलदीप ठाकुर जी,
    यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है कि आपने मेरी कहानी को 'पांच लिंकों का आनंद' में शामिल किया है। आपका हार्दिक आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद 🌹🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा लिंक्स चयन
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  5. व्वाहहहहहह
    बेहतरीन अंक
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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