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सोमवार, 25 मई 2020

1774..हम-क़दम का एक सौ इक्कीसवाँ अंक...

सादर अभिवादन..

इस बार का विषय था एक चित्र
अनेकों विषय समेटे हुए
पदचिन्ह, सफ़र, रेतीली लहर और
मरुस्थल...एक अच्छा ताल-मेल दिखाई पड़ा
.......
एक नज़र कालजयी रचनाओं की ओर..

तो !! कहाँ खो गए ये सब?,
किसने किया यह सर्वनाश ?
कौन है अपराधी ?
ह्रदय में उठे तमाम सवालात ,
और चुभ गए असंख्य कांटे .
जब मैने देखी कुछ काली ,भयावह परछाईयाँ .
यकीनन यह मृत्यु के पदचिन्ह इन्हीं के थे.


ताज़े, पर अपरिचित अनाम
अभी छोड़ गई इन्हें शाम
जाने क्यों हो करके खिन्न ।
गहरे-गहरे से पदचिन्ह ।


बिल्कुल ताज़े पदचिन्ह जैसे अभी
ताज़ा फ़्रेम पर काढ़े गए हों
ख़ुरदुरे फिर भी ख़ूबसूरत
पदचिन्हों में दिखाई दे रही हैं
स्पष्ट एक-एक अंगुलियाँ, लकीरें
कौन पढ़ सकता है इन लिपियों को

....
नियमित रचनाएँ
.........
आदरणीय विश्वमोहन जी
पद तल,मरू थल के!

अब न पुनर्जन्म, हे स्वामी,! नहीं धरा पर जाऊँगा,
परम पिता,  तेरी प्रवंचना! नहीं छला अब जाऊँगा।

छल की बात सुन,  भगवन के नयनों में करुणा छलक गए।
छौने की निश्छल पृच्छा पर,  पलकों से आँसू ढलक गए।



आदरणीय साधना वैद
एक अंतहीन तप्त मरुथल
पसरा हुआ है और
पसरा हुआ है एक  
कभी न खत्म होने वाला
भयावह सन्नाटा
जहाँ अपनी ही
पदचाप सुन कर मैं
सिहर-सिहर जाती हूँ !


आदरणीय आशा सक्सेना
दूर तक रेत ही रेत
उस पर पद  चिन्ह तुम्हारे
अनुकरण करना क्यूँ हुआ प्रिय मुझे ?
कारण नहीं जानना चाहोगे|
मैंने तुम्हें अपना गुरू
दिल से माना है


आदरणीय अनीता सैनी
मरुस्थल पर  हवा ने बिखेरे हैं धोरे 
काल की रेत पर मूर्छित हैं पदचाप।
गर्दन घुमा देखता बकरियों का समूह
गूँजता गड़रिये का व्याकुल आलाप।

कुसुम कोठारी
पदचिन्ह

उलझती सुलझती रही
मन लताऐं  बहकी सी।
लिपटी रही सोचों के
विराट वृक्षों से संगिनी सी।
आशा निराशा में
उगता ड़ूबता भावों का सूरज।
हताशा अरु उल्लास के
हिन्डोले में झूलता मन।

आदरणीय शुभा मेहता
गीली रेत पर 
छोड़ चले थे
अपने पदचिन्ह...
तय करते ल..म्बा  सफर 
पहुँच गए कितनी दूर 

आदरणीय ऋतु आसूजा
कर्मवीरों के पदचिन्ह ...
जब तक धरती पर
शाश्वत सत्य के दीप जलेंगे
अन्धकार के द्वेष को भस्म करेंगे।
उजालों में मार्गदर्शक की
भूमिका  निभाते सत्य पथ के
महा नायकों के पदचिन्हों का अनुसरण
जीवन की सफलता का सूत्र बनेगा


आदरणीया उर्मिला सिंह
पदचिन्ह

पद चिन्हों की......
सिसकियाँ 
लहरों में...
दब के रह जाएगी,
दिल के कोने -में,
या मशाल बन जलेगा ...
प्रेरणा का स्रोत

आदरणीया अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
कदमों के निशान

हमारे कदमों के निशान
चलते रहना ही जीवन है
रह जाता है जो पीछे
या छूट जाता है जो
बनता है अतीत
आने वाली पीढ़ी को


आदरणीया सुजाता प्रिया
पदचिह्न रेगिस्तान के

रेतोंं में धसते
पावों द्वारा अदम्य
साहस ले राहें रचने की।
गहराई
तक उभरने
वाले ये पदचिह्न,
पथप्रदर्शक बन पथ
दिखाती है।और यह रेत
अपनी
छाती पर


आदरणीया कामिनी सिन्हा
"अगर मैं कहूँ"


तुम्हे लगता हैं कि -" तुम मेरा भरण पोषण करते हो जबकि इसमें आधी भागीदारी मेरी भी होती हैं...तुम्हे  लगता हैं तुम मुझे संभालते हो.....जबकि दुनिया भर की थकान को दूर करने के लिए तुम्हे मेरे आँचल के पनाह की जरूरत होती हैं.....मानती हूँ तुम अपने आँसू छुपा लेते हो.....मुझमे वो क्षमता नहीं....मेरे आँसू पलकों पर झलक आते हैं.....फिर भी बिना तुम्हारे कहे ही.....मैं तुम्हरे दर्द को अपने सीने में महसूस करती हूँ और तुम्हारे दर्द पर अपने स्नेह का मरहम लगाकर तुम्हारे होठो पर हँसी लाने की कोशिश करती हूँ...।



आदरणीय मीना शर्मा
हमने बादल से गुज़ारिश की है,
बरस जाए वो, जमीं पर दिल की!
कोई कदमों के निशां छोड़ गया,
अपने अश्कों से मिटाएँ कैसे ?




आदरणीया अनुराधा चौहान
राह काँटों भरी

पग में छाले बहुत पड़े हैं
दूर है मंजिल अभी।
बहता लहु दिल देख रो रहा
छोड़ेंगे न घर कभी।
सोच मजदूर चले अकेले 
अँखियाँ नीर से भरी।
बड़े जतन से भरी हुई थी
छलक पड़ी सुख गगरी।

और चलते-चलते
आदरणीय सुबोध सिन्हा
टिब्बे भी तो

निर्मित पल-पल के कण-कण से
कालखंड के रेत पर पग-पग
बढ़ता ..  चलता जाता मानव जीवन
चलता, बीतता, रितता हर पल तन-मन।
कामना पदचिन्ह के अमर होने की,
पीछे अपने किसी के अनुसरण करने की,
ऐसे में तो हैं शायद शत-प्रतिशत बेमानी सारे।
तभी तो "परिवर्तन है प्रकृति का नियम" -
हर पल .. हर पग .. है बार-बार यही तो कहते।
....

आज का अंक आपका है
आपके द्वारा रचित रचनाएं
श्रेष्ठ हैं यकीनन
कल मिलिएगा नए विषयकार
भाई रवीन्द्र जी से
सादर..








17 टिप्‍पणियां:

  1. रेत में उगी रचनाओं के चिह्नों का सुरुचिपूर्ण संकलन!

    जवाब देंहटाएं
  2. रेत पर लिक्खी अमिट रचनाएँ
    उत्तम संदर्भ अंक..
    शुभकामनाएं..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहद खूबसूरत सभी रचनाएं
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीया सुन्दर संकलन रेत पर निशान
    सभी रचनाएं सरहानिय

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर!!रेत के सीने पर अंकित पद चिन्हों को अपनी अपनी प्रतिभा के अनुसार पढती प्रबुद्धजनों की सुदक्ष कलम👌👌👌 बेमिसाल , अविस्मरणीय अंक आदरणीय यशोदा दीदी। सभी रचनाकारों को शुभकामनायें और बधाई
    । आपको आभार इस भावपूर्ण अंक के लिए 🙏🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!!सुंदर संकलन । मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  7. आज के हमक़दम के 121वें अंक में गत सप्ताह विषय के लिए दिए गए "शुष्क रेत पर कुछ उगे पदचिन्ह" वाली तस्वीर पर आधारित कई सारी उम्दा और सारगर्भित रचनाओं/विचारों के बीच मेरी भी रचना/विचार को देख कर अच्छा लग रहा है ..
    मंच का आभार ...

    जवाब देंहटाएं
  8. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया यशोदा जी।

    जवाब देंहटाएं
  10. हमकदम का बेहतरीन अंक ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार दी ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन अंक सभी रचनाकारों का एक से बढ़कर एक रचनाएँ उन रचनाओं के मध्य हमारी रचना को शामिल करने के लिए ह्र्दयतल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का हमकदम ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिये आपका हृदय से
    बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी यशोदा जी! सप्रेम वन्दे!

    जवाब देंहटाएं
  13. पदचिह्न पर बेहतरीन संकलन आदरणीय दीदी. सभी रचनाएँ बहुत ही सुंदर श्रमसाध्य प्रस्तुति. मेरे सृजन को स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय दीदी.
    दी आमंत्रण में कुछ समस्या है डाइरेक्ट ओपन नहीं हो रहा कल भी यही प्रॉब्लम थी. आप एक बार चेक करे.
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    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति,पदचाप के निशान
    छोड़ती हुई अमर रचनायें

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत सुंदर रचनाओं से सजा संकलन। जिन कालजयी रचनाओं को हम खोजकर नहीं पढ़ पाते, उनका यहाँ अनायास ही पा जाना किसी उपहार से कम नहीं होता। इतनी सुंदर रचनाओं के बीच मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयपूर्वक आभार दीदी।

    जवाब देंहटाएं

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