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झगड़ा जीते जी
महज़ एक इंसान बनकर
और मर कर भी औरों के
काम आ जाएं हमलोग
क्यों नहीं भला हमलोग
देहदान करते हैं ...
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सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंऐसे भ्रमित योद्धाओं को महत्व देने का कोई औचित्य नहीं।
जवाब देंहटाएंसबका अपना दृष्टिकोण हैं दूसरे के कर्म से व्यथित होकर हम अपने लक्ष्य से न भटके यही हमारे कर्म की सार्थकता है।
पठनीय सूत्रों से सजी सुंंदर प्रस्तुति।
मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत आभार रवींद्र जी।
बेहतरीन हैट्रिक
जवाब देंहटाएंधारदार रचनाएँ
आभार..
सादर
बहुत सुंदर संकलन। लेकिन मज़दूरों की भला कौन खिल्ली उड़ा रहा है। हम स्वयं भ्रमित हैं। समाज ही जब निर्लज्ज हो जाय तो सत्ता क्या कर लगीं। अब मुझे उस समाजशास्त्री का नाम याद नहीं आ रहा जिसने गिरते नैतिक मूल्यों पर कहा था, अब सत्ता नहीं, प्रजा को ही बदलना होगा, हम इतने नैतिकता विहीन हो गए हैं। जात-पात, धर्म-मज़हब, वाद, पंथ और खेमें में खड़े होकर हम अपनी सत्ता बनाते हैं और फिर प्रलाप करते हैं। बहुत कुछ सीखा गया -कोरोना! प्रसिद्ध आलोचक नंद किशोर नवल को श्रद्धांजलि और आभार उनके परिजनों का जिन्होंने उनके शव यात्रा के क्रम में उनकी अर्थी को पटना विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में तनिक विश्राम देकर उनकी अंतिम इच्छा पूरी की।
जवाब देंहटाएंवाह!सुंदर संकलन ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर हलचल प्रस्तुति. सभी रचनाएँ बेहतरीन. सभी को बधाई. विचारोत्तेजक संक्षिप्त भूमिका.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने हेतु सादर आभार आदरणीय सर.
सादर.
बहुत अच्छी प्रस्तुति, सार्थक सुंदर रचनाएँ। मेरी रचना को पाँच लिंकों में स्थान देने के लिए हृदयपूर्वक धन्यवाद आदरणीय रवींद्रजी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
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