चाहत जागी है , सो वो जगी तो जागी
धान से महंगा हुआ कोदो सांवा रागी
मेरा मन करता है
बिना तन-धन लगाए
देशभक्ति दिखाऊँ।
वो अच्छा/भला सा कहते हैं
नाख़ून कटवाकर
शहीद हो जाना।
समाज के लिए
परबचन देता जाऊँ।
है ही
समाज के वश में है करना
छिद्रान्वेषण
प्रायः प्रगतिवादी विज्ञजन आंग्ल संस्कृति/ वैचारिक प्रभाव वश ..पोज़िटिव थिंकिंग,
आधे भरे गिलास को देखो ....आदि कहावतें कहते पाए जाते हैं ...
परन्तु गुणात्मक ( धनात्मक + नकारात्मक ) सोच ..सावधानी पूर्ण सोच होती है..
जो आगामी व वर्त्तमान खतरों से आगाह करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है |
निराला का कहा/निराला
हिन्दी समालोचना की एक विकट स्थिति अब रूढ़ हो गई है।
प्रारम्भ से ही यह बात प्रमाणित है कि लक्षण ग्रन्थ अथवा
आलोचनात्मतक कृति का मूल आधार लक्ष्य ग्रन्थ ही रहा है।
यहाँ तक कि भरत मुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ अथवा अन्य किसी भी महान लक्षण ग्रन्थ का आधार
उससे पूर्व लिखी गई सर्जनात्मक कृतियाँ ही रही हैं। पर बाद के दिनों में आलोचकों ने कुछ फरमे बनाए
और उन फरमों में कृतियों को ठूँस-ठूँसकर उसके गुणावगुण की व्याख्या की जाने लगी।
शनिवार (30 मई 2020) तक
कॉन्टैक्ट फ़ॉर्म के माध्यम से हमें भेजिएगा।
(01 जून 2020) में प्रकाशित किया जाएगा।
वैराग्य शतकम के सिवा सारी रचनाएँ आद्योपांत पढ़ी। रूटीन बिगड़ गया लेकिन दिन बन गया। भगवान करे, रूटीन बिगाड़ने वाली ऐसी ही प्रस्तुतियाँ आएँ। सराहना से परे प्रस्तुति। आभार हृदयतल से!
जवाब देंहटाएंअति ऊत्तम प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंसदाबहार
सादर नमन
सभी को शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनाख़ून कटवाकर
जवाब देंहटाएंशहीद हो जाना।
समाज के लिए
परबचन देता जाऊँ।
है ही
समाज के वश में है करना
जबरदस्त पंक्तियाँ दी।
हमेशा की तरह शानदार संकलन।
सादृ प्रणाम दी।
शुक्रिया, अम्मू🙏
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