स्नेहिल अभिवादन
अप्रैल की विदाई हो गई
रुला गया अप्रैल...
आज एक मई है विश्व मजदूर दिवस है
मैं श्रमिक ...रेणु बाला
भीतर मेरे गांव बसा
है कर्मभूमि नगर मेरी ,
हौंसले कम नहीं हैं -
कठिन भले ही डगर मेरी !!!!!!!!!
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लाखों मानव-पक्षियों को रात भर भूख प्यास से पीड़ित रहकर जागरण करना पड़ता है अथवा जाग्रत सपनों में उलझे रहना पड़ता है ।
यह अपने अपने अनुभव की, अपनी समझ की, अपनी आँखों देखी अकथ दुखपूर्ण अवस्था और कहानी है।
कबीर के गीतों से इस पीड़ित मानवता को
सान्त्वना दे सकना असम्भव है ।
यह लक्षावधि भूखी मानवता हाथ फैलाकर, जीवन के पंख फड़फड़ाकर कराहकर केवल एक कविता माँगती है _पौष्टिक भोजन ।"
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हो तुम वंचित
साधनहीन सर्वहारा
ग़रीब मेहनतकश,
तुमसे समाज का
साधनसंपन्न वर्ग
हद तक नफ़रत करता है
तड़कती है उसकी नस-नस।
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हमारे हालात बदलने की
निरुद्देश्य, निष्फल योजनाओं की
खोखली घोषणाओं पर
पाँच सितारा होटलों के
वातानुकूलित भव्य सभागारों में
चंद सेमीनार होंगे
जिनमें शिरकत करने वाले
सभी माननीयों की सेवा में
भाँति-भाँति के ज़ायकेदार व्यंजन
और मधुर शीतय पेय
उपलब्ध कराने के लिये
शुष्क कण्ठ और खाली पेट लिये
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खेल खेलती किस्मत भी रूपयों का तभी तो
अमीर को धनी गरीब को ऋणी कर देती है ।
छोटी-छोटी चाहत छोटे–छोटे सपने सब हैं,
अधूरे ये बातें तो जीना मुश्किल कर देती हैं ।
श्रमिक के जीवन की किस्मत ही मेहनत है,
श्रम करते हुए ही जीवन का अंत कर देती है ।
दबा के चंद सिक्के मुट्ठी में
बिना किसी चाह व शंका के
तुम अपना चूल्हा जलाते हो
न तुम्हें चिंता पद की न रूतबे की
न दिखावे की न किसी चोरी की
दिनभर अथक परिश्रम बस
बिना किसी तृष्णा के
बिना किसी लोभ के
कितनी मीठी नींद सो जाते हो
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सुजाता प्रिया जी
जिनकी मेहनत से जूते- चप्पल,
हाथ छड़ी और टोपी सिर पर,
कल- कारखाने घर सड़क पर,
वस्तुएँ. ढोते रख माथे पर,
मजदूर नहीं ईश्वर हैं भू पर।
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हाथ जो बोझ से लदे हैं
बहती नाक और पसीना
एक हुआ जाता
बनाता आशियाना
औरों का
खुद का पता नहीं
कभी यहाँ ,कभी वहाँ
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सिर पर अपने ईंटें ढोते
नहीं मिलता इनको कोई इनाम
नहीं रखता इन्हे कोई भी याद
कभी नहीं बदले इनकी किस्मत
सहनी पड़ती सदा ही जिल्लत
मंहगाई की मार भी सहते
रोज रात के आगोश में
भविष्य के नये सपने बुनते
सुबह मिलाकर गिट्टी गारे में
अपने सपने भी दीवारों में चुनते
यही उनकी असली किस्मत है
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व्यक्तित्व को शिखर पर ले जाने की कार्यप्रणाली ज्यादा सक्रिय है,
यही सक्रियता अब वर्ग विरोधों में बंट गयी है.
अब हम जिस समाज में रहते हैं उसके दो वर्ग हो गये हैं "धनपति"
और "गरीब"--शोषक और मजदूर यह ध्रुवीकरण पूंजीवादी
समाज में विशेष रूप से बढ़ता जा रहा है, व्यक्तिवाद और
अहंवाद अपनी चरम सीमा पर है.विकास के नाम पर नेता
या पूंजीपति इसका लाभ ले रहें हैं.जिनके विकास के लिये
कार्यक्रम होता है,वे इस विकास के मायने से वाकिफ भी
नहीं हो पाते.सड़क बनाने में अपना पसीना टपकाने वाले
कभी सड़क पर नहीं चलते उन्हें पगडंडी ही विरासत में
मिली है.
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आज भी अधिकांश नारियां मजदूरी करती हैं जो उपनगर या गाँव में रहती हैं और निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों की हैं,उनकी मजदूरी के पीछे भी स्वतंत्र अस्तित्व की चाह उतनी ही है, जितना आधुनिक सामाजिक जीवन जीने वाली नारियों में है।गाँव में ज्यादातर नारियां गरीब परिवारों की हैं जो मजदूरों के रूप में खेतों पर,शहर में रेजाओं के रूप में,और कई अन्य जगह काम करती हैं।जी जान लगाकर दिनभर मेहनत करती हैं, पर वेतन पुरषों की तुलना में कम मिलता है।पिछले तीन दशकों में बनी अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं के ज्यादातर फायदे उन्हीं नारियों के लिये हैं, जो उच्च आय में हैं,उच्च शिक्षा प्राप्त हैं।
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एक मजबूत
दिवस है आज
मजदूर दिवस है
मेहनत कशों
का दिवस है
उर्जा होती ही
है दिवस में
समझ में
मजदूर लेकिन
आज तक
नहीं आ पाया है
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सर्दी में ठिठुरती रातों की
हाड़ बेंधती ठंडक से
ठिठुरे हुए हृदय के आयतन में
कभी जमाते हो अपना ख़ून
बनाते हो चैन की
ठंडी-ठंडी कुल्फ़ी
किसी और के लिए
पर जम-सी जाती है
...
आज का ये अंक मजदूर दिवस पर केन्द्रित है
सखी श्वेता का विशेष सहयोग है
आप की राय की अपेक्षा है
सादर
जो मजबूत व मशहूर हो तो उसके लिए कोई विशेष दिवस ही ना हो
जवाब देंहटाएंमजबूर को शुभकामनाओं की जरूरत होती है...
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
मज़दूरों के अधिकार छीनकर पूँजीवाद की जड़ों को सींचती सरकारों के दौर में आज विश्व मज़दूर दिवस पर मज़दूरों की दशा-दिशा पर पर चिंतन का एक विशिष्ट दिवस है। अशिक्षा,जनसंख्या-वृद्धि, नशे की लत से यह तबक़ा जब उबरकर अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनेगा तो दुनिया बदली हुई नज़र आएगी। मज़दूरों को किसी सहानुभूति की ज़रूरत नहीं है बल्कि उनके श्रम और हुनर की क़द्र हो तथा यथायोग्य यथोचित मेहनताना ईमानदारी से मिले तो वे भी अपना जीवन बेहतर बना सकते हैं,अपनी पीढ़ियों में परिवर्तन ला सकते हैं जिसके लिए नीतियाँ चाहिए जो ईमानदारी से उनके हक़ में बनती नहीं हैं क्योंकि नीतियाँ बनाने वाला वर्ग अपना हित पहले साधता है।
जवाब देंहटाएंमज़दूर दिवस पर विभिन्न दृष्टिकोण दर्शाती चिंतनपरक प्रस्तुति।
मेरी रचना आज की हलचल में सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीया यशोदा बहन जी।
हटाएंआभार यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंअत्यधिक दिल को छूने वाला लेख. जो की आज की स्तिथि को दर्शाता है
जवाब देंहटाएंमजदूर दिवस पर बहुत ही उम्दा प्रस्तुति ! मेरी रचना को स्थान देने हेतु हृदयतल से आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सामयिक हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविडंबना है कि जिनके-जिनके लिए भी ऐसे दिनों का प्रावधान किया गया है, वह कभी भी पनप नहीं पाए हैं, नाहीं कुछ भला हो पाया है उनका ! सिर्फ औपचारिकता भर बन कर रह गए हैं ऐसे दिवस !
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति, मजदूर दिवस पर
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को आज के इस विशेषांक में आपने स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे सखी !
जवाब देंहटाएंश्रमवीर के नाम बहुत सार्थक प्रस्तुति आदरणीय यशोदा दीदी ! आभारी हूँ मेरी पुरानी रचना को इस अंक के योग्य समझा गया | समस्त विश्व की अर्थव्यवस्था को अपने कन्धों पर ढ़ोने वाली मेहनती कौम को नमन | यूँ तो इस दिन के मनाने से उन्ही लोगों का कभी कुछ भला नहीं हुआ जिनके नाम ये दिन है पर फिर भी उनका आत्मीय आभार बनता है | सखी सुजाता जी ने खूब लिखा --
जवाब देंहटाएंजिनकी मेहनत से है फुलवारी,
रंग- बिरंगी कलियाँ प्यारी,
पेड़- पौधे और फलियाँ न्यारी,
जिनकी मेहनत से खेती- बारी,
उन मजदूरों के हम आभारी।
सच है उनका आभार कितना कहें और कैसे कहें | संतोष भाव से जो जहाँ लगाता है उनके कार्य को प्राय निष्ठापूर्वक करना श्रमिक वर्ग की विशेषता है | अपने खाली हाथ होने के बावजूद किसी से इर्ष्या का भाव ना रखना उनके विराट उदार चरित्र को दिखाता है | सभी रचनाकारों को बधाई | सभी ने बहुत अच्छा लिखा है सादर
उत्तम प्रस्तुति मजदूर दिवस पर ।
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