सादर अभिवादन।
मंगलवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
मुक्ति की आस लिए
बंधन में सब बँध गए,
दर्द का दरिया बहा
करोना में गले रुँध गए।
-रवीन्द्र
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
कलम का लिखा
नहीं
सामने से
कलम का
हाथ में लोटा लिये
दिशा जाना
समझा रहा है
जब भी किसी ने मुझे सताया,
माँ ने मुझको गले लगाया।
जब भी दुखों की धूप से झुलसा,
माँ ने ममता का छत्र लगाया
आज...
जब अपनी बेटी के पीछे
किटकिट करती
घर- गृहस्थी झींकती हूँ
तो कहीं-
मन के किसी कोने में छिपी
आँचल में मुँह दबा
तुम धीमे-धीमे
हंसती हो माँ...!!!
“ओह,
एक
महीने
पहले
की
बात
है
कि
दोनों
बाप
बेटे
ट्रेन
से
सहारनपुर
से
आ
रहे
थे|
तेरी
भाभी
स्टेशन
पर
उनको
लाने
गई
थी|
अभी
ट्रेन
कुछ
दूर
पर
थी
खी
एक
तेज
रफ्तार
ट्रेन
से
उसकी
टक्कर
हो
गई|
उसी
दुर्घटना
में
दोनों
चल
बसे|
यह
देखते
ही
भाभी
का
करुण
क्रंदन
गूँजा
‘मैं आपके
बिना
नहीं
जी
सकती”
कहते
हुए
वह
दूसरी
पटरी
पर
आ
रही
ट्रेन
के
सामने
आ
गई
और
वह
भी
चली
गई|”
12 मई से कुछ वातामुकूलित ट्रेने चलाई जा रही हैं, लेकिन इन ट्रेनों का किराया राजधानी ट्रेन जितना होगा जो मज़दूर नहीं दे सकते। इसके अलावा मज़दूरों के लिये जो श्रमिक स्पेशल ट्रेने चलाई जाने वाली हैं उनमें पूरे 1700 यात्री बैठेंगे, पहले यह संख्या 1200 रखी गई थी, लेकिन अब सोसल डिस्टेंसिंग का कोई ख़याल नहीं किया जायेगा, यदि मज़दूरों के बीच कोरोना फैलता है तो फैले। वैसे भी यह पूरी व्यवस्था मज़दूरों को काम करने वाले एक गुलाम से ज्यादा कुछ नहीं समझती।
हम-क़दम का अगला विषय है
'क्षितिज'
इस विषय पर आप अपनी रचना आगामी शनिवार तक कांटेक्ट फ़ॉर्म के ज़रिये भेजिए जिन्हें सोमवारीय प्रस्तुति में प्रकाशित किया जाएगा।
उदाहरणस्वरूप कविवर डॉ.शिवमंगल सिंह'सुमन'जी की कालजयी रचना-
"हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंचखोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं, तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।"
-डॉ.शिवमंगल सिंह'सुमन'
आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में।
रवीन्द्र सिंह यादव
बेहतरीन से बेहतर..
जवाब देंहटाएंसारा सार एक पन्ने में
सादर..
आभार रवींद्र जी।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार ! मेरी रचना का चयन करने हेतु!
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